स्वामी श्रद्धानंद का बलिदान दिवस : सदा सच की वकालत

अमर हुतात्मा स्वामी श्रद्धानंद के बलिदान दिवस के अवसर पर उनका स्मरण अर्थात उनके कार्यों को याद करना है । वे एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिनके विचारो को महर्षि दयानंद सरस्वती ने परिवर्तित किया । एक कुशल वकील जिन्होंने वकालत की परंतु हमेशा सत्य की । महात्मा गांधी के आह्वान पर भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए और उस समय जब जालियां वाले हत्याकांड से पूरा पंजाब आतंकित था उस समय ,   1920 के अमृतसर में होने वाले कांग्रेस अधिवेशन के स्वागत अध्यक्ष बने । वे पहले हिन्दू सन्यासी थे जिन्होंने दिल्ली की जामा मस्जिद की मीमबर (पवित्र मंच) पर खड़े हो कर सांप्रदायिक सौहार्द का।संदेश दिया । रॉलेट एक्ट के विरोध करते हुए राष्ट्रीय कांग्रेस के चांदनी चौक ,दिल्ली में प्रदर्शन पर अंग्रेज़ी सिपाहियो ने बंदूक तानी तो वे अपनी छाती खोल कर खड़े हो गए कि "गोली उनको मारो "। पर डरपोक कैसे एक वीर की छाती चीरते । दुनियां में मात्र दो ही ऐसे जीवन चरित है जो अपने जीवन की किसी भी सच्चाई को नहीं छुपाते । एक स्वामी श्रद्धानंद जी की आत्मकथा "कल्याण मार्ग का पथिक " और दूसरी महात्मा।गांधी की आत्मकथा "सत्य के प्रयोग" । आज ही के दिन स्वामी जी एक धर्मांध के हथियार के।शिकार  हुए ।
श्रद्धा से श्रद्धानंद ने खाई थी गोलियां ।
साभार : राम मोहन राय, पानीपत (हरियाणा)

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