MODI GOVT'S MINISTER L. MURUGAN: केंद्रीय मंत्री के मां बाप की मजदूरी सादगी या मजबूरी ?

  •  केंद्रीय मंत्री के मां बाप खेतों में करते हैं मजदूरी






  • मुबाहिसा : आर.के. मौर्य

   


  • तमिलनाडु के एल मुरुगन मोदी सरकार में बने हैं राज्यमंत्री
  • मुरुगन के मां बाप आज भी गांव में रहकर खेतों में करते हैं मजदूरी
  •  मां बाप के पास नहीं है खुद की कोई जमीन
  • बेटे की उपलब्धियों पर गर्व, लेकिन खुद्दारी से कोई समझौता नहीं 


भारत सरकार में राज्‍यमंत्री बनाए गए एल मुरुगन के मां बाप की इसे मजबूरी कहेंगे या उनका बेहद खुद्दारी वाला सादगी भरा जीवन जीने का अंदाज। भाजपा के इस नवोदित दलित नेता के मां-बाप को देखकर मन में यह पीड़ा और सवाल तो जरूर उठता है कि क्या यह वाकई सादगी भरा जीवन है कि सेवा से मुक्त होने की उम्र में ये बुजुर्ग दंपति दो वक्त की रोटी जुटाने के लिए दूसरों के खेतों और अन्य कार्यों में मजदूरी के वक्त  बेहद कष्ट सहते है, पसीना और कई बार खून बहाते देखे जाते हैं ?,  रोटी की कमी को पूरा करने के ल‌िए राशन की दुकान पर सरकार द्वारा प्रदान करने वाले सस्ते राशन को लेने के ल‌िए घंटों लाइन में लगे रहने को  क्या उनका सादगी भरा जीवन कहा जाएगा या मीडिया में कथित वाहवाही लूटने वाले इस दलित केंद्रीय मंत्री का उनके इस कष्टदायी जीवन को नजर अंदाज कर उनको उनके हाल पर छोड़ देने के हालात माने जाएंगे।


  •  कहीं यह बेटे द्वारा बुजुर्ग दंपति की अनदेखी तो नहीं ?

भाजपा द्वारा दलित नेता के रूप में तमिलनाडू भाजपा के प्रदेश मुखिया रहे मुरुगन को बिना सांसद बने ही केंद्र में राज्यमंत्री बनाया गया है। वह इससे पहले अनुसूचित जाति आयोग के भी उपाध्यक्ष रह चुके हैं। माना जाता है कि करीब एक दशक से वह सभी साधनों से लैस हैं। विधानसभा चुनाव के दौरान उनके द्वारा खुद की करीब ढाई करोड़ रुपये की संपति भी घोषित की गई है। वह उच्च न्यायालय में अधिवक्ता के तौर पर प्रैक्टिस करते रहे हैं। ऐसे में कानूनन भी उनको अपने माता-पिता की पूरी जिम्मेदारी निभानी चाहिए, लेकिन वे ऐसा न करके मीडिया में कथित वाहवाही   लूटने का काम कर रहे हैं और खुद राजसी जीवन व्यतीत कर रहे हैं। दूसरी ओर उनके माता-पिता न केवल अपनी बल्कि अपने दूसरे बेटे की मौत के बाद उसके परिवार का भी पालन पोषण कर रहे हैं।


  • लाइव कोनूर : साधन संपन्न दलित मंत्री के माता-पिता की दयनीय हालत 

तमिलनाडू के कोनूर में कड़ी धूप के वक्त 59 साल की एल वरुदम्‍मल एक खेत से खर-पतवार निकाल रही हैं। लाल साड़ी, चोली के ऊपर सफेद शर्ट पहने और सिर पर लाल गमछा लपेटे वरुदम्‍मल की सूरत गांव में रहने वाली किसी भी आम मजदूर महिला जैसी है। पास के ही एक खेत में 68 साल के लोगनाथन जमीन समतल करने में लगे हैं। दोनों को देखकर यह अंदाजा बिल्‍कुल नहीं होगा कि वे एक केंद्रीय राज्यमंत्री के माता-पिता हैं। बेटा एल मुरुगन इसी महीने केंद्र में राज्‍य मंत्री बनाया गया  है मगर ये दोनों अब भी खेतों में पसीना बहा रहे हैं। दोनों को अपने बेटे से अलग जिंदगी पसंद है, पसीना बहाकर कमाई रोटी खाना ही उनकी नियति बन गई है? यह सादगी भरा जीवन देखकर गर्व भी होता है लेकिन उनकी कष्टभरी जिंदगी देखकर बहुत ही अदिक पीड़ा भी। उनकी यह उम्र कम से कम रोटी के लिए इतना कष्टपूर्ण जीवन तो कतई कोई भी जीना नहीं चाहता है, वह उस बेटे के माता-पिता, जो साधन संपन्न है?

 


  • मैं क्या करूं अगर मेरा बेटा केंद्रीय मंत्री बन गया है

मोदी सरकार में मुरुगन के राज्यमंत्री बनने के बाद उनके पैतृक गांव में मीडिया के लोग निरंतर पहुंच रहे हैं। मीडिया के लोग उनके गांव पहुंचे तो मुखिया ने दोनों से बातचीत की इजाजत दे दी। मंत्री की मां वरुदम्‍मल हिचकते हुए आईं और कहा, "मैं क्‍या करूं अगर मेरा बेटा केंद्रीय मंत्री बन गया है तो?" अपने बेटे के नरेंद्र मोदी कैबिनेट का हिस्‍सा होने पर उन्‍हें गर्व तो है मगर वो इसका श्रेय नहीं लेना चाहतीं। उन्‍होंने कहा, 'हमने उसके (करिअर ग्रोथ) लिए कुछ नहीं किया।'


  • मंत्री बनने की खबर मिलने के बाद भी खेतों में डटे रहे


अनुसूचित जाति में शामिल अरुणथथियार समुदाय से आने वाले ये दोनों नमक्‍कल के पास एजबेस्‍टास की छत वाली झोपड़ी में रहते हैं। कभी कुली का काम करते हैं तो कभी खेतों में, कुल मिलाकर रोज कमाई करने वालों में से एक मजदूर परिवार हैं। बेटा बड़ा अधिवक्ता, नेता और अब केंद्रीय मंत्री बन गया है, पर इस बात से इनकी जिंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ी है। जब उन्‍हें पड़ोसियों से बेटे के मंंत्री बनने की खबर का पता चला, तब भी खेतों में काम कर रहे थे और खबर सुनने के बाद भी बिना रुके काम करते रहे।


  •  बेटे पर नाज मगर खुद्दारी बरकरार

मार्च 2020 में जब मुरुगन को तमिलनाडु बीजेपी का प्रमुख बनाया गया था, तब वे अपने माता-पिता से मिलने कोनूर आए थे। मुरुगन के साथ समर्थकों का जत्‍था और पुलिस सुरक्षा थी, मगर माता-पिता ने बिना किसी शोर-शराबे के बड़ी शांति से बेटे का स्‍वागत क‍िया। वे अपने बेटे की कामयाबियों पर नाज करते हैं, मगर स्‍वतंत्र रहकर अपना जीवन यापन करना ही उन्हें पसंद है।  पांच साल पहले उनके छोटे बेटे की मौत हो गई थी, तब से बहू और बच्‍चों की जिम्‍मेदारी भी यही बुजुर्ग दंपति संभालते हैं।


  • 'बेटे की लाइफस्‍टाइल में फिट नहीं हो पाए'


मुरुगन के पिता लोगनाथन के अनुसार, पह पढ़ाई में बड़ा तेज था। चेन्‍नै के आंबेडकर लॉ कॉलेज में बेटे की पढ़ाई के लिए उन्हें अपने दोस्‍तों से रुपये उधार लेने पड़े थे। मुरुगन बार-बार उनसे कहता कि चेन्‍नई आकर उनके साथ रहें। वरुदम्‍मल ने कहा, "हम कभी-कभार जाते और वहां चार दिन तक उसके साथ रहते हैं। हम उसकी व्‍यस्‍त लाइफस्‍टाइल में फिट नहीं हो पाए और कोनूर लौटना ज्‍यादा सही लगा।" मुरुगन ने केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल होने के बाद मां-बाप से फोन पर बात की। दोनों ने उनसे पूछा कि यह पद राज्‍य बीजेपी प्रमुख से बड़ा है या नहीं ?


  • अपनी नहीं ख्रेती की जमीन

गांव के मुखिया ने मीडिया से कहा कि बेटे के केंद्रीय मंत्री बन जाने के बावजूद दोनों के बर्ताव में कोई बदलाव नहीं आया है। गांव में ही रहने वाले वासु श्रीनिवासन ने कहा कि जब राज्‍य सरकार कोविड के समय राशन बांट रही थी तो लोगनाथन लाइन में लगे थे। उन्‍होंने बताया, "हमने उससे कहा कि लाइन तोड़कर चले जाओ मगर वो नहीं माने।" श्रीनिवासन के मुताबिक, दोनों अपनी सादगी के लिए जाने जाते हैं। उनके पास जमीन का एक छोटा सा टुकड़ा भी नहीं है।


  • दो मंत्रालयों का है प्रभार

मुरुगन के पास केंद्र में मत्‍स्‍य पालन, पशुपालन और सूचना तथा प्रौद्योगिकी मंत्रालय है। उन्‍हें दोनों विभागों में राज्‍य मंत्री बनाया गया है। मुरुगन ने 7 जुलाई को बाकी नए सदस्‍यों संग शपथ ली थी। वह इस साल विधानसभा चुनाव लड़े थे मगर डीएमके उम्‍मीदवार से हार गए।


  •  बिना सांसद ही बने मंत्री 

तमिलनाडु बीजेपी अध्यक्ष रहे एल मुरुगन केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया है। 1977 में तमिलनाडु के नमक्कल जिले के कोनूर में जन्मे मुरुगन ने अपनी एक साल की मेहनत से बीजेपी को चार सीटों पर व‍िजय द‍िलाई। मुरुगन बीजेपी तम‍िलनाडु अध्‍यक्ष बनने से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष थे। वह अभी किसी भी सदन के सदस्य नहीं हैं।

  एल मुरुगन को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की केंद्रीय मंत्रिपरिषद में शामिल किया गया। दरअसल तमिलनाडु में हाल में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी दो दशक बाद चार सीट जीतने में सफल रही थी। ऐसे में एल मुरुगन को इसी के पुरस्कार स्वरूप केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जगह दी गई है। माना जा रहा है क‍ि अच्‍छे प्रदर्शन के बलबूते ही मुरुगन को मोदी ने अपनी कैब‍िनेट में शाम‍िल क‍िया है। क्‍योंक‍ि मुरुगन जब मार्च 2020 में बीजेपी की तमिलनाडु इकाई के अध्यक्ष बने थे तब उनके पास विधानसभा चुनाव की तैयारी करने के लिए मुश्किल से एक साल का समय था। बावजूद इसके उनका प्रदर्शन शानदार रहा।

द्रविड़ विचारधारा की गहरी जड़ों के चलते तम‍िलनाडु में हिन्दुत्व को आगे रखने वाली पार्टी का नेतृत्व करना मुरुगन के लिए कोई आसान काम नहीं था, लेकिन उन्होंने अपने पूर्ववर्तियों के विपरीत जरूरत पड़ने पर 'सॉफ्ट द्रविड़ विचारधारा' को अपनाने में झिझक नहीं दिखाई और इसके साथ ही अपनी पार्टी के राष्ट्रवाद को भी बरकरार रखा। मुरुगन को केंद्रीय मंत्रिपरिषद में जगह मिलने पर राजनीतिक व‍िश्‍लेषकों का कहना है कि मुरुगन ने बड़ी मेहनत की, जिसकी वजह से पार्टी को राज्य में चार विधानसभा सीटों पर जीत मिली। वहीं, चुनाव में मुरुगन खुद भी बहुत कम वोटों के अंतर से हारे थे।



  •  दलित नेता के रूप में मुरुगन सक्र‍िय


  • बीजेपी नेताओं के मुताबिक  मुरुगन परिश्रमी, अत्यंत सक्रिय और ऊर्जावान युवा हैं। जब उन्हें पार्टी ने अपना प्रदेश प्रमुख बनाया तो उन्होंने इसे चुनौती के रूप में लिया। बीस साल से अधिक समय से जमीनी कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे दलित नेता मुरुगन बीजेपी में शामिल होने से पहले अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद और राष्ट्रीय सवयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े थे। उन्हें उनके संगठनात्मक कौशल के लिए भी जाना जाता है। 

  • धारापुरम से मात्र 1393 वोटों से हारे, राज्यसभा में जाने की तैयारी

मुरुगन धारापुरम (सुरक्षित) निर्वाचन क्षेत्र से 1,393 मतों के अंतर से विधानसभा चुनाव हार गए थे। द्रमुक सहयोगी के रूप में बीजेपी 2001 के विधानसभा चुनाव में चार सीट जीतने में कामयाब रही थी। इस बार अन्नाद्रमुक सहयोगी के रूप में बीजेपी ने जीत की वही कहानी दोहराई और चार सीटों पर जीत दर्ज की। मुरुगन प्रदेश बीजेपी प्रमुख बनने से पहले राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग के उपाध्यक्ष थे। उन्हें अब बीजेपी शासित किसी राज्य से राज्यसभा के लिए निर्वाचित किए जाने की उम्मीद है। कानून में पीजी करने वाले मुरुगन ने मानवाधिकार कानूनों में डॉक्टरेट भी की हुई है।


  • साभारः लेखक 
  • आर.के. मौर्य, वरिष्ठ  पत्रकार

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