Sunder Lal Bahuguna ; सुंदर लाल बहुगुणा : मिट्टी पानी और बयार !

  •  मिट्टी, पानी और बयार !




 वर्ष 1993 में मैं टिहरी गया था, तब भागीरथी के दूसरे किनारे पर सुंदर लाल जी बहुगुणा टिहरी बांध के ख़िलाफ़ अनशन पर बैठे थे। नदी से कुछ ऊँचाई पर उनकी छोटी-सी कुटिया थी, उसी में वे रह रहे थे। मैं गंगोत्री मार्ग के दूसरी तरफ़ नदी पार कर उनकी कुटिया में गया मिला था। उस समय तक वे चिपको आंदोलन के कारण देश-विदेश में विख्यात हो चुके थे। उन्होंने और चंडी प्रसाद भट्ट ने इस पर्वतीय इलाक़े की हरियाली को बचाया। तब उत्तर प्रदेश की सरकार और उसके नौकरशाह उनको शत्रु की भाँति देखते और उन पर गुर्राते थे। लेकिन जैसे ही इस पर्वतीय क्षेत्र को अलग प्रांत बनाने की सुगबुगाहट शुरू हुई, उन्हीं नौकरशाहों और नेताओं ने उस हरीतिमा पर क़ब्ज़ा कर लिया। आज मैदान के लोग यहाँ बंगले बनवा कर अपना बुढ़ापा शान से काट रहे है। जबकि यही बंगलों वाले अफ़सर लोग तब बहुगुणा जी को भागीरथी में फ़ेक देने की धमकी दे रहे थे। चिपको आंदोलन के वक्त उनका नारा था- 


क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार।

मिट्टी, पानी और बयार, जिन्दा रहने के आधार।।


आज सबको इन शब्दों के अर्थ समझ आ रहे हैं। न उस समय न बाद में बहुगुणा जी में कोई अहंकार दिखा। वे चुपचाप अपना काम करते रहे, एक सच्चे गांधीवादी की तरह। ऐसे लोग कभी-कभार ही जन्म लेते हैं। आज ऋषिकेश के एम्स में 94 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया। उन्हें कोरोना हो गया था। वे बचाए नहीं जा सके। ऐसे महामानव को शत-शत नमन!


  • साभार: शंभूनाथ शुक्ल, वरिष्ठ पत्रकार 
  • लेखक कई प्रमुख दैनिक अखबारों  के  संपादक रह चुके हैं।

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