Indian men & women : दांपत्य की चक्की में फंसे भारतीय स्त्री पुरुष

 "दाम्पत्य की चक्की  में फंसे भारतीय  स्त्री पुरुष "




पुरुष ऐसे भी हैं, जो स्त्री से बात करते हुए घबराते हैं, जो जैसी भी  मिल गई उसने जो दे दिया खा लिया। बस उसी के बच्चों  के  होकर रह जाते हैं, मित्र भी बनाते हैं तो हमेशा मर्यादा में ही रहते हैं। कुछ ऐसे हैं जो बदमाशियां तो सारी कर लेते हैं, मगर बीवी को भनक नहीं लगने देते। उसका मूर्ख बनाकर रखते हैं, वे बड़े गर्व से कहती हैं कि हमारे ये तो बड़े सीधे हैं, ऐसे नहीं हैं। उन्हें पता नहीं होता, ये तो उस्ताद हैं, वही मूर्ख है।

  पुरुषों की ये तीसरी  नस्ल है, जो शादी से पहले भी इधर उधर कुछ गड़बड़ कर चुकी होती है तो उन्हें ये  आदत होती है ।फिलहाल मेरे बहुत नजदीक परिचय में  तीन स्त्रियाँ विषम परिस्थितियों से जूझ रही हैं। कारण हैं  उनके  पति  के विवाहेत्तर संबंध। एक तो कॉल गर्ल वाला है, एक का दोस्त की बीवी से रिश्ता है। दोस्त की बीमारी में उसकी मदद करने गया, उसे छोड़ बीवी की मदद ज्यादा जरूरी लगी। एक विधवा या तलाकशुदा से दूसरी शादी के चक्कर में है। दोस्त की बीवी वाला 67 वर्षीय, कॉलगर्ल वाला 60 वर्षीय और तलाकशुदा वाला 59 वर्षीय है। 60 और 58 के बच्चे अविवाहित हैं। जिनकी शादी लेट होती है, उनके बच्चे बुढ़ापे तक कुंवारे ही रहते हैं। उनकी भी लेट हो जाए तो फिर और लेट हो जाते हैं। बीवी सबकी हाउसवाइफ ही हैं। 68 रिटायर, 60 नौकरी से सस्पेंड और 58 अभी जॉब में है। समस्या ये है कि वे जैसे भी हैं, वो तो हैं। वे घर में खर्च भी नहीं देते। 68 की पेंशन है, 58 एक डेढ़ लाख रुपये महीना की जॉब में है। दो हजार भी घर में नहीं देता। 68 वाले की बीवी बहु बेटे के पास है। बेटे ने ही दो बहनों की शादी की थी। वह बहु के कान भरता है कि इसे यहीं रहने दो तुम्हारा ज्यादा खर्च हो रहा है। क्योंकि अब वह अकेला पड़ गया है। प्रेमिका के  बच्चे जवान हो गए हैं, बहुवें आ गई हैं, उसे शर्म आने लगी होगी या बहुवें सुनाती होंगी। जब मामला महिला आयोग में चला जाए, पति पुलिस बेटे से पिट जाए, उसके साथ आत्मीय रिश्ता बचता नहीं है। वह  अब सब्जी- आटा आदि ला देता है, क्योंकि खाना खाना है और कुछ नहीं देता। फल खाने हों बाहर खा लेता है।  पहले तो बच्चो ने ट्यूशन करके गुजारा किया। सब बच्चे अपने परिवार में रम गए हैं। 58 का बेटा चुप है, बेटी टोकती है तो पिता उससे भी कह देता है तुम सबको जो करना कर लो, मुझे उसी से ही शादी करनी है। तीनों हिंदू हैं। मुस्लिम स्त्रियों की ठेकेदारी लेने वाले क्या हर तीसरे चौथे घर में मौजूद ऐसी असहाय- विवश स्त्रियों के लिए इतना करेंगे  कि जब बच्चे अविवाहित हों, पति ऐसे गुल खिला रहा हो बीवी की केवल एक चिट्ठी पर  आधी तनख्वाह उसके  खाते में आए।

 होता यह है कि जब पत्नी को पति के गलत संबंधों की भनक लग जाती है, तो वह और कुछ कर तो नहीं पाती, उससे जिस्मानी संबंध खत्म कर लेती है। जिससे कुछ दिन तो वह खींच लेता है। बाद में अस्वीकार से बिलबिला उठता है। क्योंकि कई बार जहाँ संबंध बने वहाँ इतनी सुविधा -छूट नहीं मिलती है। वह अगर तलाकशुदा या विधवा है तो शादी की शर्त लगा देती है। ऐसे में पति की हालत घर का न घाट का वाली हो जाती है। शादी करता है तो बीवी- बच्चे, रिश्तेदारों, परिजनों, समाज आदि की नजर में हवसखोर अय्याश नीच व्यक्ति साबित होता है। सबकी नजरों से गिरता है। इधर बीवी उसे दूध से मक्खी की तरह निकाल कर फेंक चुकी होती है। वह उसके सारे काम करती है। बीमारी में दवा -सेवा भी बस दूरियां बरकरार रखती है। हिंदुस्तानी लड़कियां इस तरह साधकर सांचे में ढाली जाती हैं कि वे भूख- भोग के बिना जवानी में ही  ज्यादा परेशान नहीं होती हैं। वे बस धोखे और बेवफाई से दुखी होती हैं। मगर पुरुष बुढ़ापे में भी बुझते दिए सा फड़फड़ाता है। एक स्त्री जब किसी पुरुष को  शादी के बाद अपना  शरीर सौंपती है। वह मन आत्मा जिंदगी  इस विश्वास के साथ  सौंपती है। अब वह इसे सहेजकर रखेगा। आधे से ज्यादा पुरुष रखते भी हैं। मगर जो विवाह से पहले या बाद में किसी के साथ गहरे संबंध बना चुके होते हैं  और  उनका राज खुल भी जाता है तो ये स्थिति बनती है।

 अनेक पुरुष हमेशा यह सोचते हैं कि बाहर संबंध बन भी गए तो स्त्री को इस तरह संबंध खत्म नहीं करने चाहिए जबकि स्त्री के लिए ये उसके अस्तित्व का अस्वीकार होता है। वह इस सदमे से उभर नहीं पाती। बस दिन काटने है वाली स्थिति में आ जाती है। यहाँ भी पुरुषों की दो नस्लें हैं एक तो वह जो गड़बड़ तो करते हैं। मगर घर में किसी भी चीज पैसे आदि की कमी नहीं होने देते। मगर ज्यादातर दूसरी जगह रिश्ता बनते और पत्नी के अस्वीकार करते ही पैसे देने बिल्कुल बंद कर देते हैं। ये समस्या उनके लिए भी होती है जो लंबी गाड़ियों में पति की बगल में बैठी दिखती हैं। शादी ब्याह में हँसते मेकअप पुते चेहरे कितने बड़े दर्द के समंदर सीने में समेटे होती हैं। पैसे-पैसे के लिए मोहताज रहती हैं, कोई नहीं जान पाता। बस वे उन्हें इकट्ठे पकड़कर नचाने में मस्त रहते हैं। अनेक कामवालियों की स्थिति उनसे बेहतर होती है। बीमारी में उन्हें कोई दिखाने, पूछने वाला नहीं होता। यद्यपि पत्नी अस्वीकार में भी ध्यान रख लेती है। उम्र की ढलती शाम में अपने -अपने  जीवन में रम गए बच्चो के बाद इनका जीवन बहुत अकेला, अभाव ग्रस्त,  दुरूह और दुख से भरा होता है। जहाँ पत्नी कमाती है वह कम से कम अभावग्रस्त जीवन से बच जाती है।


  • डॉ पुष्पलता,
  • वरिष्ठ साहित्यकार, मुजफ्फरनगर (यूपी).

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