मैं हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं : डा. अंबेडकर
मैं हिंदू पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं : डा. अंबेडकर 
भारतीय इतिहास में आज का दिन बहुत महत्वपूर्ण है। आज के ही दिन 14
 अक्तूबर 1956  को नागपुर में संविधान निर्माता एवं भारत रत्न बाबा साहेब 
भीमराव अंबेडकर ने अपने 3,80,000 साथियों के साथ हिंदू धर्म को त्याग कर 
बौद्ध धर्म अपना लिया था. 1950 के दशक में ही बाबा साहेब बौद्ध धर्म के 
प्रति आकर्षित हुए और बौद्ध सम्मेलन में भाग लेने श्रीलंका गए थे। 14 
अक्तूबर 1956 को नागपुर में उन्होंने अपने लाखों समर्थकों के साथ बौद्ध 
धर्म ग्रहण किया। उन्होंने इस अवसर पर 22 प्रतिज्ञाएं ली थीं। हिंदू धर्म 
और उसकी पूजा पद्धति को उन्होंने पूर्ण रूप से त्याग दिया था। डॉक्टर 
अंबेडकर के साथ लाखों दलितों ने बौद्ध धर्म अपनाकर पूरी दुनिया को समतामूलक
 समाज की पैरवी करने वाले धर्म के रूप में बौद्ध धर्म का संदेश दिया गया 
था। बाबा साहेब ने इस अवसर को धर्म-जनित शारीरिक, मानसिक व आर्थिक दासता से
 मुक्ति का मार्ग भी बताया था। अंबेडकर का जन्म अछूत महार जाति में हुआ था।
 उन्होंने हिंदू धर्म में व्याप्त छुआछूत प्रथा को खत्म करने के लिए न 
सिर्फ सामाजिक बल्कि कानूनी रास्ता भी अख्तियार किया। वे मानते थे कि कानून
 में बदलाव लाकर ही दिल और दिमाग में बदलाव संभव है। उनके बौद्ध धर्म 
अपनाने के पीछे बौद्ध धर्म में छुआछूत और जाति प्रथा जैसी कुरीति का न होना
 था। 
डॉ. भीमराव  अंबेडकर दलितों को उनका हक दिलाने के लिए एकजुट करने और 
राजनीतिक, सामाजिक रूप से उन्हें सशक्त बनाने में जुटे थे। लेकिन उनके 
विरोधी उनका रास्ता रोकने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे थे। लंबे संघर्ष के 
बाद जब अंबेडकर को भरोसा हो गया कि वे हिंदू धर्म से जातिप्रथा और छुआछूत 
की कुरीतियां कभी दूर नहीं कर पाएंगे तो उन्होंने घोषणा की कि "मैं हिंदू 
पैदा तो हुआ हूं, लेकिन हिंदू मरूंगा नहीं" । इसी घोषणा का परिणाम बौद्ध धर्म ग्रहण करने के रूप में सामने आया। 
 

 
 
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