मुंबई डायरीज 26/11 : गैर जिम्मेदार इलेक्ट्रानिक
      मीडिया को किया बेनकाब 
    
  
    
    
  - टीवी की लाइव रिपोर्टिंग बनी आतंकियों की मददगार
      
    
मुबाहिसा ः आर.के. मौर्य
    
  
    
    भारत में 26 नवंबर
      2011… मुंबई के लिए, महाराष्ट्र के लिए ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया के
      लिए एक ऐसी रात थी, जिसमें टेलीविजन पर इंसानियत को गोलियों से छलनी
      होते हुए देखा, बम विस्फोट में भाईचारे के चीथड़े उड़ते देखे। देश की
      अखंडता को चुनौती देते हुए आतंकवादियों के हाथों सैकड़ों मासूम लोगों
      को मरते देखा।  उस रात और उसके बाद के करीब 60 घंटों तक दुनिया ने
      देखा कि पाकिस्तान जैसा मामूली देश, हिंदुस्तान से नफरत करने के नाम
      पर उनकी सेना और आतंकवादियों के ज़रिये कैसे मुंबई जैसे महानगर पर
      हमला करता है और वहशत का एक ऐसा अश्लील नृत्य होता है, जिसे देखकर
      पत्थरदिल लोग भी पिघल कर रो पड़े थे। इसी पूरे मंजर को दिखाते हुए नौ
      सितंबर को प्रदर्शित हुई वेब सीरीज "मुंबई डायरीज 26/ 11" में
      निर्देशक निखिल अडवाणी और निखिल गोंसाल्विस द्वारा भारत के गैर
      जिम्मेदार इलेक्ट्रानिक मीडिया (टीवी पत्रकारिता) को भी बेपर्दा किया
      है।  वेब सीरीज मुंबई डायरीज 26/ 11 में इस आतंकी हमले के दौरान टीवी
      पर लाइव प्रसारण किस तरह आतंकियों के लिए मासूमों का रक्त बहाने के
      लिए सूचना का काम कर रहा था, इसको बाखूबी दिखाया गया है। हालांकि
      तमाम जांचों में पहले भी यह बात प्रमाणित हो चुका है कि टीवी का लाइव
      प्रसारण यदि न होता तो शायद  26/11 में बहुत लोगों की जिंदगी बच सकती
      थी। लेकिन गैर जिम्मेदार मीडिया अनजाने में ही सही अपनी व्यावसायिक
      प्रतिस्पर्धा में आतंकियों के लिए खुले मुखबिर बन गया, जिसको इतिहास
      कभी ही नहीं भुला पाएगा। वेब सीरीज में जहां हर ओर खून ही खून दिखाया
      है वहीं, पुलिस, प्रशासन, सरकार, चिकित्सकों और हमले में फंसे लोगों
      को अपने स्तर पर लोगों की जान बचाते हुए एक जिम्मेदार नागरिक के रूप
      में पेश किया है। बढ़िया निर्देशन का कमाल रहा कि यह वेब सीरीज हमले
      की हकीकत बयान करती नजर आती है। सीरीज में दुखों के पहाड़ की तलहटी
      में छोटे-छोटे सुखों के फूल खिलते दिखते हैं।  इस साल की सबसे अच्छी
      लिखी और निर्देशित वेब सीरीज के तौर पर इसे गिना जाएगा. कुछ एक जगह
      अगर छोड़ दें तो ये वेब सीरीज बहुत हद तक असली ज़िन्दगी से मिलती
      जुलती है.
      
 
  
    - अस्पताल में सुविधाओं का अभाव,  चिकित्सकों ने बचाई कई जान 
26/11
 मुंबई हमले में जो लोग भी गोलियों का शिकार हो रहे थे उन्हें कामा 
हॉस्पिटल (फोर्ट एरिया) में लाया जा रहा था। मूलतः यह हॉस्पिटल बच्चों और 
औरतों के लिए बनाया गया था। 1886 में शुरू हूए इस हॉस्पिटल की हालत किसी 
सरकारी अस्पताल जैसी ही थी।  हमले में
      घायल लोगों को इसी हॉस्पिटल में लाया जा रहा थाा। "मुंबई डायरीज 
26/11"  वेब सीरीज में किस
      तरह से डॉक्टर्स अपनी निजी ज़िन्दगी से जूझते हुए न्यूनतम सुविधाओं
      और उपकरणों से इन सभी घायलों का इलाज करने की कोशिश करते
      हैं, ये दृश्य सीरीज को यथार्थ के नजदीक ले जाती है। जब अजमल कसाब और
 उसके साथी अबू इस्माइल ने
      एटीएस चीफ हेमंत करकरे, इंस्पेक्टर कामटे, एनकाउंटर स्पेशलिस्ट विजय
      सालस्कर और उनके साथियों की गाडी पर गोलियों की बौछार कर उन्हें मार
      डाला था, तो वो सभी कामा हॉस्पिटल लाए गए थेे। इसके बाद अबू और अजमल
      की गाडी को पुलिस बैरिकेडिंग की मदद से घेर लिया गया था। एनकाउंटर
      में अबू वहीँ मारा गया और अजमल कसाब को पकड़ लिया गया था। इन दोनों
      को भी कामा हॉस्पिटल ही लाया गया था।
  
    -   मूल कहानी में कई बदलाव किए गए
      वेब सीरीज में यश छेतीजा, अनुष्का मेहरोत्रा जैसे नए लेखक और निखिल अडवाणी की टीम
      के पुराने साथी निखिल गोंसाल्विस और संयुक्ता चावला शेख ने मूल कहानी का आधार लेकर कुछ फेरबदल किए हैं। कामा हॉस्पिटल के
      अंदर आतंकी हमले में क्या-क्या हुआ था इसकी जानकारी पूरी तरह से कभी
      सामने नहीं आई, लेकिन इस वेब सीरीज में हॉस्पिटल के काम करने के
      तरीके, उसमें आने वाली अड़चनों, स्टाफ और उपकरणों की कमी जैसे पहलुओं
      को काफी अच्छे से दिखाया गया है. चूंकि वेब सीरीज हॉस्पिटल में काम
      करने वालों पर बनी है, इसलिए आतंकी हमला कहानी को निगलने की नहीं
      बल्कि दिशा देने का काम करता है। लेखकों की एक बैलेंस्ड पटकथा लिखने के लिए प्रशंसा करनी चाहिए। 
 
  
    - मंझे कलाकार दिखे मोहित रैना
 
अस्पताल में डॉक्टर कौशिक ओबेरॉय की भूमिका में मोहित
 रैना ने जिस तरह का अभिनय
      किया है, उसको देखकर कहा जा सकता है कि वह एक मंझे हुए कलाकार हैं और
 उनसे भविष्य में अच्छी कहानी में अच्छे रोल और अच्छे निर्देशक मिलने पर 
बहुत कुछ उम्मीद की जा सकती है। पूरी सीरीज में उन्होंने एक कर्तव्यपरायण 
डॉक्टर की
      भूमिका निभाई है, जो इलाज करने के लिए प्रोटोकॉल पर निर्भर नहीं है।
      एटीएस चीफ को बचा पाने में उनकी असमर्थता की वजह से वो पकडे़ गए
      आतंकवादी का इलाज करना नहीं रोकते. जबकि एटीएस के अन्य अधिकारी उनकी
      इस हरकत की वजह से उनके खिलाफ हो जाते हैं, उनपर बन्दूक तान दी जाती
      है और मीडिया उन्हें खलनायक बनाने में लग जाता है. श्रेया धन्वन्तरि 
एक
      बार फिर एक तूफानी जर्नलिस्ट की भूमिका में हैं और पहली बार जब वो
      अपनी रिपोर्टिंग के दुष्परिणाम देखती हैं तो उनके चेहरे पर जो
      आत्मग्लानि के भाव आते हैं, वो उनके किरदार को निखारता है। 
      
  
    - खूब जमीं कोंकणा सेन शर्मा 
फिल्मी दुनिया में काफी दिनों से अलग-थलग पड़ीं कोंकणा सेन शर्मा इन दिनों 
एक के बाद एक वेब सीरीज में नजर आ रही हैं।  "मुंबई डायरीज 
26/11" में उनका रोल अपेक्षाकृत कम है, लेकिन एक हिंसक पति से
      परेशान कोंकणा कैसे मरीज़ों के लिए अपनी दबी हुई पर्सनालिटी से लड़ती
      रहती हैं, वो सिर्फ कोंकणा ही कर सकती थी। हॉस्पिटल के चीफ के रोल 
में
      प्रकाश बेलावड़ी अद्भुत हैं। हॉस्पिटल में ड्यूटीज्वाइन करने के पहले
      ही दिन इतने बड़े हादसे से जूझते और अपने जीवन की कठिनाइयों से लड़ते
      तीन ट्रेनी डॉक्टर – मृण्मयी देशपांडे (छोटे शहर की अनुसूचित जाति की
      लड़की, जिसे हर कदम पर उसकी जात का एहसास कराया जाता है), नताशा
      भरद्वाज (अपने सक्सेसफुल कैंसर सर्जन पिता की अमेरिका से पढ़ कर लौटी
      डॉक्टर बेटी जो पिता की महत्वकांक्षा में पिस चुकी है और डिप्रेशन की
      दवाइयां खाती रहती है) और सत्यजीत दुबे (जो मुस्लिम होने का टैग लेकर
      जी रहा है और एक अच्छे इंसान के रूप में खुद को साबित करने में लगा
      रहता है). टीना देसाई (डॉक्टर कौशिक की पत्नी और होटल की गेस्ट
      रिलेशन्स मैनेजर) जब होटल में फंसे गेस्ट्स को सुरक्षित निकालने के
      लिए अपनी जान की परवाह न करने में जुटी रहती हैं तो उनके दिमाग में
      अपने पति से टूटते रिश्ते और असमय गर्भपात के अवसाद भारी होता है।
      सन्देश कुलकर्णी ने एसीपी महेश तावड़े की भूमिका में बहुत खूब
      परफॉरमेंस दिया है। इस सीरीज में इस बात का खास ख्याल
      रखा गया है कि किसी भी पुलिस वाले की कोई निजी कहानी नहीं दिखाई है
      और अन्य पात्रों की निजी कहानी को दिखाते हुए बोझिल नहीं किया गया 
है। पूरा फोकस मुख्य विषय पर ही अंतिम तक केंद्रीत रहता है। 
 
  
    - कर्तव्य परायणता का अच्छा संदेश 
 
"मुंबई डायरीज 
26/11" सीरीज में पुलिस, होटल कर्मी, चिकित्सालय का पूरा स्टाफ अपने 
कर्तत्व के पालन में पूरी तरह जुटा दिखता है। मीडियाकर्मी भी अपने कर्तव्य 
का पालन करने में अपनी जान जोखिम में डालते हैं । न्यूजरूम का तनाव भी 
दिखता है, लेकिन इस व्यवसायिक प्रतिस्पर्धा में वे अपनी देश के प्रति 
जिम्मेदारी को कहीं न कहीं भूलते दिखते हैं, इसी अज्ञानता का लाभ आतंकी 
संगठनों ने भरपूर ढंग से उठाया, जिसके परिणास्वरूम आतंकवादी 172 लोगों की 
निर्मम हत्या और सैकड़ों को घायल करने के साथ ही अरबों रुपये का नुकसान 
करने में सफल हो गए। गैर जिम्मेदार मीडिया की लाइव कवरेज का ही नतीजा रहा 
कि इस आतंकी हमले की भी गूंज और सनसनी आज तक महसूस की जाती है और अमेरिका 
के 9/11 हमले की तरह मुंबई 26/11 हमला भी  पूरी दुनिया को हिला देने वाला 
बड़े आतंकी हमले में शामिल हो गया। 
      
  
    - 
      "मुंबई डायरीज 
26/11" के सफलता के मुख्य कारण 
      "मुंबई डायरीज 
26/11" सीरीज की सफलता में इसके बैकग्राउंड म्यूजिक का भी बड़ा हाथ है.
      संगीत आशुतोष पाठक का है जो कि इंडिपेंडेंट म्यूजिक इंडस्ट्री में
      सबसे सफल म्यूजिशियंस में से एक हैं। जावेद जाफरी का बहुत चर्चित
      गाना ‘मुम्भाई’ के पीछे भी आशुतोष का ही दिमाग है. नेटफ्लिक्स की
      सीरीज जामतारा के सिनेमेटोग्राफी से अचानक चर्चा में आए
      सिनेमेटोग्राफर कौशल शाह ने कैमरा कुशलता से संचालित किया है।
      भावनात्मक दृश्यों में उनका कैमरा बहुत ही प्रभावी रहा है। निर्देशक
      मिलाप ज़वेरी के भाई माहिर ज़वेरी ने एडिटिंग की कमान संभाली है।
      माहिर सच में माहिर हैं। एक भी पल बोरिंग नहीं है। घटनाएं लंबी नहीं
      खींची गई हैं। किसी भी किरदार की बैक स्टोरी को इतना नहीं बताया गया
      है कि मेडिकल ड्रामा की मूल कहानी से ध्यान भटक जाए। मुंबई डायरीज
      जीत है निखिल अडवाणी की, लेखकों की, अभिनेताओं की और कविश सिन्हा की।
      कविश ने कास्टिंग की है। एक भी अभिनेता ऐसा नहीं है, जो अपने किरदार 
में फिट नहीं होता हो। सीरीज में अनावश्यक अश्लीलता या रोमांस से भी परहेज 
करके निर्देशक ने इस सीरीज को अन्य सीरीज से अलग कर दिया है।  
- आर.के. मौर्य. वरिष्ठ  पत्रकार.
- नई दिल्ली  
 
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