गुरु नानक देव : 550वां प्रकाश पर्व
आज बाबा गुरुनानक देव का 550वां प्रकाशोत्सव है, असल में बाबा ने किसी पंथ का प्रारंभ नहीं किया था- वह तो एक विचार थे -- सारी दुनिया में उस समय भी धर्म-पन्थ के नाम पर टकराव था- बाबा नानक अपनी चार उदासियीं में कोई २४ हज़ार किलोमीटर दुनिया दे दो महाद्वीप के चप्पे चप्पे पर गए -- हर मत को मानने वाले पीर- पुजारी- संत - फकीर- सूफी से मिले और सभी को इस बात के लिए सहमत किया कि भले ही आपका जन्म और विशवास किसी भी धर्म में हो-- सर्वशक्ति एक ही - एक नाम ओंकार --- . यही नहीं उन्होंने सभी पंथों के बीच सतत संवाद की अनिवार्यता को भी स्थापित किया .
बाबा नानक एक आम किसान की ही तरह अपना जीवन बिताते रहे , अभी करतारपुर साहेब में वह राहत देखि जा सकती है जिससे वे खुद अपने खेतों को सींचते थे . इस बार का गुरु पर्व महज ५५० साल के लिए याद नहीं रखा जाएगा- देख लेना- बाबा नानक ने इस दिन के रास्ते दोनों मुल्कों का राब्का खोल दिया है , ज़रा उन लोगों से मिलें जो उस तरफ दर्शन कर आये हैं -- बूढी आँखे, उम्मीदों में सरहद पार से आये लगों में अपने पिंड, यादें, खेत, अपने पूर्वजों की कब्रें खोजती हैं, इस तरफ के किसी गाँव का नाम पासपोर्ट पर देख कर उस तरफ का सुरक्षा कर्मी झप्पी पाने लगता है कि यह तो मेरे वाल्दा या अब्बा के पिंड का है , यही हाल इधर से गए सिखों का है .
एक बात जान लें सीमा के इस तरह खुलने का असली मर्म वे ही जानते हैं जिन्होंने १९४७ का पार्टीशन को भोगा है -- असल विभाजन तो पंजाब का ही हुआ था
सिख धर्म को जरुर समझें -- जुलुस निकालना - गुरूद्वारे -- इन सब से बहुत अलग है सिख पंथ . बाबा नानक को याद रखने के लिए आज प्रेस करने कि प्रख्यात लेखक करतार सिंह दुग्गल की एक पुस्तक Secular perception in sikh faith . हिंदी में है धर्मनिरपेक्ष पंथ - इसके अलवा कई अन्य भाषाओँ में भी है। इसके मुख्य अंश से बाबा के विचारों को समझा जा सकता है।
‘‘जाति विहीन समाज के आदर्श के लिए भक्तों ने केवल बातें ही बघारीं, लेकिन गुरु नानक ने जातिवाद की अनैतिक जकड़ से मुक्ति के लिए व्यावहारिक कदम उठाए। मुफ्त सामुदायिक भोज, अर्थात् गुरु का लंगर द्वारा इसकी व्यवस्था सभी केंद्रों में की गई थी, जहां पर उनके शिष्यों को जात-पात के भेद को भूल कर साथ बैठकर भोजन करने के लिए प्रेरित किया जाता था।’’
गुरु नानक स्वयं को कमजोर से भी कमजोर व्यक्ति के साथ खड़ा पाते हैं। वे स्वयं को ‘नानक दास’, ‘नानक गरीब’ कहते हैं। संघटन निश्चित करने का उपाय यही है कि शीर्षासीन व्यक्ति सबसे निचले स्तर से आरंभ करे। गुरु नानक कहते हैं :
नीचा अंदर नीची जाति नीची हूं अति नीच।।
नानक तिन के संगि साथि वडिया सिओं क्या रीस।।
जिथै नीच समालियन तिथै नदरि तेरी बखशीष।।
सिख पंथ कैसे प्रकाश में आया , कैसे अहिंसा से रारंभ सिख पंथ के गुरु को हथियार का वर्ण करना पडा और भी बहुत कुछ
मेहर मसीत सिदक मुसल्ला हक हलाल कुराण सरम सुनत सील रोज़ा होए मुसलमान।।
करणी काबा सच पीर कलमा करम निवाज।।
तसबीह सा तिस भावसी नानक रखै लाज।।
पंज निवाजा वखत पंज पंजा पंजे लाऊ।।
पहिला सच हलाल दुई तीजी ख़ैर खुदाए।।
चौथी नीयत रासि मन पंजवीं सिफ़त सनाई।।
करणी कलमा आख के तां मुसलमान सदाए।।
नानक जेते कूड़ियार कूड़े कूड़ी पायि।।
(खुदा के मेहर मस्जिद हो, भक्ति का मुसल्ला हो, कुरान हो, उच्च आचरण, सहानुभूति, विनम्रता, शिष्टाचार का रोजा हो ऐसा मुसलमान बने शुभ कर्म तुम्हारे काबा हों और सच्चाई तुम्हारी मार्गदर्शक और जिसकी नीयत साफ हो, वही सच्चा मुसलमान कहलाने का हकदार है, खुदा उसकी लाज रखता है।)
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