स्वामी अग्निवेश का 80वां जन्मदिन


 निर्भीक सन्यासी स्वामी अग्निवेश के 80वें जन्म दिवस पर दिल्ली के प्यारे लाल भवन के ठसा ठस भरे हॉल में  साधु-संत, आमजन, मजदूर-किसान, आदिवासी, महिलाएं व युवा सभी थे। ये वे लोग थे, जिनका उनके साथ उनके द्वारा आंदोलन व जनसंघर्षों का साथ था। अनेक लोग ऐसे भी थे जो उन्हें जब से जानते थे जब वे प्रो0 श्यामा राव के रूप में कोलकोता यूनिवर्सिटी में विद्यार्थियो को कानून पढ़ाते थे। अनेक लोग उस मंजर के गवाह थे जब उन्होंने सन् 1970 में साधु वेदमुनि से अपने एक मित्र स्वामी इंद्रवेश के साथ सन्यास की दीक्षा ली तथा वे स्वामी अग्निवेश कहलाए। बहुत लोग ऐसे थे, जो उनके सहयोगी व समर्थक रहे, जब वे एक राजनीतिक दल आर्य सभा बनाकर हरियाणा में राजनीति में उतरे व सन् 1977 में जनता पार्टी की सरकार बनने पर शिक्षामंत्री बने। अनेक लोग वे भी थे, जिन्होंने उन्हीं के शासनकाल में फरीदाबाद में भट्ठा मजदूरों की लड़ाई लड़ी तब अग्निवेश सरकार छोड़कर इन मजदूरों के साथ खड़े थे। उनके वे साथी भी थे जो सन् 1980 में राजस्थान के देवराला में एक युवती रूपकंवर को आग को सुपुर्द कर महिमा मंडन के खिलाफ दिल्ली से देवराला की यात्रा में शामिल थे। वे भी लोग आज के समारोह में शामिल थे, जिन्होंने सन् 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद देश में फैले साम्प्रदायिक उन्माद को रोकने के लिए स्वामी जी का साथ  दिया था। ऐसे लोग भी अपनी हाजरी जता रहे थे, जिन्होंने सन् 2002 में गुजरात जनसंहार के बाद उनके साथ अहमदाबाद तक की यात्रा की थी। बंधुवा मुक्ति मोर्चा के सभी छोटे बड़े कार्यकर्ता आज अपने नेता स्वामी के प्रति अपनी एकजुटता दिखाने आए थे। स्वामी अग्निवेश का सम्पूर्ण जीवन उपेक्षित, दलित, पिछड़े, आदिवासी और शोषित की लड़ाई के साथ रहा है। इसलिए आज उनका हर साथी कार्यकर्ता मौजूद था । वह जहां अपनी शुभकामनाएं देना चाहता था, वहां अपना समर्थन भी कि अभी घोर लड़ाई है तथा उन्हें स्वामी अग्निवेश की जरूरत है ।
   अपने उदबोधन में अपने मित्र गुरु स्वामी इंद्रवेश को याद करते हुए वे भावुक थे. परन्तु अपने शिष्य उत्तराधिकारी स्वामी आर्यवेश को देखकर आश्वस्त भी कि साम्प्रदायिकता, जातिवाद, भ्र्ष्टाचार, नशे, असमानता के विरुद्ध उनका संघर्ष जारी रहेगा । "वसुधैव कुटुम्बकम" का सनातन वाक्य अब उनकी विरासत है, जिसपर वे अडिग होकर पूरी दुनिया में इसका सन्देश फैलाना चाहते है ।
      स्वामी दयानंद सरस्वती की साम्प्रदायिक सद्भाव की विरासत को वे मजबूती से सम्भाले हैं,  जिसमें कार्ल मार्क्स का चिंतन है, महात्मा गांधी का सत्याग्रह तथा डॉ. अम्बेडकर का संघर्ष ।

 दिल्ली : राममोहन राय की कलम से साभार।

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