उदयपुर : झीलों की नगरी




झीलों की नगरी के नाम से विश्वविख्यात उदयपुर ने मुझे सदा आकर्षित किया है । सर्वविदित है कि यह एक ऐतिहासिक नगर है जहाँ की मिट्टी के कण कण में वीरता ,त्याग तथा पराक्रम का इतिहास छिपा है । यह धार्मिक स्थल भी है इसी जनपद के अंतर्गत वैष्णव तीर्थ श्री नाथद्वारा तथा मेवाड़ राज्य के आदिदेव एकलिंग जी का भी मंदिर है । आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानंद सरस्वती ने इसी नगर में अपने जीवन के अनेक वर्ष गुजारे तथा यहीं रहते हुए नवलखा महल में अपनी अनुपम कृति सत्यार्थ प्रकाश की रचना की । भारत के स्वतन्त्रता संग्राम के भी अनेक अग्रणी नेता इसी सम्भाग से हुए । देश की आज़ादी के बाद यह जिला राजनीति की भी प्रमुख केंद्र रहा ।
      मेरी तीन पीढ़ियों का इस नगर से सम्बन्ध है । मेरे छोटे मामा श्री पृथ्वी सिंह सैनी लगभग 65 वर्ष पहले यहां रेलवे में अपनी नौकरी के कारण ट्रांसफर होकर आए थे । वे यहां ऐसे आये की यहीं बस गए । यहीं उनके बच्चों का जन्म हुआ ,यहीं वे पढ़े और अब सभी यहीं बस गए है ।
       मेरी पत्नी श्रीमती कृष्णा कान्ता भी यहीं की है । उनके पिता श्री गणेश लाल माली ने यहीं रह कर अपनी वकालत की ,यहीं राजनीति की तथा यहीं से वे राज्यसभा के सदस्य रहे । मेरी पत्नी के भाईयो -बहनों में सभी यहीं व इसके आसपास रह रहे है ।
     मेरी बड़ी बेटी सुलभा राय का भी विवाह इस शहर में हुआ । यद्यपि वह अब अपने पति एवम बच्चों के साथ अमेरिका में रह रहे है परन्तु उनके परिवार के सभी लोग इसी शहर में रह रहे है । दूसरे शब्दों में यदि कहे कि मेरे पिता ,मेरी एवम मेरी बेटी तीनों की ससुराल उदयपुर में ही है । यह कोई सुनियोजित न होकर इत्तिफाकन है । पर जो भी है सुखद है ।
    हमारे लिये यहाँ की यात्रा पर्यटन से लेकर पारिवारिक सभी आनंद देती है । मेवाड़ी लोग अखड़ स्वभाव के होते है परन्तु अपने प्रिय दामादों जिन्हें ये कुंवर साहब कह कर सम्बोधित करते है उनकी आवभगत में तो ये हमेशा विनम्र व दरियादिली का व्यवहार रखते है  एक दूसरी बात यहाँ के लोगों को आपके बारे में पता चल गया कि आप यहां फलां के कुंवर साहब है तो आपको भी वे वैसा ही सम्मान देंगे मानो आप फलां के नही अपितु उनके भी उसी प्यारे रिश्ते से हो । हमारे शहर के एक सज्जन श्री उदयभान सिंह जी के पूर्वज लगभग 100 साल से भी ज्यादा अरसे से उदयपुर आकर बस गए परन्तु जमीन- जायदाद पानीपत में ही थी । वे यदा कदा उसकी सम्भाल के लिये वहाँ आते । उदयपुर के एक कॉमर्स कॉलेज में वे लेक्चरर भी थे जहाँ मेरी पत्नी ने शिक्षा प्राप्त की थी ।इसी दौरान मेरा उनसे संपर्क हो गया ।  इस सम्पर्क के बाद उन्होंने वह ही रिश्ता निभाया जैसे कि कोई मेवाड़ी अपने प्रिय रिश्तेदार के साथ निभाता है ।
      उदयपुर का प्रेम,मेहमाननवाजी ,खानपान व मनुहार का कोई मुकाबला नही । मैं कह सकता हूं कि यह शहर परम्पराओं से परिपूर्ण प्रेम का शहर है । तभी तो यहां की एक विश्वविख्यात संत मीरा बाई ने कहा *जिन प्रेम कियो तिन्ही प्रभु पायो*
साभार : राम मोहन राय, उदयपुर।

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