कोरोना : घर-घर जाकर टेस्ट कराने को सुप्रीम कोर्ट से गुहार
चार वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर कोरोना वायरस की घर-घर
जाकर जांच करवाने के निर्देश देने की मांग की है। अर्जी में कहा गया है कि
जब तक सभी का टेस्ट नहीं होगा, तब तक इस बीमारी को नहीं रोका जा सकता।
मुख्य बिंदु
- कोरोना वायरस की घर-घर जाकर जांच कराने के सरकार को निर्देश देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका
- अर्जी में कहा गया है कि सिर्फ संदिग्धों की जांच तक सीमित न हो टेस्टिंग, डोर-टु-डोर टेस्टिंग जरूरी
- अर्जी में कहा गया है कि शहरों में संक्रमण ज्यादा, लिहाजा पहले यही से डोर-टु-डोर टेस्टिंग की हो शुरुआत
भारत के सुप्रीम कोर्ट में चार वकीलों की ओर से अर्जी दाखिल कर कहा गया है
कि कोरोना वायरस के बढ़ते मामलों को देखते हुए लोगों के घर-घर जाकर जांच
कराई जाए। शहरों में संक्रमण ज्यादा है, ऐसे में पहले शहर से ही शुरुआत की
जाए और घर-घर से लोगों का सैंपल लिया जाए और कोरोना टेस्ट कराया जाए।
- घर-घर जाकर जांच हो तभी बनेगी बात
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल अर्जी में हेल्थ मिनिस्ट्री, होम मिनिस्ट्री और
नैशनल डिजास्टर मैनेजमेंट को प्रतिवादी बनाया गया है। अर्जी में कहा गया है
कि केंद्र सरकार को निर्देश दिया जाए कि लोगों के घर-घर जाकर व्यापक
पैमाने पर कोरोना टेस्ट किया जाए और जो भी संक्रमित व्यक्ति हैं उनकी पहचान
की जाए और फिर उन्हें आईसोलेशन में रखा जाए और उनका इलाज कराया जाए।
- पहले शहरों से हो घर-घर जांच की शुरुआत
दायर की गई याचिका में कहा गया है कि कोरोना महामारी के चेन को ब्रेक करने
के लिए सबसे पहले शहरों में ये टेस्ट शुरू किया जाए। साथ ही कहा गया है कि
पीएम रिलीफ फंड और चीफ मिनिस्टर रिलीफ फंड में जो रकम है उसे नैशनल
डिजास्टर रिस्पॉन्स फंड बनाकर उसमें ट्रांसफर किया जाए जिसका महामारी से
मुकाबले में इस्तेमाल हो।
- सिर्फ संदिग्ध तक ही सीमित नहीं होनी चाहिए जांच
दाखिल अर्जी में यह भी कहा गया है कि कोरोना वायरस बीमारी फैल रही है। ऐसे
में सिर्फ संदिग्ध के टेस्ट तक टेस्टिंग को सीमित नहीं रखा जाना चाहिए।
बल्कि आम पब्लिक का कोरोना टेस्ट जरूरी है और जो भी संक्रमित हैं उन्हें
अलग किया जाए। देश भर में लॉकडाउन किया गया है और जो भी संदिग्ध हैं उनका
टेस्ट हो रहा है और जब तक मास टेस्ट नहीं होगा तब तक बात नहीं बनेगी।
- पर्याप्त टेस्ट के अभाव में 1.38 अरब लोगों की जिंदगी खतरे में
अर्जी में कहा गया है कि कोरोना के मरीज में लक्षण होते भी हैं और न भी
होते हैं। जिन्हें लक्षण नहीं होते हैं कोरोना के वह कैरियर का काम करते
हैं। ऐसे में मौजूदा टेस्टिंग प्रक्रिया पर्याप्त नहीं है और खतरा बकरार
है। ऐसे टेस्टिंग में वो लोग छूट रहे हैं जिन्हें लक्षण नहीं है या ट्रैवल
हिस्ट्री है लेकिन लक्षण नहीं हैं। पर्याप्त टेस्ट के अभाव में देश के 1.38
अरब लोगों की जिंदगी खतरे में है और इस तरह उनके जीवन और लिबर्टी का
अधिकार प्रभावित हो रहा है।
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