मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य हनुमानजी की जाति बताना और उसपर सवाल उठाना कतई गलत है। आखिर कब राजनीति में जाति और धर्म का घालमेल बंद होगा। हम प्राणी हैं, इंसान ने अपनी सोच के मुताबिक जाति और धर्म में बांट दिया, जिसको राजनीति पोषित करने का काम कर रही है। इसके विपरीत मैं देखता हूं कि कई देशों के मूल धर्म समाप्ति की ओर हैं और उनके धर्मस्थल वीरान हो रहे हैं, लोग स्वेच्छा से दूसरे धर्म अपना रहे हैं। कई धर्म स्थलों के बिक जाने के भी उदाहरण सामने आ रहे हैं। पर इससे संबंधित देश की सरकार को कोई मतलब नहीं है। मैंने देखा एक देश में हमारे भारतीय गणपति भगवान की पालकी चर्च में लेकर गए तो वहां न केवल चर्च के पादरी ने स्वागत किया बल्कि मौजूद ईसाइयों ने भी पूजा-पाठ में शामिल होकर सभी को भोजन कराया। इससे कहीं भी दोनों धर्मों के लोगों की अपने धर्म के प्रति आस्था में कमी नहीं आती, बल्कि आपस में प्यार और सद्भाव बढ़ता है, जो एक-दूसरे के साथ रहने की ताकत बनता है। जब मैं अपने देश की सरका...
नेपाल पर प्रणबदा के. विक्रम राव कांग्रेसी, वरिष्ठ राजनेता (पचास सालों से), भारत रत्न, नेहरु—अर्चक, तेरहवें राष्ट्रपति, गोलोकवासी पण्डित प्रणब कामदाकिंंकर मुखोपाध्याय (मुखर्जी) वीरभूमिवासी ने रायसीना पर्वतमाला तले विकराल धमाका कर डाला। अपनी आत्मकथा ''प्रेसिडेंशियल ईयर्स'' (ग्यारहवें अनुच्छेद) में डायनामाइटनुमा विस्फोट किया। मां, बेटे और सरदारजी (मनमोहन सिंह) की कबीना में मंत्री रहे प्रणबदा ने लिखा कि नेपाल के महाराजाधिराज त्रिभुवन वीर विक्रम बहादुर शाह ने भारतीय गणराज्य में अपनी हिमालयी रियासत नेपाल के विलय का प्रस्ताव रखा था। जवाहरलाल नेहरु ने साफ नकार दिया। उन्हीं वर्षों में चीन के नये कम्युनिस्ट सम्राट माओ जेडोंग ने लाल सेना के हथियारबंद सिपाहियों द्वारा बौद्ध तिब्बत पर कब्जा कर लिया था। फिर नेहरु को प्रधानमंत्री झाउ एनलाई ने संदेशा भेजा कि ''तिब्बत को स्वतंत्र'' करा लिया गया है। नेहरु का जवाबी प्रश्न था, ''किससे?'' प्रणबदा ने लिखा कि यदि बजाये पिता के पुत्री प्रधानमंत्री होती तो नेपाल अब तक भारतीय गणराज्य का प्रांत हो जाता। बिहार...
अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह जफर की 157 वें उर्स पर दिल्ली के ग़ालिब अकादेमी में मरहूम बादशाह सलामत के वर्तमान जीवित वंशज व पीठासीन नवाब शाह मो0 शुएब खान की अध्यक्षता में एक राष्ट्रीय सम्मेलन तथा सम्मान समारोह का आयोजन किया गया जिसमें देशभर से सन 1857 के क्रांतिवीरों के वंशजों तथा स्वाधीनता तथा अमन-दोस्ती के लिये काम कर रहे अनेक संगठनों के प्रतिनिधियों ने बड़ी संख्या में भाग लिया । कार्यक्रम के प्रारम्भ में नवाब शाह मो0 शुएब खान साहब का माल्यार्पण कर स्वागत किया गया । श्रीमती समीना खान ने मुग़ल खानदान की समृद्ध विरासत पर एक विस्तृत लेख का वाचन किया तथा अंतिम मुग़ल बादशाह बहादुर शाह ज़फ़र के जीवन,विचारो तथा दर्शन को बताया । उन्होंने कहा कि अंतिम बादशाह एक खुद्दार हिंदुस्तानी थे जिन्होंने निर्दयी अंग्रेज़ी हुकूमत द्वारा अपने पुत्रों के कटे सिरों को पेश करने के बावजूद भी बिना विचलित हुए विदेशी दासता को स्वीकार नही किया । अंत मे विदेशी निर्लज्ज शासको ने हिंदुस्तान के इस मालिक को इनके ही मुल्क से जिला वतन कर रंगून भेज कर अपमानित जीवन व्यतीत करने को विवश कर दिया पर उन्होंने अपने देश के गौरव...
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