SC issues notice on plea against media layoffs : सुप्रीम कोर्ट ने मीडिया कर्मचारियों की छंटनी पर जारी किया नोटिस
- सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एनवी रमन्ना, एसके कौल और बीआर गवई की बेंच ने कहा कि नेशनल एलायंस ऑफ जर्नलिस्ट, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट और बृहन्मुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिका, 'कुछ गंभीर मुद्दों' को उठाती है, जिस पर सुनवाई की आवश्यकता है।
देश में काफी सारे मीडिया संस्थानों द्वारा कर्मचारियों की छंटनी और देशव्यापी लॉकडाउन के बीच वेतन में कटौती करने के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसके मद्देनज़र अदालत ने एक नोटिस जारी किया है। नोटिस में केंद्र सरकार, द इंडियन न्यूजपेपर सोसाइटी और न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एसोसिएशन से जवाब मांगा गया है।
जस्टिस एनवी रमन्ना, एसके कौल और बीआर गवई की बेंच ने कहा कि नेशनल एलायंस ऑफ जर्नलिस्ट, दिल्ली यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट और बृहन्मुंबई यूनियन ऑफ जर्नलिस्ट द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिका, ‘कुछ गंभीर मुद्दों’ को उठाती है, जिस पर सुनवाई की आवश्यकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ‘और भी यूनियन यही कह रही हैं, सवाल है कि अगर व्यवसाय नहीं शुरू होता है तब लोग कितने समय तक टिके रह पाएंगे?’
- याचिका में क्या कहा गया है
दाखिल की गई याचिका में मीडिया कर्मचारियों को ‘अमानवीय
और अवैध तरीके’ से बाहर निकालने का आरोप लगाया गया है। इसमें केंद्र सरकार
द्वारा जारी की गई सलाह के साथ-साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा
सेवाओं को समाप्त नहीं करने या कर्मचारियों के वेतन को कम करने की तरफ भी
ध्यान दिलाया गया है। इसके बाद याचिका में कहा गया है कि इन सलाह के बावजूद, मीडिया उद्योग ने छंटनी और वेतन कटौती की है।
तमाम हिदायतें और कानूनी प्रवधान लोगों को नौकरी से निकालने, नौकरी ख़त्म करने और यहां तक की रद्द करने की अनुमति नहीं देते और बिना पूरी प्रक्रिया का पालन किए प्रकाशन को बंद करने की अनुमति नहीं देता, फिर भी मीडिया कंपनियों ने ये कदम उठाए हैं। इस बात से बेफ़िक्र होकर कि इतने कठोर लॉकडाउन में लोग घर से बाहर नहीं निकल सकते और नौकरी ढूंढने जाना तो बहुत दूर की बात है’।
यह दलील छह ऐसे उदाहरणों पर दी गई है- इंडियन एक्सप्रेस ने कर्मचारियों से वेतन में कटौती करने के लिए कहा, न्यूज नेशन ने अपनी अंग्रेजी डिजिटल टीम के 16 कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर दी, द टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी पूरी रविवार की पत्रिका टीम को निकाल दिया, द क्विंट ने 45 सदस्यों की टीम को बिना वेतन के छुट्टी पर जाने को कहा, और ब्लूमबर्ग क्विंट ने अप्रैल महीने के लिए वेतन में कटौती का संकेत दिया है।
याचिका में कहा गया है कि मीडिया घरानों द्वारा इस तरह की ‘मनमानी कार्रवाई’ पत्रकारों को अनिश्चित स्थिति में डालती है, और ‘मीडिया क्षेत्र पर एक बुरा प्रभाव’ भी डालती है और ‘लोकतांत्रिक तरीके से अपने कार्यों को करने के लिए मीडिया की क्षमता में बाधा भी पहुंचाती है’।
याचिका में मांग की गई है कि सभी टर्मिनेशन नोटिस, इस्तीफे जो मांगे गए हैं, वेतन में कटौती और बिना वेतन के छुट्टी पर जाने के निर्देश- जो लॉकडाउन के बाद जारी किए गए हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया जाए।
तमाम हिदायतें और कानूनी प्रवधान लोगों को नौकरी से निकालने, नौकरी ख़त्म करने और यहां तक की रद्द करने की अनुमति नहीं देते और बिना पूरी प्रक्रिया का पालन किए प्रकाशन को बंद करने की अनुमति नहीं देता, फिर भी मीडिया कंपनियों ने ये कदम उठाए हैं। इस बात से बेफ़िक्र होकर कि इतने कठोर लॉकडाउन में लोग घर से बाहर नहीं निकल सकते और नौकरी ढूंढने जाना तो बहुत दूर की बात है’।
यह दलील छह ऐसे उदाहरणों पर दी गई है- इंडियन एक्सप्रेस ने कर्मचारियों से वेतन में कटौती करने के लिए कहा, न्यूज नेशन ने अपनी अंग्रेजी डिजिटल टीम के 16 कर्मचारियों की सेवा समाप्त कर दी, द टाइम्स ऑफ इंडिया ने अपनी पूरी रविवार की पत्रिका टीम को निकाल दिया, द क्विंट ने 45 सदस्यों की टीम को बिना वेतन के छुट्टी पर जाने को कहा, और ब्लूमबर्ग क्विंट ने अप्रैल महीने के लिए वेतन में कटौती का संकेत दिया है।
याचिका में कहा गया है कि मीडिया घरानों द्वारा इस तरह की ‘मनमानी कार्रवाई’ पत्रकारों को अनिश्चित स्थिति में डालती है, और ‘मीडिया क्षेत्र पर एक बुरा प्रभाव’ भी डालती है और ‘लोकतांत्रिक तरीके से अपने कार्यों को करने के लिए मीडिया की क्षमता में बाधा भी पहुंचाती है’।
याचिका में मांग की गई है कि सभी टर्मिनेशन नोटिस, इस्तीफे जो मांगे गए हैं, वेतन में कटौती और बिना वेतन के छुट्टी पर जाने के निर्देश- जो लॉकडाउन के बाद जारी किए गए हैं उन्हें तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया जाए।
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