के सिवनः मुफलिसी से चांद तक का सफर
चंद्रयान के इसरो वैज्ञानिक श्री के
सिवन का पूरा नाम है कैलाशावादिवो सिवन। कन्याकुमारी में पैदा हुए सिवन के
गांव का नाम सरक्कालविलाई है। परिवार बेहद गरीब था। इतना कि के सिवन की
पढ़ाई के लिए भी पैसे नहीं थे। गांव के ही सरकारी स्कूल में पढ़ते थे।
8वीं तक वहीं पढ़े। आगे की पढ़ाई के लिए गांव से बाहर निकलना था। लेकिन घर
में पैसे नहीं थे। के सिवन को पढ़ने के लिए फीस जुटानी थी। इसके लिए
उन्होंने पास के बाजार में आम बेचना शुरू किया। जो पैसे मिलते, उससे अपनी
फीस चुकाते। इसरो चेयरमैन के मुताबिक ‘मैं एक गरीब परिवार में पैदा हुआ था।
मेरे बड़े भाई ने पैसे न होने की वजह से मेरी पढ़ाई रुकवा दी थी। मेरे
पिता कैलाशा वादिवू एक किसान थे, जो पास के बाजार में आम बेचते थे। मैं
साइकिल पर आम लेकर जाता था और उसे बाजार में बेचकर अपनी पढ़ाई की फीस
चुकाता था।'
इसरो वैज्ञानिक के सिवन ने एक इंटरव्यू के दौरान मुश्किल में बीते अपने
बचपन के बारे में बताया था कि आम बेचकर पढ़ाई करते-करते इंटरमीडिएट तो कर
लिया, लेकिन ग्रेजुएशन के लिए और पैसे चाहिए थे। उनके पिता ने कन्याकुमारी
के नागरकोइल के हिंदू कॉलेज में उनका दाखिला करवा दिया और जब वो हिंदू
कॉलेज में मैथ्स में बीएससी करने पहुंचे, तो उनके पैरों में चप्पलें आईं.
धोती-कुर्ता और चप्पल। इससे पहले के सिवन के पास कभी इतने पैसे नहीं हुए थे
कि वो अपने लिए चप्पल तक खरीद सकें. सिवन ने पढ़ाई की और अपने परिवार के
पहले ग्रेजुएट बने। मैथ्स में 100 में 100 नंबर लेकर आए और फिर उनका मन
बदला। अब उन्हें मैथ्स नहीं, साइंस की पढ़ाई करनी थी। इसके लिए वे पहुंच गए
मद्रास इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नॉलजी (अब चेन्नई)। वहां उन्हें स्कॉलरशिप मिली
और इसकी बदौलत उन्होंने एरोऩॉटिकल इंजीनियरिंग (हवाई जहाज बनाने वाली
पढ़ाई) में बीटेक किया। 1980 में एमआईटी में उन्हें एस नमसिम्हन, एनएस
वेंकटरमन, ए नागराजन, आर धनराज, और के जयरमन जैसे प्रोफेसर मिले, जिन्होंने
गाइड किया।
एरोनॉचिकल साइंस में बीटेक करने के बाद के सिवन ने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से मास्टर्स डिग्री की। जब के सिवन आईआईएस बैंगलोर से बाहर निकले तो वो एयरोनॉटिक्स के बड़े साइंटिस्ट बन चुके थे. धोती-कुर्ता छूट गया था और वो अब पैंट-शर्ट पहनने लगे थे। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेश (इसरो) के साथ उन्होंने अपनी नौकरी शुरू की। पहला काम पीएसएलवी बनाने की टीम में मिला। पीएसएलवी यानी कि पोलर सेटेलाइट लॉन्च वीकल। ऐसा रॉकेट जो भारत के सेटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेज सके। के सिवन और उनकी टीम इस काम में कामयाब हुई।
इसरो का रॉकेट मैन
के सिवन ने रॉकेट को कक्षा में स्थापित करने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया, जिसे नाम दिया गया सितारा। उनका बनाया सॉफ्टवेयर बेहद कामयाब रहा और भारत के वैज्ञानिक जगत में इसकी चर्चा होने लगी। इस दौरान भारत के वैज्ञानिक पीएसएलवी से एक कदम आगे बढ़कर जीएसएलवी की तैयारी कर रहे थे। जीएसएलवी यानी जियोसेटेलाइट लॉन्च वीकल की 18 अप्रैल, 2001 को टेस्टिंग की गई, लेकिन टेस्टिंग फेल हो गई, क्योंकि जिस जगह पर वैज्ञानिक इसे पहुंचाना चाहते थे, नहीं पहुंचा पाए। के सिवन को इसी काम में महारत हासिल थी। जीएसएलवी को लॉन्च करने का जिम्मा के सिवन को दिया और उन्होंने इसे कर दिखाया। इसके बाद से ही के सिवन को इसरो का रॉकेट मैन कहा जाने लगा। फेल हुए जीएसएलवी लॉन्च को सफल बनाया।
इसरो मुखिया बनाया
के सिवन और उनकी टीम ने एक और प्रोजेक्ट रियूजेबल लॉन्च वीकल बनाना शुरू किया। मतलब कि लॉन्च वीकल से एक बार सेटेलाइट छोड़ने के बाद दोबारा उस लॉन्च वीकल का इस्तेमाल किया जा सके। अभी तक किसी भी देश में ऐसा नहीं हो पाया था। के सिवन की अगुवाई में भारत के वैज्ञानिक इसमें जुट गए थे. इस दौरान के सिवन ने साल 2006 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में आईआईटी बॉम्बे से डॉक्टरी की डिग्री हासिल कर ली। और फिर दो जुलाई 2014 को इसरो में लॉन्च वीकल के लिए ईंधन बनाने वाले डिपार्टमेंट के मुखिया बना दिए गए। एक साल से भी कम समय का वक्त बीता और 14 जनवरी 2015 को के सिवन विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के मुखिया बना दिए गए। वो स्पेस सेंटर जिसका काम है भारत के सेटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए वीकल यानी कि रॉकेट तैयार करना। .
शास्त्रीय संगीत के सुनना, बागवानी करना पसंद
अपने फुर्सत के पलों में के सिवन तमिल शास्त्रीय संगीत सुनते हैं और बागवानी करते हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जब वो अपने बाग में होते हैं, तो भूल जाते हैं कि वो एक साइंटिस्ट हैं।
खाली वक्त में क्लासिकल तमिल संगीत सुनने और बागवानी करने वाले के सिवन को कई पुरस्कारों से नवाजा गया है. उनकी अगुवाई में इसरो ने 15 फरवरी, 2017 को एक साथ 104 सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे। ऐसा करके इसरो ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया। इसके बाद इसरो का सबसे बड़ा मिशन था चंद्रयान-2, जिसे 22 जुलाई, 2019 को ल़ॉन्च किया गया। दो सितंबर को चंद्रयान दो हिस्सों में बंट गया। पहला हिस्सा था ऑर्बिटर, जिसने चंद्रमा के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. दूसरा हिस्सा था लैंडर, जिसे विक्रम नाम दिया गया था. इसे 6-7 सितंबर की रात चांद की सतह पर उतरना था. सब ठीक था कि अचानक संपर्क टूट गया और फिर जो हुआ, वो दुनिया ने देखा। भावुक पल इसरो चीफ सिवन रो पड़े। सबकुछ उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ, लेकिन ये के सिवन हैं. अपनी ज़िंदगी में भी परेशानियां झेलकर कामयाबी हासिल की है और अब एक बड़ी कामयाबी से थोड़ा सा चूक गए. लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है और हम भी।
हार ही है सफलता का रास्ता,
हमारी मंजिल बनी ही जीत है।
पाकर रहेंगे यह हमारी जिद है।।
एरोनॉचिकल साइंस में बीटेक करने के बाद के सिवन ने एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में बैंगलोर के इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस से मास्टर्स डिग्री की। जब के सिवन आईआईएस बैंगलोर से बाहर निकले तो वो एयरोनॉटिक्स के बड़े साइंटिस्ट बन चुके थे. धोती-कुर्ता छूट गया था और वो अब पैंट-शर्ट पहनने लगे थे। इंडियन स्पेस रिसर्च ऑर्गनाइजेश (इसरो) के साथ उन्होंने अपनी नौकरी शुरू की। पहला काम पीएसएलवी बनाने की टीम में मिला। पीएसएलवी यानी कि पोलर सेटेलाइट लॉन्च वीकल। ऐसा रॉकेट जो भारत के सेटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेज सके। के सिवन और उनकी टीम इस काम में कामयाब हुई।
इसरो का रॉकेट मैन
के सिवन ने रॉकेट को कक्षा में स्थापित करने के लिए एक सॉफ्टवेयर बनाया, जिसे नाम दिया गया सितारा। उनका बनाया सॉफ्टवेयर बेहद कामयाब रहा और भारत के वैज्ञानिक जगत में इसकी चर्चा होने लगी। इस दौरान भारत के वैज्ञानिक पीएसएलवी से एक कदम आगे बढ़कर जीएसएलवी की तैयारी कर रहे थे। जीएसएलवी यानी जियोसेटेलाइट लॉन्च वीकल की 18 अप्रैल, 2001 को टेस्टिंग की गई, लेकिन टेस्टिंग फेल हो गई, क्योंकि जिस जगह पर वैज्ञानिक इसे पहुंचाना चाहते थे, नहीं पहुंचा पाए। के सिवन को इसी काम में महारत हासिल थी। जीएसएलवी को लॉन्च करने का जिम्मा के सिवन को दिया और उन्होंने इसे कर दिखाया। इसके बाद से ही के सिवन को इसरो का रॉकेट मैन कहा जाने लगा। फेल हुए जीएसएलवी लॉन्च को सफल बनाया।
इसरो मुखिया बनाया
के सिवन और उनकी टीम ने एक और प्रोजेक्ट रियूजेबल लॉन्च वीकल बनाना शुरू किया। मतलब कि लॉन्च वीकल से एक बार सेटेलाइट छोड़ने के बाद दोबारा उस लॉन्च वीकल का इस्तेमाल किया जा सके। अभी तक किसी भी देश में ऐसा नहीं हो पाया था। के सिवन की अगुवाई में भारत के वैज्ञानिक इसमें जुट गए थे. इस दौरान के सिवन ने साल 2006 में एयरोस्पेस इंजीनियरिंग में आईआईटी बॉम्बे से डॉक्टरी की डिग्री हासिल कर ली। और फिर दो जुलाई 2014 को इसरो में लॉन्च वीकल के लिए ईंधन बनाने वाले डिपार्टमेंट के मुखिया बना दिए गए। एक साल से भी कम समय का वक्त बीता और 14 जनवरी 2015 को के सिवन विक्रम साराभाई स्पेस सेंटर के मुखिया बना दिए गए। वो स्पेस सेंटर जिसका काम है भारत के सेटेलाइट्स को अंतरिक्ष में भेजने के लिए वीकल यानी कि रॉकेट तैयार करना। .
शास्त्रीय संगीत के सुनना, बागवानी करना पसंद
अपने फुर्सत के पलों में के सिवन तमिल शास्त्रीय संगीत सुनते हैं और बागवानी करते हैं. एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि जब वो अपने बाग में होते हैं, तो भूल जाते हैं कि वो एक साइंटिस्ट हैं।
खाली वक्त में क्लासिकल तमिल संगीत सुनने और बागवानी करने वाले के सिवन को कई पुरस्कारों से नवाजा गया है. उनकी अगुवाई में इसरो ने 15 फरवरी, 2017 को एक साथ 104 सेटेलाइट अंतरिक्ष में भेजे। ऐसा करके इसरो ने वर्ल्ड रिकॉर्ड बना दिया। इसके बाद इसरो का सबसे बड़ा मिशन था चंद्रयान-2, जिसे 22 जुलाई, 2019 को ल़ॉन्च किया गया। दो सितंबर को चंद्रयान दो हिस्सों में बंट गया। पहला हिस्सा था ऑर्बिटर, जिसने चंद्रमा के चक्कर लगाने शुरू कर दिए. दूसरा हिस्सा था लैंडर, जिसे विक्रम नाम दिया गया था. इसे 6-7 सितंबर की रात चांद की सतह पर उतरना था. सब ठीक था कि अचानक संपर्क टूट गया और फिर जो हुआ, वो दुनिया ने देखा। भावुक पल इसरो चीफ सिवन रो पड़े। सबकुछ उम्मीद के मुताबिक नहीं हुआ, लेकिन ये के सिवन हैं. अपनी ज़िंदगी में भी परेशानियां झेलकर कामयाबी हासिल की है और अब एक बड़ी कामयाबी से थोड़ा सा चूक गए. लेकिन उम्मीद पर दुनिया कायम है और हम भी।
हार ही है सफलता का रास्ता,
हमारी मंजिल बनी ही जीत है।
पाकर रहेंगे यह हमारी जिद है।।
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