Friends Day : मित्रता करण दुर्योधन


आज मित्र दिवस है. जब जब यह दिन आता है या मित्रता कि बात होती है मुझे ये पंक्तियाँ याद आ जाती हैं. सचमुच, मित्रता हो तो कर्ण और दुर्योधन जैसी. देखिए जब कृष्ण ने कर्ण को बताया कि वे असल में पांडवों के भाई हैं और इसलिए कौरवों की ओर से युद्ध न करें तो कृष्ण को खरा जवाब मिला जो आज तक मित्रता की अनोखी मिसाल है. हम आप भी अपनी मित्रता को ज़रा परखें—

"सच है मेरी है आस उसे, मुझ पर अटूट विश्वास उसे 
हाँ सच है मेरे ही बल पर, ठाना है उसने महासमर 
पर मैं कैसा पापी हूँगा? दुर्योधन को धोखा दूँगा? 
"रह साथ सदा खेला खाया, सौभाग्य-सुयश उससे पाया 
अब जब विपत्ति आने को है, घनघोर प्रलय छाने को है 
तज उसे भाग यदि जाऊंगा, कायर, कृतघ्न कहलाऊँगा 
"कोई भी कहीं न चूकेगा, सारा जग मुझ पर थूकेगा 
तप त्याग शील, जप योग दान, मेरे होंगे मिट्टी समान 
लोभी लालची कहाऊँगा किसको क्या मुख दिखलाऊँगा?
"मैत्री की बड़ी सुखद छाया, शीतल हो जाती है काया,
धिक्कार-योग्य होगा वह नर, जो पाकर भी ऐसा तरुवर,
हो अलग खड़ा कटवाता है, खुद आप नहीं कट जाता है.
"जिस नर की बाह गही मैने, जिस तरु की छाँह गहि मैने,
उस पर न वार चलने दूँगा, कैसे कुठार चलने दूँगा,
जीते जी उसे बचाऊँगा, या आप स्वयं कट जाऊँगा,
"मित्रता बड़ा अनमोल रतन, कब उसे तोल सकता है धन?
धरती की तो है क्या बिसात? आ जाय अगर बैकुंठ हाथ.
उसको भी न्योछावर कर दूँ, कुरूपति के चरणों में धर दूँ.
"सिर लिए स्कंध पर चलता हूँ, उस दिन के लिए मचलता हूँ,
यदि चले वज्र दुर्योधन पर, ले लूँ बढ़कर अपने ऊपर.
कटवा दूँ उसके लिए गला, चाहिए मुझे क्या और भला?
 

Comments

Popular posts from this blog

mirror of society : समाज का आईना है "फीका लड्डू"