विनोबा भावे : भूदानी बाबा को मत भूलो

          
    (पूण्यतिथि 15 नवंबर 1982 पर विशेष )
  18 अप्रैल (1951) के दिन तेलंगाना (अब आंध्र प्रदेश) के पोचमपल्ली गांव में श्री रामचंद्र रेड्डी ने गांव के हरिजन भूमिहीन खेतिहर मजदूरों के लिए, विनोबाजी को 100 एकड़ भूमि का दान दिया । तब न लेने वाला जानता था, न देने वाला, कि यह घटना एक नई क्रांति का प्रारंभ कर देगी।वह दिन "भू क्रांति दिवस "बन गया और भूदान यज्ञ ,अहिंसक क्रांति का औजार बन गया। 1995 में विनोबाजी जन्मशती मनाई जाएगी अनेको कार्यक्रम चलेंगे । इस अवसर पर सोचना चाहिए कि इतिहास विनोबा जी को किस नाम से जानेगा। उनके जीवन के अंतिम पर्व में जब हमने यही चर्चा छेड़ी थी और कहा था" कि "आपने बहुत बड़े-बड़े काम किए पर इतिहास में आप जाने जाएंगे भूदानी बाबा के नाम से ही।"  "इस पर विनोबाजी ने कहा, ठीक कह रही हो"।
विनोबाजी का भूदान यज्ञ एक संकेत दे रहा है कि भूमि का न व्यक्तिगत स्वामित्व हो सकता है, न राज्य का स्वामित्व हो सकता है, भूमि का स्वामित्व ईश्वर का है। "सर्व भूमि गोपाल की, तुलसी के इस वचन के साथ उन्होंने जोड़ दिया था", नहीं किसी की मालकी। भूमि सबके लिए है इस पृथ्वी पर जो भूमि है, उस पर सब मानवों का समान अधिकार है ।इसी बात को बार-बार दोहराते हुए कहा करते कि ऑस्ट्रेलिया ,कनाडा जैसे देश अपने द्वार चीन- जापान- भारत के लिए खोल देंगे तभी माना जाएगा कि भूदान यज्ञ सफल हो गया ।उन देशों में भूमि अधिक है और जनसंख्या कम है। इधर चीन- जापान- भारत के पास भूमि कम है और जनसंख्या अधिक। भारत के लोग अपने -अपने गांव में भूमिहीनों के लिए दान देंगे,स्वेच्छा से भूमि का स्वामित्व मिटा कर, ग्रामसभा का स्वामित्व स्थापित कर ग्राम स्वराज्य को लाएंगे, तब ऑस्ट्रेलिया- कनाडा को भी प्रेरणा मिलेगी ,अपने द्वार खोलने की। होना तो यह चाहिए कि समूची दुनिया को एक मानकर, किसी भी इंसान को कहीं भी बसने का और भूमि की सेवा करने का अधिकार हासिल होना चाहिए।
भूमि प्रतीक है,समस्त प्राकृतिक संपदा का। संसार में जहां कहीं जो भी प्राकृतिक संपदा है, उस पर सभी मानवों का सम्मान अधिकार है। खाड़ी देशों में उपलब्ध तेल पर उन्हें देशों का एकाधिकार नहीं होना चाहिए ।पृथ्वी के पेट में पाए जाने वाले लोहा, कोयला जैसे खनिज तथा सोना, हीरे जवाहरात आदि सब पर भी उस देश का या चंद व्यक्तियों का नहीं बल्कि समस्त दुनिया का अधिकार होना चाहिए। प्राकृतिक संपदा ईश्वर की देन है। उनका स्वामित्व ईश्वर का ही हो सकता है। ईश्वर की सभी सन्तानों को उसका उपयोग करने का हक हासिल होना चाहिए। इंसान मालिक नहीं ट्रस्टी (विश्वस्त) हो सकता है ।
 भूदानयज्ञ यह भी संकेत दे रहा है विश्व को टुकड़ों में बांटा नहीं जा सकता है। दुनिया एक है, इंसान एक है  इंसान को चाहिए कि एक दूसरे का ख्याल करते हुए जिए। सबकी भलाई की बात सोचें। इसी को जय जगत मंत्र द्वारा प्रकट किया जाता है ।  'भूदानयज्ञ' यह भी संकेत दे रहा है कि धरती हमारी माता है ,धरती माता की सेवा करना हर संतान का कर्तव्य है। "माता भूमि पुत्रो अहम पृथिव्याह: - वेद के इस वचन को सुनाकर विनोबा जी कहा करते थे कि धरती की सेवा, खेती में काम हर किसी को करना चाहिए। भारत के महान नेता, प्रथम प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू को विनोबाजी ने सलाह दी थी कि आपको भी प्रतिदिन 2 घंटा खेती में काम करना चाहिए। धरती की सेवा से बुद्धि तरोताजा बनती है तो प्रधानमंत्री के नाते आप और अच्छा काम कर पाएंगे। पंडित जी ने मुस्कुराकर जवाब दिया था," खेती बागवानी का काम मुझे बहुत पसंद है ।मैं चाहता तो हूं पर क्या करूं समय नहीं मिल पाता।" इस पर विनोबाजी इतना ही बोले, "समय निकालना होगा ।"इसके पीछे श्रम की प्रतिष्ठा छिपी हुई है ।सच्ची क्रांति तभी आ सकती है कि जब हर व्यक्ति श्रम भी करेगा और ज्ञान भी पाएगा। तभी मालिक मजदूर का भेद मिट जाएगा, सब साथी बन जाएंगे। कोई कम श्रम कर पाएगा तो कोई अधिक  पर श्रम हर कोई करेगा। तभी शोषण मुक्त समाज का निर्माण हो सकेगा।
 'भूदानयज्ञ' यह भी संकेत दे रहा है कि धरती से जुड़ा हुआ समाज विकेंद्रित राज्य रचना और विकेंद्रित अर्थरचना में संभव है ।आज विकसित देशों में बढ़ते जा रहे तनाव, शरीर और मन की बीमारियां, तरह-तरह के पागलपन, अपराध आदि सब का एक बड़ा कारण है। धरती से यानी अपनी जड़ों से कट जाना धरती से कटा
इंसान ,यानी जड़ से उखड़ा पेड़, मां की गोद से बिछड़ा हुआ बालक ।मानव का शरीर और मन तभी स्वस्थ रह सकता है जब वह धरती माता से ,प्रकृति से जुड़ा रहेगा। प्रकृति से दूर पेड़- पौधे -फूलों से दूर, चांद सितारे आसमान से दूर रहने वाला इंसान कैसे स्वस्थ और सुखी रह पाएगा?
 'भूदानयज्ञ' संकेत दे रहा है अपरिग्रह का ,अपनी आवश्यकताओं को स्वेच्छा से सीमित करने का। पर्यावरणविद बताते हैं कि इस धरती पर तेल, कोयला, लकड़ी जैसे उर्जा के साधन सीमित मात्रा में पाए जाते हैं ।इसलिए इंसान को चाहिए कि यह उन चीजों का इस्तेमाल करते समय मर्यादा का ख्याल रखें। आज इंसान लोभ के वश इन सभी का जो अंधाधुंध उपयोग कर रहा है, उसके कारण भयंकर ऊर्जा संकट पैदा हो सकता है ।पर्यावरण की रक्षा तभी हो सकेगी जब मानव विचार के साथ अपरिग्रह को अपनाएगा। चीजों की मात्रा को बढ़ाते जाने से सुख शांति संभव नहीं है, इसे मानव महसूस कर रहा है ।लेकिन जानते हुए भी अपने जीवन में परिवर्तन नहीं ला रहा है। अब ऐसी परिस्थिति पैदा करनी होगी,जिससे कि मानव परिवर्तन को अपनाएगा।
  'भूदानयज्ञ' मात्र भूमि के बंटवारे का आंदोलन नहीं है, यह आंदोलन है, करुणा को जगाने का, करुणामूलक क्रांति को लाने का। गुरुदेव रवींद्रनाथ ने बहुत पहले देख लिया था कि मानव का मन रेगिस्तान बनता जा रहा है, आवश्यकता है करुणा की धारा बहाने की।" जीवन जखन शुकाए जाए ,करुणा धाराए एशो" बुद्धदेव ने साधना की साधना की और यही सत्य पाया था कि समस्त दुखों का कारण है, तृष्णा और और दुख मिटाने का उपाय है, करुणा ।
भूदानी बाबा यह सब कह गए थे, और भी बहुत कुछ कह गए, कर गए। वे चलते रहे, उनके चरणचिह्न लाखों-करोड़ों के दिलों पर अंकित होते चले गए। हम तो बस यही कहेंगे कि भूदानी बाबा को भूलो मत।

साभार :  दिवंगत सांसद निर्मला देशपांडे की कलम से 16 अप्रैल 1992 को नित्यनूतन पत्रिका में प्रकाशित लेख।                

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