China & AMERICA : चीन-अमेरिका शीत युद्ध व उसके वैश्विक सरोकार

 चीन-अमेरिका शीत युद्ध व उसके वैश्विक सरोकार




चीन एवं अमेरिका के बीच शीतयुद्ध तथा उनके  संबंधों  का तीसरी दुनिया पर असर, विषय पर नित्यनूतन वार्ता के 362वें सत्र में चर्चा में मुख्यवक्ता प्रसिद्ध कवि एवं नवभारत टाइम्स के संपादक चंद्र भूषण रहे। श्रोताओं में वार्ता की दिलचस्पी व सक्रिय भागीदारी का अंदाज़ा इस बात से लगाया जा सकता है कि समय सीमा डेढ़ घंटे निश्चित होने के बावजूद यह सवा दो घंटे तक चली और इसमें प्रश्नों की झड़ी लगी रही।

 चंद्र भूषण जी, विषय के न केवल मर्मज्ञ विद्वान हैं, वहीं उन्होंने हर दृष्टि से उसका समग्र मूल्यांकन भी किया। मुख्य वक्ता बेशक किसी खास राजनीतिक विचारधारा के पक्षधर हों, परंतु अपने व्याख्यान में अपने विषय का हर पक्ष रखा, जो हर प्रकार के पूर्वाग्रहों से मुक्त था। चीन की राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक स्थिति को उन्होंने विकासशील बताया परंतु उनकी यह बात भी प्रासंगिक रही कि अमेरिका आज अनेक जातीय नस्लों, रंग व क्षेत्रों का एक सामूहिक समूह है और यह ही उसे संयुक्त राष्ट्र बनाता है जबकि अन्य देश अपने राष्ट्रवादी पहचान से मुक्त नहीं हो पाए।
चंद्र भूषण का मानना रहा कि यदि अमेरिका अपनी साम्राज्यवाद नीतियों को छोड़कर दुनिया को जोड़ने का काम करेगा तो तभी वह चीन का मुकाबला कर सकेगा ।

  सैटरडे फ्री स्कूल, फेलिडेल्फ़िया, अमेरिका के प्रतिनिधि अर्चिष्मान राजू ने वार्ता में भाग लेते हुए वहां रंगभेदवाद एवं  शोषण के अनेक उदाहरण दिए। इसके साथ-२ अर्थशास्त्री सुरेंद्र कुमार ने भी अपने तथ्यों से अमेरिकी आर्थिक नीतियों की वजह से वहां हो रही प्रगति को दूर के ढोल सुहावने बताया।

      वार्ता में बिमल शर्मा, आबिदा बेगम, राजेश बिंद्रा, नंदिता चतुर्वेदी, एमएल शर्मा, ममता कुमार, सीना शर्मा आदि ने भी अपने प्रश्नों को रखा। मुख्यवक्ता ने बहुत ही सहज ढंग से सभी के प्रश्नों का उत्तर दिया। वार्ता काफी रुचिकर रही तथा श्रोताओं का आग्रह रहा कि एक और दिन भूषण समय दे ताकि वे और अधिक जानकारी ले सके। वार्ता को कोऑर्डिनेट पत्रकार व शिक्षक अरुण कहरबा ने किया। नित्यनूतन विचार व पत्रिका का परिचय राममोहन राय ने दिया व उसका समापन एसपी सिंह ने आभार के साथ किया ।


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