SunderLal Bahuguna : गांधी मार्ग के पथिक थे सुंदरलाल बहुगुणा


  • गांधी मार्ग के पथिक थे सुंदरलाल बहुगुणा


  • श्री सुन्दर लाल बहुगुणा स्मृति व्याख्यान की एक रपट
गांधीवादी स्वतंत्रता सेनानी, चिपको आंदोलन के प्रवर्तक तथा पर्यावरणविद् पद्मविभूषण श्री सुंदरलाल जी बहुगुणा की पावन स्मृति में नित्यनूतन वार्ता की ओर से एक स्मृति व्याख्यान का आयोजन दिनांक 30 मई को वेबिनार के जरिए किया गया।
स्मृति व्याख्यान के प्रारंभ में अपने स्वागत वक्तव्य में नित्यनूतन के मुख्य संपादक राम मोहन राय ने पत्रिका का परिचय दिया एवं श्री सुंदरलाल बहुगुणा, उनकी पत्नी श्रीमती विमला देवी बहुगुणा के स्वर्गीय निर्मला देशपांडे के बीच गहरे अंतरंग संबंधों को रखा।   25 अक्टूबर 2020 को उन्हें भी इस महान दंपत्ति  के दर्शन करने का सौभाग्य उनके देहरादून स्थित निवास स्थान पर जाकर मिला। उन्होंने उनका एक इंटरव्यू भी लिया तथा उनसे भेंट के संस्मरण को एक आलेख में भी प्रकाशित किया। उन्होंने कहा कि वे सौभाग्यशाली हैं कि उन्हें  बहुगुणा दंपत्ति का आशीर्वाद व स्नेह मिला।

    वेबिनार में श्री सुंदरलाल बहुगुणा के सुपुत्र तथा वरिष्ठ पत्रकार व समालोचक  राजीव नयन बहुगुणा  ने अपने पिता के बारे में कहा कि वह न केवल अपनी संतान के पिता थे अपितु हर उस व्यक्ति को अपना  स्नेह व आशीर्वाद प्रदान करते थे, जो रचनात्मक प्रवृत्तियों, पर्यावरण सुरक्षा एवं संरक्षण तथा गांधी के विचार के प्रति समर्पित हो । उनके पिता सदैव जनशक्ति पर विश्वास करते थे। इसलिए उन्होंने अपना संपूर्ण जीवन तथा कर्म भूमि उत्तराखंड के टिहरी जिला को ही बनाया। वे वही रहे, वही आंदोलन और उपवास किए। बेशक उनकी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय ख्याति थी,परंतु वे कभी भी देश व प्रदेश की राजधानी के आकर्षण में नहीं रहे। उनका मानना था कि गांव ही उनकी आधार शक्ति है और यदि गांव जगेगा तो यह देश भी जग जाएगा। इसलिए उन्होंने पहाड़ के गांव में ही अपना स्थायी  डेरा बनाया और अंत में गंगा के तट पर ही अपनी अंतिम सांस ली।

     राजीव नयन ने कहा कि उनके माता-पिता सदैव ही  प्रेरणादायी दंपत्ति बने रहेंगे। श्री सुंदरलाल बहुगुणा अपने युवा काल में राजनीति में सक्रिय थे तथा स्वतंत्रता की राह के पथिक थे। उनकी माता बिमला देवी नौटियाल भी मीरा बहन की शिष्या थी । जब उनकी माता की उनके पिता से रिश्ते की बात चली तो माता ने दो ही शर्ते रखी- एक तो उनके पिता सदैव के लिए राजनीति छोड़ देंगे और दूसरे गांव में रहकर महात्मा गांधी का काम करेंगे। उनके पिता ने अपनी होने वाली पत्नी की दोनों ही शर्तें मानी और सदा उस पर अडिग रहे।

    स्मृति व्याख्यान  के मुख्य वक्ता  गांधी प्रतिष्ठान के चेयरमैन और जयप्रकाश नारायण के मानस पुत्र के रूप में प्रसिद्ध कुमार प्रशांत ने कहा कि श्री सुंदरलाल बहुगुणा ने महात्मा गांधी विचार के मूल्यों से चिपक कर जीवन जिया । वे पर्यावरण के संरक्षण के लिए ही नहीं अपितु पर्यावरण को अपने जीवन में जीते थे। विश्व में गांधी से पहले मूल्यों पर जीना यदा-कदा ही होता था। परंतु यह बापू की वजह से ही संभव हुआ कि लोग अपने जीवन को बापू के ही सिद्धांतों पर जिए और उसी पर ही मरें। उन्होंने कहा कि महात्मा गांधी द्वारा संचालित दांडी यात्रा अहमदाबाद से दांडी तक ही नहीं थी, जब वे चले तो पूरा देश उनके साथ चला था।  महात्मा गांधी का यही जीवन संदेश था कि जहां रहो उसे ही कर्म भूमि बना लो। जिसे सुंदरलाल बहुगुणा दंपत्ति ने बखूबी अपनाया।
     
   प्रशांत ने कहा कि पर्यावरण का अर्थ पराया आवरण नहीं है, अपितु स्वयं को प्रकृति के अनुसार जीने का नाम है। यह कहना कोरा भ्रम है कि मनुष्य इस ब्रह्मांड का सर्वश्रेष्ठ जीव है। हर प्राणी अपनी-अपनी जगह पर अभूतपूर्व है। जो  किसी से भी कमतर नहीं है। प्रकृति हमसे अलग नहीं है। जिस तरह अपने जीवन में हमें अवकाश चाहिए, प्रकृति को भी चाहिए। उन्होंने महात्मा गांधी के शब्दों को उद्धृत करते हुए कहा कि कुदरत सबकी जरूरतों को पूरा कर सकती है, पर लालच पूरा नहीं कर सकती। लॉकडाउन के दिनों में हमने पाया कि हिमालय पर धुंध छटी है । जो गंगा नमामि गंगा प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी साफ नहीं हुई थी, वह गंगा साफ दिखी, वायुमंडल साफ हुआ,  पक्षीगण चहकने लगे, जो इस बात का सबूत है कि जब हमने प्रकृति को अवकाश दिया और अपनी स्वेच्छाचारिता से उसे मुक्त किया तो वह और अधिक उभर कर सामने आई। हमें संसाधनों के फिजूल उपयोग करने में कटौती करनी होगी। महात्मा गांधी गरीबी को एक अभिशाप मानते थे। वे चाहते थे कि पूरी दुनिया से गरीबी का समूल विनाश हो और ऐसा तभी संभव हो पाएगा जब मनुष्य अपनी जरूरतों को ही पूरा करेगा, लालच को नहीं। स्वर्गीय श्री सुंदरलाल बहुगुणा ने सत्य- प्रेम- करुणा के इसी मार्ग पर चलकर अपने जीवन को जिया।

   सृजन निकेतन, श्यामावन- गुप्तकाशी की मुख्य निदेशिका अर्चना बहुगुणा ने कहा कि रिश्ते में उनके नाना श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे तथा सदैव अपने जीवन दर्शन से युवाओं को प्रेरणा देते थे। उनकी अक्सर उनसे मुलाकात पारिवारिक मित्र मिलन के कार्यक्रम में होती थी तथा उन्होंने ही उन्हें असहयोग का गुरु मंत्र दिया था। उसी से प्रेरित होकर वे जनसेवा के कार्यों में जुटी ।     

   समाजसेवी  मनोहर लाल शर्मा चंडीगढ़ ने श्री सुंदरलाल बहुगुणा के साथ  अपने व्यक्तिगत आत्मीय संबंधों को रखा तथा कहा कि वे एक ऐसे  महामानव थे जिनका बताया हुआ रास्ता सदियों तक प्रेरणा देता रहेगा। युवा संवाद के संयोजक श्री अशोक भारत ने कहा कि उन्हें सौभाग्य है कि उन्हें श्री सुंदरलाल बहुगुणा के नेतृत्व में काम करने का अवसर मिला। उनकी कथनी और करनी एक थी। इसलिए लंबे समय तक अपने जीवन को जी सके।  भारतीय सेना में पूर्व जनरल गोवर्धन सिंह जमवाल ने कहा कि श्री सुंदरलाल बहुगुणा की प्रेरणा से ही उन्होंने जम्मू-कश्मीर में पर्यावरण के निमित्त कई बटालियन बनाई जो आज भी नवजागरण के काम में लगी हैं
   
    गांधी ग्लोबल फैमिली के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष पद्मश्री एसपी वर्मा ने श्री सुंदरलाल बहुगुणा के जम्मू-कश्मीर प्रवास के दौरान अपने अनेक संस्मरणों को रखा तथा कहा कि श्री बहुगुणा स्वयं में एक पर्यावरण संरक्षक के आंदोलन थे। जम्मू कश्मीर को अपना घर मानते थे ।अपनी हिमालयन यात्रा के दौरान वे कई माह तक इसी क्षेत्र में रहे तथा हजारों कार्यकर्ताओं को तैयार किया।
मिशन भारतीयम के संयोजक श्री रवि नितेश ने कहा कि उनकी हरदम इच्छा रही कि वे बहुगुणा दंपति के दर्शन करें। परंतु ऐसा अवसर न मिल सका। वह मानते हैं जब तक गांधीवादी मूल्य एवं सिद्धांत जीवित है ,तब तक श्री सुंदरलाल बहुगुणा भी रहेंगे। उनके पास जाने और समझने का मतलब है विचार के निकट पहुंचना।
   गांधी संग्रहालय दिल्ली के क्यूरेटर अंसारी अली  ने कहा कि श्री बहुगुणा जब भी दिल्ली आते थे, वे उनका आशीर्वाद अवश्य लेते थे। वे एक ऐसे महान व्यक्तित्व थे जो साक्षात गांधी विचार की प्रतिमूर्ति थे। प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कवि  दीपचंद निर्मोही ने कहा कि श्री सुंदरलाल बहुगुणा सदैव चिरयुवा रहे, ऐसा इसलिए भी कि उन्होंने कभी भी बालकों  एवं युवाओं से अपने को अलग नहीं माना तथा  सदा ही उनका भविष्य संवारने के लिए कार्यरत रहे।
 
   नित्यनूतन वार्ता के संयोजक एसपी सिंह ने सुंदरलाल बहुगुणा के जीवन परिचय की संक्षिप्त जानकारी दी तथा कहा कि वे ऐसे देदीप्यमान व्यक्तित्व थे, जिन्होंने अपने सत्याग्रह से दुनिया की बड़ी से बड़ी ताकतों को हिला दिया। टिहरी बचाओ, हिमालय बचाओ आंदोलन के वे प्रणेता रहे तथा अपने अन्य कार्यों से उन्होंने दुनिया भर में प्रसिद्धि प्राप्त की। माता रुक्मणी देवी संस्थान, बस्तर के संस्थापक अध्यक्ष एवम संत विनोबा के अनन्य शिष्य पदमश्री  धर्मपाल सैनी ने कहा कि गांधी का मार्ग ही बहुगुणा का मार्ग था। सत्य- प्रेम- करुणा उनके सत्याग्रह के हथियार थे। जिनको इस्तेमाल कर उन्होंने एक विजेता की ख्याति अर्जित की।

वार्ता में शोभित विश्वविद्यालय के कुलपति कुंवर शेखर विजेंद्र ने कहा कि बहुगुणा जी के सत्याग्रह चिपको आंदोलन में हमेशा प्रकृति के प्रति माँ का वात्सल्य और बाल हठ पूर्ण आग्रह रहा है। उनका हर प्रयास महिला सशक्तिकरण के संदेश को अपने अंदर समाहित किये रहा। उनका जीवन हम सबके लिए अभिनंदनीय एवं अनुकरणीय है। हर व्यक्ति कम से कम एक वृक्ष लगाकर श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी की पवित्र आत्मा को सच्ची श्रद्धांजलि दें। इस अवसर पर बरेली के विख्यात सामाजिक कार्यकर्ता श्री राज नारायण ने श्री बहुगुणा जी का पावन स्मरण करते हुए उनके साथ अपने संपर्क व्यवहार को रखा ।
अमर उजाला के वरिष्ठ पत्रकार राजेंद्र मौर्य ने कहा कि श्री सुंदरलाल बहुगुणा का संपूर्ण जीवन आम जनता को मनुष्यता प्रदान करने के लिए समर्पित था। श्री बहुगुणा ने पर्यावरण और वृक्षों की सुरक्षा के ल‌िए अर्द्ध शतक पहले आगाह किया था, इसको अब कोरोना महामारी के दौरान सभी ने समझा, जब देश में आक्सीजन की कमी से लाखों लोगों की मौत हो गई। अब लोगों की समझ में आ रहा है कि जितना प्रकृति द्वारा पदत्त पर्यावरण, वन संपदा, पानी मिट्टी  की रक्षा की जाएगी, उतना ही जीवन भी सुरक्षित और स्वस्थ्य होगा। बहुगुणा जो सच्ची श्रद्धांजली यही होगी कि हम पर्यावरण की रक्षा के ल‌िए काम करें। प्रकृति का न्यूनतम दोहण करें। श्री बहुगुणा जी का मानना था कि गैर बराबरी और समाज का विकास साथ- साथ नहीं रह सकते। इसलिए यह आवश्यक है कि तमाम गिरिजन तथा शोषित जन मिलकर अपनी आवाज़ उठाएं।

स्मृति व्याख्यान के अंत में वार्ता के सह संयोजक श्री विकास साल्याण  ने मुख्य वक्ता तथा अन्य वक्ताओं का आभार व्यक्त करते हुए सभी आगंतुक महानुभावों से निवेदन किया कि वे इससे जुड़े। वार्ता का यह प्रयास है कि समय-समय पर  महापुरुषों के जीवन एवं विचार से जुड़कर जन जागरण का काम करें ।
  • साभारः
  • राम मोहन राय, मुख्य सम्पादक, नित्यनूतन।













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