Meghalaya Governor SatyaPal Malik shows Modi the real face in the election mirror up election 2022 farm laws there was no fear of political loss only in up and punjab and loss of seats only in western up the anger ofthe people was clearly visible to the bjp mps and mlas

  • मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने दिखाया प्रधानमंत्री और भाजपा को चुनावी आईने में असली चेहरा


                          मुबाहिसा : आर.के.मौर्य

 

भाजपा को सिर्फ यूपी और पंजाब में सियासी नुकसान का ही डर नहीं था, बल्कि  सांसदों-विधायकों को साफ दिख रहा था कि गांवों में गुस्साए किसानों के सामने वे ठहर नहीं पाएंगे लेकिन कोई भी सांसद या विधायक तो दूर कोई भी पार्टी का कद्दावर नेता इतनी हिम्मत नहीं जुटा पाया कि वह प्रधानमंत्री मोदी को उनके ऐच्छिक कानूनों की जमीनी हकीकत से  रूबरू करा सके। तमाम गोदी मीडिया और चाटुकर नेताओं के कारण मोदी के अड़ियल रुख के सामने विपक्ष की आवाज भी अनसुनी हो गई।

  • ...तो करनी पड़ी काले कानून वापस लेने की घोषणा

ऐसे में भाजपा के वरिष्ठ नेता और किसान के सच्चे सपूत मेघालय के सत्यपाल मलिक ने अपनी कुर्सी और हैसियत की परवाह किए बगैर भाजपा नेतृत्व और विशेष रूप से पीएम मोदी को चुनावी आईने में भाजपा का असली चेहरा और जमीनी हकीकत से बहुत ही दमदारी के साथ रूबरू कराया। साथ में उपचुनाव के परिणाम ने भाजपा के सत्ता गलियारे में खतरे की घंटी के दर्शन कराए। तो परिणाम सामने है कि जो मोदी सैकड़ों किसानों की जान जाने के बावजूद रास्ते में कांटे बिछा रहे थे, किसानों को आंदोलन जीवी, आतंकवादी कह रहे थे। उन्हें ही माफी मांगने के साथ इन काले कानूनों को वापस लेने की घोषणा  करनी पड़ी।

  • वेस्ट यूपी, पंजाब और हरियाणा में अधिक असर

किसान आंदोलन सीधे तौर पर पश्चिमी यूपी की 100 से ज्यादा सीटों और पंजाब, हरियाणा की सियासत पर असर डाल रहा था। इसके साथ ही भाजपा के कुछ सांसदों-विधायकों की चिंता उससे भी कहीं ज्यादा यह थी वे इस हालात में राज्यपाल सत्यपाल मलिक के कहे मुताबिक गांवों में घुस तक नहीं पाएंगे। जैसे-जैसे चुनाव करीब आ रहे हैं,  वैसे-वैसे उनका धैर्य जवाब दे रहा था। 

  • भाजपा सांसदों और विधायकों ने ली राहत की सांस

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार (19 नवंबर) को तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा की,  तो न केवल किसान खुश हुए बल्कि उत्तर प्रदेश, हरियाणा उत्तराखंड और पंजाब के सांसदों और विधायकों ने भी राहत की सांस ली है। क्योंकि आगामी पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव में किसान आंदोलन एक बड़ा मुद्दा बनने जा रहा था, जिसमें पार्टी को एक बड़े नुकसान की आहट साफ सुनाई दे रही थी। लेकिन अब भारतीय जनता पार्टी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा देर से सही पर तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने की घोषणा कर दी गई। 

भाजपा नेताओं को उम्मीद है कि पीएम की इस घोषणा के बाद  विपक्ष के हमले की धार अब कम होगी, जो बीते कुछ महीनों से काफी तेज हो गई थी। इन पांच विधान सभा चुनावों में कम से कम दो राज्यों उत्तर प्रदेश और पंजाब में  किसान आंदोलन एक ज्वलंत मुद्दा था। कई भाजपा नेताओं ने दबी जुबान से कहा भी है कि समझ ही नहीं आ रहा था कि जो नुकसान होने जा रहा है, उसका हल क्या निकालें? 

  • उपचुनाव नतीजों ने बजाई खतरे की घंटी

एक वरिष्ठ भाजपा नेता ने बताया कि ‘जमीनी रिपोर्ट तो हर राज्य से मिल रही थी कि किसान आंदोलन हमारे खिलाफ विपक्ष को एक मजबूत हथियार दे रहा है लेकिन हिमाचल प्रदेश में हाल के उपचुनावों के नतीजों ने खतरे की घंटी बजा दी। उससे पहले लखीमपुर खीरी में हुई हिंसा ने तो भाजपा को और डरा दिया था, क्योंकि इसने भाजपा के खिलाफ माहौल खराब करने में बड़ी भूमिका निभाई। हालांकि केंद्रीय गृह राज्यमंत्री मिश्रा पर कार्रवाई न होने के नुकसान जारी है। पार्टी के कुछ नेताओं को उम्मीद जरूर बंधी है कि तीनों कृषि कानूनों को वापस लेने से उसे पश्चिमी यूपी में खोई हुई जमीन और पूरे प्रदेश में किसानों का भरोसा वापस पाने में मदद मिलेगी। 

  •  विशेषज्ञ की राय

सेंटर फॉर द स्टडी ऑफ डेवलपिंग सोसाइटीज (सीएसडीएस) के निदेशक संजय कुमार ने इस बाबत मीडिया से कहा है कि  किसान आंदोलन का सबसे ज्यादा असर उत्तर प्रदेश और पंजाब में देखा जा रहा था। खासतौर पर पश्चिम उत्तर प्रदेश में, जहां 100 और 120 के बीच सीटों की एक बड़ी संख्या पर किसान वोट का प्रभाव है। विपक्ष इन कानूनों और किसान आंदोलन को लेकर उत्तर प्रदेश खासकर पश्चिमी यूपी की सियासत गरमाए हुए था। चुनाव में इस मुद्दे को जोर-शोर से उठाने की  तैयारी थी। बड़ी संख्या में जाट यहां भाजपा से नाराज दिख रहे थे। पार्टी इतने बड़े वोट बैंक को नाराज करने का जोखिम नहीं उठा सकती थी। 


  • भाजपा को पश्चिमी यूपी में जनाधार खिसकने का डर था

किसान आंदोलन शुरू होते ही पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान भी इसमें शामिल होने लगे। देखते-देखते इसका असर पूरे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में देखा जाने लगा। भाजपा के लिए यहां स्थितियां तेजी से तब बदली जब पांच सितंबर को मुजफ्फनगर में 'किसान महापंचायत' का आयोजन किया गया। इस महापंचायत में किसान नेताओं ने खुलकर भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।  इस महापंचायत में लाखों किसानों ने हिस्सा लिया था। यह पिछले 25-30 सालों में हुई सबसे बड़ी किसानों की सभा मानी गई। महापंचायत के बाद भाजपा की चिंता की वाजिब वजह भी समझ में आती है। ये महापंचायत उस क्षेत्र में हुई जिसकी बदौलत भाजपा ने पिछले तीन चुनावों में उम्दा प्रदर्शन किया था।

 2012 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने पश्चिमी उत्तर प्रदेश की कुल 38 सीटें जीतीं, जबकि यहां राष्ट्रीय लोकदल का प्रभाव था। लेकिन 2013 में हुए मुजफ्फरनगर दंगों के बाद राजनीतिक माहौल बदला और 2014 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को यहां जबरदस्त जनसमर्थन मिला। इसके बाद साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव में भाजपा को यहां 88 सीटों पर जीत मिली।

  •  उम्मीद ज्यादा, खतरा अभी कम नहीं

राजनीतिक गलियारे में कहा जा रहा है कि कोरोना,  बढ़ती महंगाई, बेरोजगारी तो मुद्दे थे ही, किसान आंदोलन उस जले पर नमक छिड़कने जैसा। इन सब मुद्दों को लेकर सरकार के प्रदर्शन को मापा जा रहा। यदि  आंदोलन को खत्म करने का रास्ता नहीं निकाला जाता तो चुनाव में बड़ा जोखिम भाजपा के लिए तय था हालांकि अभी भी भाजपा को कोई अभय की स्थिति नहीं है, बस अब वे किसानों के बीच जा सकेंगे। उनकी बात किसान मान लेंगे, इसकी गुंजाइश बहुत कम है। 

  •  सार्वजनिक कार्यक्रमों में जाने से बचने लगे थे भाजपा नेता

भाजपा के ही  एक सांसद का कहना है कि “ किसान आंदोलन की वजह से सार्वजनिक कार्यक्रमों में भाग लेना हमारे लिए मुश्किल होता जा रहा था, हमें किसानों और लोगों का गुस्सा साफ दिख रहा था। बात बिगड़ सकती थी।  2017 और 2019 के चुनाव में पार्टी को जाट समुदाय का समर्थन मिला, लेकिन इस बार वे भाजपा से नाराज नजर आ रहे थे।

  • किसान नेताओं की अपील, भाजपा को न दें वोट

किसान नेताओं ने जिस तरह कहना शुरू किया कि वे किसानों से कहेंगे किसी को भी वोट दें, भाजपा को नहीं, इससे भाजपा के खिलाफ माहौल बनने लगा। चूंकि खेती-किसानी तो हर राज्य में होती है इसलिए आगामी पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव में यह बड़ा मुद्दा बनने जा रहा था, लिहाजा सरकार तीनों कृषि कानून वापिस लेने पर बाध्य हुई। 

 

  • पंजाब में भारी नुकसान

पंजाब में तो भाजपा के लिए माहौल बनने से पहले ही बिगड़ गया। साथ ही शिरोमणि अकाली दल जैसा एक बड़ा सहयोगी दल भी एनडीए से छिटक गया। पंजाब में किसान आंदोलन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा विरोधी भावना का आधार बन गया था। प्रदर्शनकारी किसान भाजपा नेताओं के घरों को निशाना बना रहे थे, ऐसी खबरें निरंतर आ रही थी।  चूंकि पंजाब की राजनीति किसानों की राजनीति मानी जाती है इसलिए अपना जनाधार खिसकने के डर से कई नेताओं ने किसान आंदोलन को अपना समर्थन दिया। भाजपा के कई सांसदों और विधायकों ने पार्टी के शीर्ष नेतृत्व से इस मामले को जल्द सुलझाने की अपील की थी।  

 भाजपा नेता दबी जुबान से कह रहे थे कि हम पंजाब में इस उबाल को समझ रहे थे, इसलिए पार्टी नेतृत्व को लगातार फीडबैक दिया जा रहा था कि किसानों का गुस्सा कम करना जरूरी है, वरना इसका नतीजा केवल आगामी चुनाव में ही नहीं बल्कि 2024 के चुनाव पर भी पड़ता। 

  • कैप्टन अमरिंदर सिंह का सहारा

काले कानूनों को वापस लेने की घोषणा से पंजाब में भाजपा का राजनीतिक भाग्य कुछ ज्यादा बदलने वाला नहीं है, क्योंकि पार्टी के पास एक मजबूत कैडर और नेतृत्व की कमी है, हां लेकिन कुछ महत्वपूर्ण बदलाव की कैप्टन अमरिंदर सिंह के सहारे जरूर उम्मीद लगाई जा रही है। 


पंजाब की राजनीति को समझने वाले कहते हैं ‘पंजाब में भाजपा के खोने के लिए कुछ भी नहीं था। अब जो है वो पाने की बात है। वैसे भी पंजाब में भाजपा अकाली दल के सहारे ही यहां अपना अस्तित्व बनाए हुए थी, लेकिन अकाली दल के दूर होने के बाद भाजपा लड़ाई से बिल्कुल बाहर थी। फिर इन कानूनों को लेकर सबसे ज्यादा विरोध पंजाब के किसान ही कर रहे थे और वे भाजपा के खिलाफ जबरदस्त लामबंद हो रहे।

भाजपा के कांग्रेस पूर्व मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह के साथ हाथ मिलाने की प्रबल संभावना है। पंजाब में सत्ता में आने के लिए साथ काम करें। पंजाब कांग्रेस के भीतर की उथल-पुथल से भाजपा को यहां काफी मदद मिल सकती है। दूसरी संभावना यह है कि पार्टी पंजाब में अकालियों के साथ अपने बिगड़े हुए समीकरण को सुधार सकती है।


  • पीएम ने सुनी किसानों के मन की बात : सत्यपाल मलिक

मेघालय के राज्यपाल सतपाल मलिक ने तीनों काले कानूनों को वापस लेने पर  बधाई देते हुए कहा कि प्रधानमंत्री ने सुनी किसानों के मन की बात। अब एमएसपी की गारंटी के कानून पर काम किया जाना चाहिए। 


  • Courtsy:
  • R. K. Maurya, Sr. Journalist.
  • New Delhi


Comments

Popular posts from this blog

PAGDANDI KA GANDHI