मोरारी बापू का भिक्षुक मंचन

मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य                                          उत्तर प्रदेश के गोरखपुर में इन दिनों नामचीन कथावाचक मोरारी बापू कथा वाचन कर रहे हैं। वह गाड़ियों के काफिले के साथ एक गांव में पहुंचे। वहां उन्होंने  पैदल चलकर एक निषाद के घर पर पहुंचकर भिक्षा मांगी। निषाद परिवार नामचीन कथावाचक मोरारी बापू को अपने द्वार देखकर सकते में आ गया।  मोरारी बापू  के भिक्षा मंचन को कैमरे में कैद करने वाले मीडियाकर्मी और वाहवाही के लिए भक्तों की भीड़ भी मौजूद रही। निषाद परिवार ने मोरारी बापू को भोजन कराया। भोजन के बाद मोरारी बापू का व्यवहार और वाणी वही रही, जैसी आज के नेताओं की रहती है। नेता भी जिस आम आदमी के घर पर जाकर भोजन करते हैं, उस परिवार को गरीब और निम्न जाति का प्रचारित करके अपनी महानता प्रचारित करते हैं। ऐसे में यह आयोजन  संबंधित परिवार के लिए गर्व नहीं अभिशाप बन जाता है, चूंकि उसके माथे पर सदैव के लिए गरीब और निम्न जाति का टैग चिपक जाता है। मजे की बात यह है कि इस अभिशाप को संबंधित परिजन खुद भी अपने यहां आने वाले नेता या नामचीन कथावाचक की महानता और अपने लिए गर्व की बात मानते रहते है।     नेताओं से तो इस तरह की नोटंकी की उम्मीद की ही जाती है पर अब तो संत का चोला ओढ़े लोग  भी ऐसी नौटंकी करने लगे हैं।
जहां तमाम नामचीन कथावाचक विवादित हैं, वहीं मोरारी बापू अन्य कथावाचकों से कहीं अधिक दिखावा करने के बावजूद अविवादित माने जाते हैं। चार्टर विमान में चलने वाले मोरारी बापू ने जब निषाद परिवार से भिक्षा मांगने की नौटंकी की। भिक्षा में भोजन करने के बाद धनाढ्य नेताओं की तरह व्यवहार किया। निषाद परिवार के दो बच्चों को 100-100 रुपये का नोट और कुछ वस्त्र थमा दिए। बाहर खड़े मीडियाकर्मियों से कहा कि "वह जहां कथावाचन करते हैं, वहां किसी गरीब परिवार में जाकर भोजन करते हैं।" यह एक संत की वाणी तो नहीं हो सकती और भिक्षुक के पास देने के लिए प्रसाद में आशीर्वाद के अलावा कुछ हो नहीं सकता। ऐसे में चार्टर विमान में   सफर करके करोड़ों के खर्च से कथावाचन करने वाले संत का चोला ओढे़ नामचीन कथावाचक द्वारा निषाद के घर जाकर भिक्षा में भोजन करना मोरारी बापू का भिक्षुक मंचन ही कहा जाएगा।

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