Mahabharat : तुम मेरी राखो लाज हरि


  • Mahabharat : तुम मेरी राखो लाज हरि

  •  कुरुक्षेत्र के युद्धक्षेत्र को विशाल सेनाओं के आवागमन की सुविधा के लिए तैयार किया जा रहा था,  इसमें हाथियों का इस्तेमाल पेड़ों को उखाड़ने और जमीन साफ करने के लिए किया जा रहा था । ऐसे ही एक पेड़ पर एक टटीरी (गौरैया) अपने पाँच बच्चों के साथ रहती थी, लेकिन बच्चे अभी अंडों के भीतर ही थे, अभी तक वे बाहर प्रकट नहीं हुए थे । जब उस पेड़ को उखाड़ा जा रहा था, तब उस टटीरी का घोंसला उसके अंडों सहित जमीन पर आकर गिर पड़ा । पर अण्डे टूटे नहीं, सुरक्षित रहे ।

  • कमजोर और भयभीत टटीरी मदद के लिए इधर-उधर देखती रही । तभी उसने भगवान श्रीकृष्ण को अर्जुन के साथ वहाँ आते देखा । वे महाभारत युद्ध से पहले युद्ध के मैदान का निरीक्षण करने के लिए वहाँ आए थे । टटीरी ने भगवान के रथ तक पहुँचने के लिए अपने पंख फड़फड़ाए और भगवान के पास पहुँचकर प्रार्थना की - 'हे प्रभु ! मेरे बच्चों की रक्षा कीजिए । कल युद्ध शुरू होने पर वे कुचले जाएंगे ।'
  • सर्वव्यापी भगवान ने ईशारे में कहा - 'मैं तुम्हारी बात सुन रहा हूँ, लेकिन मैं प्रकृति के कानून में हस्तक्षेप नहीं कर सकता।'
  •  टटीरी ने कहा - 'हे भगवन ! मैं जानती हूँ कि आप मेरे उद्धारकर्ता हैं । मैं अपने बच्चों के भाग्य को आपके हाथों में सौंपती हूँ । अब यह आपके ऊपर है कि आप इन्हें मारें या बचाएं !'
  •  भगवान किसी साधारण व्यक्ति की भांति बोले - 'हे गौरैया ! कालचक्र पर किसी का बस नहीं है ।'
  •  टटीरी ने विश्वास और श्रद्धा के साथ कहा - 'प्रभु ! आप कैसे और क्या करते हैं, वो मैं नहीं जान सकती । पर इतना जरूर जानती हूँ कि आप स्वयं काल के नियंता हैं । मैं सारी स्थिति, परिस्थिति एवं स्वयं को अपने परिवार सहित आपको समर्पित करती हूँ ।'
  •  भगवान ने कहा - 'सुनो, गौरैया ! जहाँ टटीरी के अण्डे वहीं पाँचों पण्डे । यदि इस युद्ध में तुम्हारे पाँच अण्डे सुरक्षित रहे तो समझो पाँचों पण्डे भी सुरक्षित रहेंगे । अब तुम भद्रकाली शक्तिपीठ में जाकर विश्राम करो और युद्ध के पश्चात पुनः अपने बच्चों से मिलना।'
  • टटीरी और भगवान के संवाद से अनभिज्ञ अर्जुन बार बार टटीरी को दूर भगाने की कोशिश करने लगे। टटीरी ने अपने पंखों को कुछ मिनटों के लिए फुलाया और प्रसन्नचित होकर कुरुक्षेत्र के भद्रकाली शक्तिपीठ में भगवान के चिन्तन में लीन हो गई ।
  • भगवान ने अर्जुन से कहा - 'अर्जुन ! अपना धनुष और बाण मुझे दीजिए ।'
  • अर्जुन चौंके, क्योंकि भगवान श्रीकृष्ण ने तो महाभारत के युद्ध में कोई भी शस्त्र न उठाने की शपथ ली थी । अर्जुन ने कहा - 'हे केशव ! आप मुझे आज्ञा दें, क्या करना है ? क्योंकि मेरे तीरों के लिए कुछ भी अभेद्य नहीं है ।'
  •  भगवान ने अर्जुन की बात का कोई जवाब दिए बिना अर्जुन से धनुष लेकर हाथी को निशाना बनाया। लेकिन हाथी को मारकर नीचे गिराने की बजाय तीर हाथी के गले में लटके हुए भारी घण्टे (टाल) में जा टकराया और एक चिंगारी सी उड़ी । यह देख अर्जुन अपनी हँसी को नहीं रोक पाए । उनको लगा कि श्रीकृष्ण एक साधारण सा निशाना चूक गए हैं । अर्जुन ने कहा - 'केशव ! क्या मैं प्रयास करुँ?'
  • अर्जुन की प्रतिक्रिया को नजरअंदाज करते हुए भगवान ने उन्हें धनुष वापिस कर दिया और कहा कि 'नहीं, अर्जुन ! इसकी कोई आवश्यकता नहीं है ।'
  • अर्जुन ने कहा - 'लेकिन केशव ! तुमने हाथी को क्यों तीर मारा ? और फिर हाथी को मारा भी नहीं । क्योंकि तीर तो हाथी के गले में लगे उस घण्टे (टाल) की जंजीर को ही लगा, जिससे जंजीर टूट गयी और वह घण्टा नीचे गिर गया ।
  •  भगवान मुस्कुराते हुए बोले - 'अर्जुन ! मैंने तीर हाथी को मारने के लिए नहीं छोड़ा था, बल्कि हाथी के गले में बंधे हुए उस टाल (घण्टे) को नीचे गिराने के लिए छोड़ा था ।'
  • अगले दिन रणक्षेत्र में दोनों ओर से शंखनाद की ध्वनि गूंज उठी और युद्ध प्रारम्भ हो गया । अठारह दिनों तक महाभारत का भयंकर युद्ध हुआ, जिसमें दुर्लभ दिव्यास्त्र तक चले । अन्त में पांडवों की जीत हुई । युद्ध समाप्त होने के पश्चात भगवान अर्जुन के साथ रणक्षेत्र में गए । जहाँ चारों तरफ हाथी, घोड़े व योद्धाओं की लाशों के ढेर लगे हुए थे ।
  • भगवान एक निश्चित स्थान पर रुके, जहाँ एक भारी घण्टा (टाल) पड़ा हुआ था । तभी भगवान ने टटीरी को आवाज दी । आवाज सुन टटीरी उड़ती हुई आयी और भगवान के चरणों में बैठ गई । भगवान ने अर्जुन को आदेश दिया - 'अर्जुन ! तुम इस 'टाल' को उठाओ ।'
  •  भगवान की आज्ञा पाकर जैसे ही अर्जुन ने वह 'टाल' उठाया तो उस टाल के नीचे टटीरी के पाँच छोटे छोटे बच्चों को पाया । टटीरी अपने बच्चों को सुरक्षित देख प्रसन्नचित हो गयी और प्रभु की करुणा को देखकर अर्जुन की आँखें भी नम हो गयीं । अब अर्जुन की समझ में आया कि युद्ध से पहले भगवान ने हाथी के गले से 'टाल' को नीचे क्यों गिराया था । टटीरी अपने पाँचों बच्चों सहित आनन्द पूर्वक प्रेमाश्रु लिए मन ही मन प्रभु का धन्यवाद करते हुए भगवान की परिक्रमा करने लगी ।
  •  आइए, हम भी इस भयानक वैश्विक महामारी कोरोना संकट के रहते हुए तब तक इस लॉकडाऊन रुपी 'टाल' के नीचे विश्राम करते हुए प्रभु का चिन्तन करें, जब तक कि यह 'टाल' हमारे लिए प्रभु कृपा से उठाया ना जाए ।

  • प्रस्तुत‌ि: गोपाल स्वामी* 'भागवत प्रवक्ता', वृन्दावनम - गाँव खैरी,  धर्मक्षेत्र कुरुक्षेत्र (हरियाणा)
 


Comments

Popular posts from this blog

PAGDANDI KA GANDHI