लो देखो गुजरात मॉडल

                                                                -राजेन्द्र मौर्य-
काफी अर्से तक भारतीय बाजार में कुछ ब्रांड नेम इतने चले कि लोगों में उत्पाद का नाम ही ब्रांड नेम बन गया। इसकेउदाहरण कोलगेट पेस्ट, सर्फ वाशिंग पावडर, लाइफबॉय साबुन आदि। समय केसाथ बाजार में तमाम ब्रांड आए और टीवी के जरिए उन्होंने अपनी जगह बाजार में बनाई। तो पुराने ब्रांडों ने अपने को रिलांच किया। इनमें एक साबुन ने लगभग बाजार से गायब होने की स्थिति पर जब अपने को रिलांच किया तो लोगों को सपना दिखाया कि इसके प्रयोग से कीटाणुओं से मुक्ति मिलेगी। रिलांचिंग में यह साबुन खूब बिकी, लेकिन जैसे ही इसकेउपयोग से असलियत खुली तो साबुन दुबारा टायलेट सोप बनकर रह गई।
देश में पिछले एक वर्ष से टीवी के जरिए किसी घरेलू प्रॉडक्ट की तरह पहले मीडिया के जरिएदेश के नेतृत्व के लिए अरविंद केजरीवाल और उसके बाद भाजपा की ओर से नरेंद्र मोदी को लांच किया गया। अरविंद केजरीवाल ने एक इवेंट की तरह मजबूत रणनीति के जरिए पहले आंदोलन और उसके बाद आम आदमी पार्टी गठित करकेदिल्ली विधानसभा चुनाव में अपनी किस्मत चमकाई। जनता ने नई उम्मीदों के साथ उनको दिल्ली में अभूतपूर्व समर्थन दिया। वह कांग्रेस के बिना शर्त मिले समर्थन से दिल्ली के मुख्यमंत्री भी बन गए लेकिन उनकी मीडिया के जरिए हुई लांचिंग ने कुर्सी की भूख कुछ ज्यादा ही बढ़ा दी, जिसकेकारण वह प्रधानमंत्री की कुर्सी पाने की लालसा में इतने उतावले हुए कि दिल्ली की सभी उम्मीदों पर पानी फेरकर मात्र 49 दिनों में तमाम असफलताओं के साथ इस्तीफा देकर लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए। उनका हाल लोकसभा चुनाव में जनता ने धोबी का कुत्ता घर का न घाट का जैसा कर दिया। उनको पंजाब छोड़कर कहीं सफलता नहीं मिली। दिल्ली ने तो उनको पूरी तरह नकार दिया। खुद को शीला दीक्षित को हराने के बाद तीसमार खां समझकर बनारस पहुंचे तो वहां भी उनको गंभीरता से नहीं लिया गया। आगे भी वह कोई करिश्मा दिखा पाएंगे, इसमें कोई उम्मीद की किरण अभी तो नहीं दिख रही है।
मीडिया के जरिए दूसरी लांचिंग भाजपा के नरेंद्र मोदी की हुई है। उन्होंने चुनावी अभियान में बड़े-बडे़ वादे करकेजनता को आकर्षित किया और जनता ने उनपर विश्वास करकेउनको भी अभूतपूर्व समर्थन देकर पहली गैर कांग्रेस की भाजपा सरकार को पूर्ण बहुमत दिया। उनसे जनता को उम्मीद लगी कि वह तिलस्मी हैं और प्रधानमंत्री बनते ही महंगाई को खत्म कर देंगे। बेरोजगारी रातो-रात दूर हो जाएगी। देश से लेकर विदेशों तक में हर रोजगार पर केवल भारतीय ही नजर आएंगे। हालांकि अभी जनता के विश्वास को कम करने का हमारा कोई इरादा नहीं है, लेकिन पहला प्रभाव उनकी रिलांच की गई साबुन की तरह ही है। जैसे रिलांच की गई साबुन कीटाणुओं से मुक्ति नहीं दिला पाने पर दुबारा भी टायलेट सोप बन गई थी।
लोकसभा के पहले सत्र में राष्ट्रपति केअभिभाषण पर चर्चा करते हुए विदेश मंत्री सुषमा स्वराज ने कहा कि उनका प्रॉडक्ट इसलिए बिका चूंकि उसमें दम है। सभी उम्मीद करते हैं कि इस प्रॉडक्ट यानि नेरंद्र मोदी में दम हो और उनके नारे के अनुरूप अच्छे दिन आने चाहिए। फिलहाल तो लोकसभा में उत्तर प्रदेश केपूर्व मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव की बात काफी गंभीर लग रही हैं। उन्होंने कहा था कि महंगाई कोई खत्म नहीं कर सकता है, हम तो मोदी जी से कहते हैं कि इसे कम कर दो और कम भी नहीं कर सकते, तो इसे थामने का काम तो तुरंत होना चाहिए।
नरेंद्र मोदी अपने अभी तक के किसी भी निर्णय से जनता को अच्छे दिन का कोई संदेश नहीं दे पा रहे हैं। हां रेल भाडे़ के साथ तमाम चीजों के दामों में हो रही निरंतर बढ़ोतरी ने जनता को बुरे दिन आने का संदेश जरूर दिया है।
मोदी ने चुनावी अभियान में गुजरात मॉडल का काफी जिक्र किया, जिसको वास्तव में लागू होता हुआ विशेष रूप से भाजपा के नेता और सरकार में शामिल मंत्री जरूर महसूस कर रहे हैं। नर्मदा बांध की ऊंचाई बढ़ाने के मोदी के पहले निर्णय पर आरोप लग रहा है कि वे लोकतांत्रिक व्यवस्था का दरकिनार कर रहे हैं। ऐसा ही वह गुजरात में करते रहे हैं। सभी मंत्रालयों का नियंत्रण पीएमओ (प्रधानमंत्री का दफ्तर) के पास है। ऐसा ही मोदी के गुजरात मॉडल में सीएमओ (मुख्यमंत्री का दफ्तर) रहा है। गुजरात मॉडल का एक असर भाजपा में भी दिखने लगा है, जहां गुजरात में उन्होंने भाजपा के केशुभाई पटेल जैसे बडे़ नेताओं को घर बैठा दिया और वहां पूरी तरह सरकार के साथ ही भाजपा पर भी कब्जा कर लिया था, ठीक उसी तरह दिल्ली में भी वह सरकार के साथ ही भाजपा पर भी अपना कब्जा जमाने की ओर बढ़ रहे हैं। लोगों की आंखों से जहां लालकृष्ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी जैसे नेता ओझल हो रहे हैं, वहीं, मोदी की पैरवी करने वाले भाजपा के अध्यक्ष राजनाथ सिंह केंद्रीय गृहमंत्री होते हुए भी नजरअंदाज होते दिख रहे हैं। उनके स्थान पर मोदी का पसंदीदा व्यक्ति को जल्द ही भाजपा अध्यक्ष बनाए जाने की तैयारी जोरों से चल रही है।
माना जा रहा है कि जनता को अच्छे दिन आने का अहसास हो या न हो, लेकिन मोदी के राजनीतिक गुजरात मॉडल का अहसास पहले दिन से आखिर तक खूब होता रहेगा। हालांकि कामयाबी व्यक्ति को अतीत से कोई सबक लेने नहीं देती है। फिर भी यदि नरेंद्र मोदी अतीत को देखें तो अच्छा रहेगा। 1977 में बनी गैर कांग्रेस की सरकार 1980 आते-आते उखड़ गई और फिर कांग्रेस की सरकार बनी। 1984 में प्रचंड बहुमत की राजीव सरकार को अगले चुनाव 1989 में गुस्से का शिकार होना पड़ा तो वीपी सिंह की सरकार बनी, लेकिन डेढ़ वर्ष का कार्यकाल ही पूरा कर पाई। जनता ने अगले चुनाव में फिर कांग्रेस को सत्ता सौंपी। भाजपा को भी अटल बिहारी वाजपेयी के नेतृत्व में 2004 में हार देखनी पड़ी। इसलिए मोदी को समझना चाहिए कि यदि वे जनता की अपेक्षाओं पर खरे नहीं उतरे तो उनको भी जनता सबक सिखाने में देर नहीं लगाएगी। उनके सामने दिल्ली में अरविंद केजरीवाल का तो बिल्कुल ताजा उदाहरण है। मोदी को चाहिए कि जल्द से जल्द गुजरात मॉडल की बजाय जनता को अच्छे दिन आने का अहसास कराएं।

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