Uttrakhand's Indira : एक बहादुर इंदिरा का बिछड़ना

  •  एक बहादुर इंदिरा का बिछड़ना !!




  • के. विक्रम राव


        दक्ष शिक्षाविद्, हनकदार काबीना मंत्री, रौबीली नेता—प्रतिपक्ष, जुझारु ट्रेड यूनियनिस्ट, इन समस्त विशिष्टताओं के संवलित व्यक्तित्व का परिचायक थीं डा. इंदिरा हृदयेश पाठक। फौलादी महिला थीं, अपनी नामाराशी प्रधानमंत्री की मानिन्द। आज पूर्वाह्न काठगोदाम के पास रानीबाग के चित्रकला श्मशान घाट पर उमड़े जनसैलाब ने यही साबित किया। भाजपायी मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत, प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत को मिलाकर, हमारे सैकड़ों श्रमजीवी पत्रकार साथीगण नम नेत्रों से एक सुहृद को अलविदा कह रहे थे। 


        डॉ. इंदिरा हृदयेश का इंडियन फेडरेशन आफ वर्किंग जर्नालिस्ट्स (IFWJ) से करीब का नाता रहा। अटूट था, जो सिर्फ मौत ने तोड़ा। हमारे हर सम्मेलन में वे आतीं थीं। प्रदेश स्तरीय (हरद्वार में) या राष्ट्रीय (नैनीताल में) और राजधानी देहरादून में।


        एक बार सूचना और जनसम्पर्क मंत्री थीं तो तकरार की नौबत भी आ गयी थी। पंडित नारायणदत्त तिवारी (नेशनल हेरल्ड के स्तंभकार रहे) तब मुख्यमंत्री थे। इंदिरा हृदयेश उनकी सरकार की कान—नाक थीं। सूचना मंत्री से अधिक, चीफ रिपोर्टर जैसी थीं। नाराज होकर उन्होंने दैनिक ''उत्तर उजाला'' (गृहनगर हलद्वानी) के विज्ञापन निरस्त कर दिये। संपादिका सुश्री किरण भंडारी की शिकायत IFWJ को मिली। घटना 2006 की है। मैं उस दिन हलद्वानी में ही था। डॉ. इंदिरा नैनीताल जा रहीं थीं। मुझे कार में बैठाया और रास्ते भर समझाती रहीं कि मीडिया के नियम कड़ाई से लागू करना जरुरी हो जाता है। मगर फिर राहत दे ​ही दी, तर्क सुनकर।

 

       उसी यात्रा के दौरान नैनीताल राज्यमार्ग पर शिक्षक प्रदर्शनकारियों ने रास्ता रोक दिया था। मेरी स्वाभाविक हमदर्दी नारे लगाने वालों के साथ रहीं। मगर इंदिराजी की निजी सुरक्षा की मुझे भी फिक्र थी। पर वाह रे इंदिरा हृदयेश जी! उतरीं और भीड़ की ओर चलीं। मैं भी साथ हो लिया। स्त्री की वीरता की तुलना में कापुरुष मैं नहीं कहलाना चाहता था। पौन घंटे लगे। मंत्रीजी और नारेबाजों में वार्ता के। फोन पर देहरादून बात की। राजधानी पहुंच कर समाधान का वादा किया। और फिर जिन्दाबाद के नारे गूंजें। सड़क खुल गयी, हम आगे चले। पुलिसबल की बदौलत लोकसंपर्क करने वाले जननायकों को देख चुका था। अत: नैनीताल की सड़क वाला यह नजारा आह्लादकारी लगा। अगली भेंट पर मुख्यमंत्री पं. नारायणदत्त तिवारी को मैंने अवगत कराया कि यह लौह मंत्री उनकी मजबूत संगिनी है। डॉ. इंदिरा को जनांदोलनों से नजदीकी परिचय है। उनके पिता स्व. पंडित टीकाराम पाठक महात्मा गांधी के दाण्डी नमक सत्याग्रह में साथी रहे। साबरमती आश्रम में रहे थे।


       हमारे उत्तरांचल श्रमजीवी पत्रकार यूनियन के प्रांतीय सम्मेलन (25—26 मार्च 2006) में वे आईं थीं। हरिद्वार प्रेस क्लब द्वारा आयोजित इस जलसे का इसी सूचना मंत्री ने आगाज किया था। मेरी सदारत थी। संवाददाता मान्यता, वेतनमान लागू करना, विज्ञापन नीति आदि पर सम्यक विचार हुआ था। इसका आयोजन अध्यक्ष डॉ. आरके शुक्ल और महासचिव अविक्षित रमण ने किया था।


       सर्वाधिक यादगार अधिवेशन राष्ट्रीय स्तरवाला था प्रशासनिक प्रशिक्षण संस्थान (एडमिनिस्ट्रेटिव ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट), नैनीताल के सभागार में हुआ था (29 अगस्त 2006)। डॉ. इंदिरा हृदयेश ने शुभारंभ किया था। इसमें श्रमजीवी पत्रकारों के चौमुखी विकास पर परिसंवाद आयोजित था। विधानसभा में तब भाजपा विपक्ष और अधुना मोदी काबीना में शिक्षा मंत्री, डॉ. रमेश पोखरियाल ''निशंक'' विशिष्ट अतिथि थे। आईएफडब्ल्यूजे के गढ़वाल में जनपद इकाई के डॉ. निशंक पदाधिकारी भी रह चुके हैं। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष हरीश रावत खास मेहमान थे। रावतजी आईएफडब्ल्यूजे के बिरादर संगठन नेशनल फेडरेशन आफ न्यूजपेपर इम्प्लाइज यूनियन्स (NFNE) के राष्ट्रीय अध्यक्ष थे। मणिसाणा सिंह वेज बोर्ड में रावतजी बड़े मददगार रहे। प्रदेश यूनियन अध्यक्ष स्व. राकेश चन्दोला और महासचिव प्रयाग पाण्डे का आयोजन रहा। उनके सहयोगी थे बीसी भट्ट (लालकुआं) और पीसी तिवारी (अलमोड़ा)।


        डॉ. इन्दिरा हृदयेश के चले जाने से श्रमजीवी पत्रकारों  के हमदर्द, उत्तराखण्ड़ विधानसभा में एक गूंजती आवाज और प्रदेश के हजारों शिक्षकों का पुरोधा नहीं रहा। मगर घनघोर वर्षा तथा चमकती बिजली से आज ही आभास हो गया था कि अब स्वर्ग में भी उसी तेवर में इंदिराजी नजर आयेंगीं। 

  • साभार: 
  • K Vikram Rao, Sr. Journalist
  • Mob: 9415000909
  • Email: k.vikramrao@gmail.com

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