Chirag Paswan Vs Pashupati Paras in LJP : चिराग पासवान न तो विरासत संभाल पाए और न ही परिवार
चिराग पासवान न तो विरासत
संभाल पाए और न ही परिवार
मुबाहिसा: आर.के. मौर्य
दलितों के बड़े नेता और पूर्व
केंद्रीय मंत्री रहे रामविलास पासवान ने अपने निधन से पहले ही लोक जनशक्ति
पार्टी के सर्वेसर्वा अपने इकलौते बेटे चिराग पासवान को बना दिया था।
पार्टी में चिराग का प्रवेश ही सीधे वर्ष 2012 में संसदीय बोर्ड के अध्यक्ष
के रूप में किया गया था। उस समय पार्टी की कार्यसमिति की बैठक में मैं भी
राष्ट्रीय सचिव की हैसियत से मौजूद था, जिसका ऐलान रामविलास पासवान ने
भावुक होकर आंसु भरे नयनों से किया था, वहीं पासवान के दोनों भाइयों पशुपति
पारस और रामचंद्र (अब दिवंगत) की आंखों में भी आंसु थे, दोनों भाइयों के
ये आंसु कैसे थे?, इसको लेकर पहले आंतरिक और अब लोजपा के टूटने पर कई
चर्चाएं लोजपा में हो रही हैं। उस समय भी पार्टी में सुगबुगाहट थी कि
पासवान के इस फैसले को उनके राजनीतिक सहयोगी और बिहार में पार्टी की रीढ़
की हड्डी माने जाने वाले उनके भाई पशुपति पारस और रामचंद्र पासवान अंदर से
नहीं स्वीकार कर पा रहे हैं। इस बैठक से पासवान ने सीधे यही संदेश देने का
काम किया था कि अब उनके राजनीतिक और पारिवारिक वारिस चिराग पासवान हैं।
वर्ष 2014 के चुनाव में भाजपा नेतृत्व वाले एनडीए का हिस्सा बनकर छह और
2019 के चुनाव में सात सांसद बनने से चिराग पासवान लोजपा के लिए असली
"चिराग" कहे गए और पासवान के उस सपने "मैं उस घर में दिया जलाने चला हूं,
जहां सदियों से अंधेरा है" को लोजपा के लिए चिराग ने सही साबित किया। चूंकि
2009 के लोकसभा चुनाव में पार्टी की शर्मनाक हार के साथ ही पासवान के भी
हार जाने से लोजपा राजनीतिक गलियारे के अंधेरे में समा गई थी। ऐसे में
चिराग पासवान के एनडीए के साथ जाने के फैसले ने लोजपा के लिए राजनीतिक
गलियारे में उजाले का काम किया। नतीजा यह हुआ कि पासवान ने भी पुत्र मोह के
साथ ही उनकी योग्यता को मानते हुए लोजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष की बागडोर
भी चिराग को सौंप दी, इसको पारस आंतरिक रूप से नहीं स्वीकार कर पाए और वह
उचित समय के इंतजार में बैठ गए। जब यह साबित करने का वक्त आया कि चिराग
पासवान के एनडीए से अलग होकर बिहार में चुनाव लड़ने का फैसला गलत लिया था
और वह पार्टी नेताओं से सामंजस्य बैठाने तक में असफल हैं, तो चाचा ने चिराग
का तख्ता पलट कर दिया और स्वयं पार्टी पर कब्जा कर लिया। चिराग के पास
अच्छा अवसर था लेकिन उनके बिहार विधान सभा चुनाव अलग लड़ने के फैसले और
उसके बाद खुद मोदी का हनुमान साबित करने की होड़ ने उनको कहीं का नहीं
छोड़ा वह न तो रामविलास पासवान की विरासत को संभाल पाए और न ही अपने परिवार
को एकजुट रखकर तिनका-तिनका बिखरने से रोक पाए।
- लोजपा पर चाचा पारस का कब्जा
दिवंगत दलित नेता रामविलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी
पर उनके ही छोटे भाई हाजीपुर से सांसद पशुपति पारस ने कब्जा कर लिया है।
पार्टी के पांच सांसदों की चिठ्ठी अपने पक्ष में लोकसभा स्पीकर को सौंपते
पारस ने कहा है पार्टी सांसदों ने उनको अपना नेता और पार्टी ने उनको पार्टी
का राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना है। पारस के साथ आए एलजेपी
के पांच सांसदों में नवादा से चंदन कुमार,
समस्तीपुर से प्रिंस पासवान, खगड़िया से महबूब अली कैसर और वैशाली से वीणा
देवी शामिल हैं। पारस ने कहा सांसद चिराग पासवान के कामकाज से खुश
नहीं थे और पार्टी के अपने तरीके से चलाने से नाराज थे.
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक लोकसभा सचिवालय को पशुपति पारस के लोजपा नेता चुने जाने का पत्र मिला है, फिलहाल चिराग पासवान लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। सभी कानूनी पहलुओं की जांच के बाद ही लोकसभा सचिवालय किसी निर्णय पर पहुंचेगा।
मीडिया में आ रही खबरों के मुताबिक लोकसभा सचिवालय को पशुपति पारस के लोजपा नेता चुने जाने का पत्र मिला है, फिलहाल चिराग पासवान लोक जनशक्ति पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। सभी कानूनी पहलुओं की जांच के बाद ही लोकसभा सचिवालय किसी निर्णय पर पहुंचेगा।
- नीतीश से दुश्मनी चिराग को भारी पड़ी
- पारस को केंद्र में मंत्री बनाकर मिल सकता है लोजपा तोड़ने का इनाम
- मैंने पार्टी तोड़ी नहीं, बचाई : पारस
उन्होंने कहा कि भतीजे चिराग पासवान के लिए कहा कि अगर
वो चाहें तो पार्टी में रह सकते हैं। पिछले साल हमारे भैया रामविलास पासवान
का निधन हुआ, उससे पहले करीब 20 बरस उनके नेतृत्व में पार्टी बहुत बढ़िया
तरीके से चल रही थी। कहीं कोई शिकवा शिकायत नहीं था। मेरा दुर्भाग्य कहिए
कि मेरे बड़े भाई रामविलास पासवान और छोटे भाई रामचंद्र पासवान हमको छोड़कर
चले गए। मैं अकेला महसूस कर रहा हूं।'
पारस के मुताबिक कुछ असामाजिक
तत्वों ने आकर हमारी पार्टी में सेंध लगाई। अजीब तरीके से, किसी से दोस्ती
करेंगे, किसी से प्यार करेंगे, किसी से नफरत करेंगे। इसका परिणाम यह हुआ
कि बिहार में एनडीए गठबंधन कमजोर हुआ, लोक जनशक्ति पार्टी बिल्कुल समाप्ति
के कगार पर चली गई।- सबकी इच्छा थी कि बिहार चुनाव में एलजेपी एनडीए के पार्ट बनी रहे: पारस
पशुपति पारस ने कहा कि पार्टी के 99 फीसदी
कार्यकर्ता, सांसद, विधायक सभी की इच्छा के बाद हम 2014 में एनडीए गठबंधन
के पार्ट बने। सबकी इच्छा थी कि 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में एनडीए के
पार्ट बने रहें। स्वर्गीय पासवान की अंतिम इच्छा थी कि देश का दलित, गरीब,
उच्च जाति के गरीब का उत्थान हो। इसलिए उन्होंने दलित सेना और पार्टी का
गठन किया। मैं चाहता हूं कि उनकी यह इच्छा सफल हो। वे अमर रहें।
- जब तक मैं जिंदा हूं, एलजेपी जिंदा रहेगी: पशुपति
पारस ने आगे कहा कि हमारे दल में छह सांसद हैं। जिसमें
पांच सांसद की इच्छा है कि हमारी पार्टी का अस्तित्व खत्म हो रहा है, इसलिए
इसे बचा लीजिए। मैंने पार्टी तोड़ी नहीं है, मैंने पार्टी को बचाया है।
स्व. पासवान जी की आत्मा की शांति के लिए जब तक मैं जिंदा रहूंगा, एलजेपी
जिंदा रहेगी। चिराग पासवान हमारे भतीजे हैं, हमारी पार्टी के राष्ट्रीय
अध्यक्ष भी अभी तक हैं। मुझे चिराग पासवान से कोई शिकवा शिकायत नहीं है।
मुझे इससे आपत्ति नहीं है कि वो पार्टी में रहें।
- मैं नीतीश कुमार को अच्छा लीडर मानता हूं : पारस
सांसद पशुपति पारस ने कहा कि मैं एलजेपी के उन
कार्यकर्ताओं से अपील करता हूं जो दूसरे दलों में चले गए हैं, वे वापस
पार्टी के साथ जुड़ें। उन्हें जो भी सम्मान रामविलास पासवान देते थे, वही
सम्मान मिलता रहेगा। लोकसभा स्पीकर ओम बिरला को मैंने कल शाम आठ बजे पांच
सांसदों का पत्र दे दिया है। वो जब बुलाएंगे हम जाएंगे। हमारी पार्टी है,
हमारा संगठन है और रहेगा। हम एनडीए गठबंधन के साथ रहेंगे। मैं नीतीश कुमार
को अच्छा लीडर मानता हूं। वे विकास पुरुष हैं।
- चिराग को सभी पदों से हटाया
- पारस के घर गेट पर खड़े रहे चिराग पासवान, 30 मिनट बाद मिला प्रवेश
लोक जन शक्ति पार्टी के पांच सांसदों ने चिराग पासवान से
किनारा बना लिया
है. इसकी खबर आते ही राजनीति में भूचाल सा आ गया है. पांच सांसदों के अलग
होने की वजह बताई जा रही है कि ये चिराग पासवान के कार्यों से खुश नहीं थे.
कई तरह की खबरों के बाद चिराग पासवान अपने चाचा पशुपति पारस से मिलने के
लिए सोमवार को दिल्ली स्थित उनके सांसद आवास पर पहुंच गए। उनकी ओर से यह
डैमेज कंट्रोल की आखिरी कोशिश थी, जिसके लिए उन्होंने अपनी मां श्रीमती
रीना पासवान को भी आगे किया, लेकिन कोई लाभ नहीं हुआ। हालत यह रही कि
पासवान के सरकारी और निजी आवास में बेरोकटोक घूमने और पूरा दखल रखने वाले
पशुपति पारस के घर पर आधा घंटे तक गेट पर इस तरह खड़े रखा कि जैसे उनको
कोई जानता ही नहीं। जब चिराग वहीं खड़े रहे तो गेट खुला, लेकिन उस समय अंदर
पारस उनको नहीं मिले और वह बैरंग ही लौट आए।
- ...अब चिराग और रीना पासवान को गैर बिहारी साबित करने की होगी कोशिश...
दलित नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति पारस लोक जनशक्ति पार्टी पर कब्जा करने के बाद अब पासवान के पुत्र चिराग पासवान और उनकी दूसरी धर्मपत्नी रीना पासवान को गैर बिहारी साबित करने के लिए प्रयास करेंगे, ताकि लोजपा और पासवान की राजनीतिक जमीन बिहार से चिराग को हमेशा के लिए बेदखल किया जा सके।
- साभार : आर.के. मौर्य, वरिष्ठ पत्रकार
- लेखक लोजपा के संस्थापक सदस्य व पूर्व राष्ट्रीय सचिव रहे हैं
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