Narendra Modi answer to Gandhi Family : नरेंद्र मोदी जवाब दें

  • नरेन्द्र मोदी जवाब दें !


  • के. विक्रम राव

विपक्षी कांग्रेस के तीन मनोनीत अगुवाओं ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से पूछा है कि सीमा पर क्या चल रहा है ? देश को बताएं। सोनिया गांधी का सवाल है कि कितनी और कबसे चीन भारत भूमि कब्जाए है ? राहुल गांधी ने सचेत किया कि: “मोदी जी अब छुपिए नहीं| मौन खत्म कीजिए, बहुत हो चुका है। बताइए सीमा पर क्या हुआ है?” प्रियंका गांधी वाड्रा ने मां-भाई की भावनाओं को ही अलग शैली में दुहराया। विषय था कि विस्तारवादी चीन का गत सप्ताह लद्दाख पर हुआ हमला। बीस भारतीय सैनिक शहीद हुए।  अमरीकी उपग्रह की तस्वीरों के अनुसार चीन के 43 मरे और लाशें हेलिकॉप्टर से ले जाई गईं। 

मोदी को विस्तार से जवाब देना चाहिए, क्योंकि बात ऐतिहासिक है, भविष्य की सूचक भी है। वक्तव्य में राष्ट्रपति शी जिनपिंग को अपने अहमदाबाद आवास में झूला झुलाने से लेकर हाल ही की भेंट तक का उल्लेख भी हो। 

एशिया के दो महाबली पड़ोसियों द्वारा युगों से संजोए गए रिश्तों को सब जानते हैं। मगर कम्युनिस्ट चीन और लोकतान्त्रिक भारत के नए दौर की घटनाओं की तुलनात्मक प्रगति इन तीनों कांग्रेसियों को जानना जरूरी है। भाई-बहन के जन्म के पूर्व की बातें तो दुहरानी होंगी, ताकि स्पष्टता आ जाए। 

मसलन लद्दाख के वर्णन में समस्या क्या है,  यह बताना होगा। यहाँ आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री का ऐतिहासिक बयान सार्थक आधार हो सकता है।  राज्यसभा में (10 सितम्बर 1959)  जवाहरलाल नेहरू ने कहा था, “इससे बढ़कर मूर्खता नहीं होगी कि दो महान राष्ट्र (भारत और चीन) चंद पहाड़ी शिखरों पर कब्जे के खातिर युद्ध करें।” तो समझाना होगा कि इन्हीं बंजर पथरीली इलाके में लद्दाख से तिब्बत को शिनजियांग से जोडती हुई सड़क का चीन ने निर्माण किया है। यह भारत की भूमि पर है।  तभी निकट में ही लद्दाख के स्पंगगुर दर्रे में भारतीय पुलिस टुकड़ी को चीन की लाल सेना ने मार डाला था। यह वास्तविक नियंत्रण रेखा के समीप है। इस पर नेहरू का बयान लोकसभा में (28 अगस्त 1959) आया था। प्रधान मंत्री ने स्वीकारा कि चीन के प्रधानमंत्री झाऊ एनलाई ने वादाफरामोशी की थी।  सीमा के बारे में कहा कुछ, किया कुछ और नेहरु की व्यथा थी कि: “अब झाऊ मेरे भाई नहीं रहे|” तब नारा गूंजता था “हिंदी-चीनी भाई-भाई|”

यहाँ तात्पर्य यह है कि नेहरु की भांति मोदी के साथ भी चीन  ने सीमा विषय पर प्रवंचना की है, लेकिन नेहरु की तुलना में मोदी का कद और ज्ञान विदेशी मामलों में कम ही है। अतः सोनिया, राहुल और प्रियंका को एहसास तो होगा ही कि लद्दाख पर जब उनके महान पुरखे गच्चा खा गए तो यह साधारण चायवाला क्या हासिल कर पाता ?

माओवादी चीन ने अपने पड़ोसी कम्युनिस्ट वियतनाम पर (1978) हमला किया था। उसे हड़पने के  लालच से ग्रसित हो गया था। सोवियत रूस से शस्त्रों का लाभ लेकर मास्को को अंगूठा दिखा दिया। कपट किया। घोर चीन-विरोधी रिचर्ड निक्सन के अमरीका से याराना बना लिया। उसे भी छला। 

अब रहा सोनिया गाँधी का अगला प्रश्न कि कबसे चीन भारत भूमि पर अतिक्रमण कर रहा है?  चीन नब्बे हजार वर्ग किलोमीटर की भारतीय जमीन चाहता है।  पूरा अरुणांचल मांग रहा है। जब कोई अरुणांचली बीजिंग जाता  है, तो चीन उन्हें वीसा नहीं देता। कारण बताता है कि “स्वराष्ट्र (चीन) आने के लिए इन अरुणांचलियों को प्रवेश पत्र नहीं चाहिए|”

हां, सोनिया गांधी की सासू मां का अत्यंत आभार कि उन्होंने सिक्किम को बलपूर्वक भारतीय संघ में मिला लिया। वर्ना नाथू ला पर चीन तो बैठ ही गया था| इंदिरा गाँधी के प्रधानमंत्री काल में (1967) में नाथू ला पर सशस्त्र भिडंत हो चुकी थी। भारतीय भूभाग पर चीन हावी हो गया था| 

मोदीजी, राहुल को सूचित कर सकते हैं कि स्वातंत्र्योत्तर काल के 75 वर्षों में से बावन वर्ष कांग्रेस, उनके पिता, दादी और उनके पिता का शासन रहा। उसी वक्त  कश्मीर और पूर्वोत्तर हिमालय का विशाल भूभाग भारत ने गंवा दिया था, उसे भी तो अब मुक्त कराने की चर्चा हो।  सफाई के तौर पर नरेंद्र मोदी,  राहुल गांधी से जवाब में कह सकते हैं कि “मैं वही गलती कर बैठा, जो आपके दादी के पिताश्री ने की थी। मैं पडोसी से प्यार कर बैठा। उसने धोखा दे दिया।” तब प्रधानमंत्री झाऊ एनलाई (1955) थे। इस बार राष्ट्रपति शी जिनपिंग हैं|

राहुल गाँधी का आरोप है कि भारतीय सैनिक बिना शस्त्रों के सीमा पर थे।  सच्चाई उजागर कर मोदी राहुल को 1962 वाले चीन के हमले की हालत बयान कर दें। “तब आपके पुरखे (प्रधानमंत्री नेहरू) ने शून्य के नीचे बर्फीले तापमान में सूती मोज़े और साधारण स्वेटर पहना कर सैनिकों को भेजा था। वे ठंड से ही मर गए। चीनी आक्रामकों की गोलियां खर्च ही नहीं हुईं।  उस वक्त अक्षम कश्मीरी जनरल पण्डित विज्जी कौल, राहुल का दूसरा पुरखा, सीमा पर ही बीमार पड़ गया। रण छोड़ आया। उस दौर में भारतीय सेना की फैक्टरी में बजाय बारूद बनने के, एस्प्रेसो कॉफ़ी मशीनें निर्मित हो रही थीं। आज अत्याधुनिक शस्त्र तो बन रहे हैं। उस युद्ध में सैकड़ों हिन्दुस्तानी मारे गए। हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि चीन ने छीन ली। तब कवि प्रदीप ने वतन के लोगों के लिए आँखों में आंसू भरा गीत लिखा था।

फिलहाल बात लद्दाख की हो रही है। लोकसभा में नेहरु कह चुके थे कि लद्दाख में घास का तिनका भी नहीं उगता फिर माँ-बेटा क्यों बखेड़ा खड़ा कर रहे हैं? सीमा की सुरक्षा को चुनावी वोट से नहीं जोड़ना चाहिए। 

एक दृष्टान्त, कांग्रेसी प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री इतिहास में पहले राष्ट्रनायक थे, जिन्होंने विदेशी ताकत को उसी की जमीन पर पराजित किया था। उनकी नीति मोदी को अपनानी चाहिए। मार्शल अयूब खान ने श्रीनगर को हथियाने के लिए (सितम्बर 1965) सेना भेज दी। सेनाध्यक्ष जनरल जयंत चौधरी की राय पर शास्त्री जी ने भारतीय सेना को इच्छोगिल नहर पार करा कर लाहौर पर कूच का आदेश दिया था। श्रीनगर से पाकिस्तानी फौजी लाहौर भाग आए। कश्मीर बच गया| ऐसा ही अब लद्दाख में भारत करे। चीन से लगी सीमा पर, जहां चीन कमजोर हो उसे भारतीय सेना कब्जिया ले| फिर वार्ता द्वारा अदला बदली कर सकते हैं। उधर ताईवान, हांगकांग, तिब्बत आदि में भी जन-संघर्ष को समर्थन दें। इसे सोनिया राहुल को सुनाना चाहिए। समझाना भी।

और कांग्रेस को यदि अपनी लोकसभाई पराजय का ही केवल बदला लेना है तो फिर लद्दाख समस्या का उपयोग कर वे तीनों लोग भारत को और उसके प्रधानमंत्री को कमजोर कर सकते हैं। 


  • साभार @ के. विक्रम राव (वरिष्ठ पत्रकार). 
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E-mail : k.vikramrao@gmail.com

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