अन्ना दिशा भटके, बने पीपली लाइव के नत्था

मैं गांधीवादी समाजसेवी अन्ना हजारे का बहुत सम्मान करता हूं, लेकिन भ्रष्टाचार के खिलाफ लड़ाई को उन्होंने अपनी टीम के कुछ स्वार्थी लोगों के कहने पर जिस तरह से कांग्रेस के खिलाफ मोड़ दिया है, उससे लगता है कि वे दिशा भटक गए हैं और मीडिया ने उनको आमिर खान की फिल्म का नत्था बना दिया है। जिस तरह पीपली लाइव में एक ग्रामीण नत्था को मीडिया ने अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए इस्तेमाल कर उसके सुबह उठने से लेकर रात को सोने तक की सभी कवरेज को चाट मसाला बनाकर परोसा,  ठीक उसी तरह  इन दिनों  अन्ना हजारे को हर समय परोसा जा रहा है।
राजनीतिक दल भी अन्ना को अपने फायदे और दूसरे के नुकसान के लिए इस्तेमाल कर रहे हैं। अन्ना हजारे को  कुछ एनजीओ माफिया इस्तेमाल कर रहे हैं। उनकी प्रारंभिक लड़ाई यहां तक तो ठीक है कि उन्होंने सरकार और विपक्षियों को भ्रष्टाचार के खिलाफ एक सख्त लोकपाल बनाने के लिए मजबूर किया, लेकिन यह जिद करना कि उनके अनुसार उनकी ‌शर्तों के आधार पर लोकपाल बने, यह पूरी तरह गलत है। भारत एक प्रजातांत्रिक देश है जहां कानून बनाने का काम संसद को है. और कोई भी संसद से ऊपर नहीं हो सकता है। 
 अन्ना हजारे जी को चाहिए कि वे किसी के हाथों की कठपुतली बनने की बजाए सीधे प्रजातांत्रिक व्यवस्था को मजबूत करने का काम करें। इसके बाद भी यदि वह यह ही चाहते हैं कि वह अपनी शर्तों और इच्छा का कानून बनाएं तो फिर सीधे राजनीति में आकर भारत में अपनी सरकार बनाकर ऐसा कर सकते हैं। 
जहां तक भ्रष्टाचार को समाप्त करने की बात है, वह लोकपाल क्या किसी भी बड़े से बड़े कानून से मिटने वाला नहीं है।  चूंकि  अपराध पर अंकुश लगाने के लिए कानून बनते हैं किसी भी कानून से  अपराध को  समाप्त नहीं किया जा सका है।  अन्ना हजारे  की मांग मानी जाए तो लोकपाल के रूप में सत्ता का सर्वशक्तिमान संस्था बनाकर तो प्रजातांत्रिक व्यवस्था में भी एक तानाशाह या फिर हिटलर पैदा कर दिया जाएगा।
 अच्छा होगा कि अन्ना हजारे देश में भ्रमण कर लोगों को भ्रष्टाचार के खिलाफ जागरूक करें। वर्तमान कानून भी कहीं कमजोर नहीं है। इसी कानून के तहत देश के तमाम बड़े-बड़े नेता, उद्योगपति और कारोबारी तथा अफसर जेल में हवा खा रहे हैं।

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