पंजाब : अरदास







बिल्कुल सच कहा मेरे दोस्त आपने हमारे बारे में कि हम अति भाग्यशाली है । परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा है कि उसने मेरा जन्म ऐसे परिवार में किया जहां माता-पिता दोनों ही संस्कारवान, सदाचारी व धर्म पारायण थे। धर्म उनके लिये किसी कर्म कांड का विषय न होकर धारण करने का था । मॉ कट्टर आर्य समाजी व पिता उदार सनातनी । महात्मा गांधी के विचारों ने उन्हें सर्वधर्मी बनाया था ।
हम बहुत ही भाग्यशाली थे कि हमारा घर देवी मंदिर तथा दरगाह हज़रत बू अली शाह के बिल्कुल बीचो- बीच स्थित था । गुरुद्वारा नजदीक होने की वजह से गुरबाणी का पाठ, तड़के-तड़क सहज ही सुनाई देता था । आर्य समाज भवन भी पास ही था जहां मां के साथ कूदते -फांदते अक्सर जाते और हवन में हिस्सा लेते । पिता जी के एक दोस्त पादरी साहब(डेविड सर के पिता) अक्सर हमारे घर आते और क्रिसमस पर हम भी चर्च में जाते । हमारे कायस्थान मोहल्ले में भी विविधता का माहौल था । हर धर्म व जाति के लोग एक परिवार की तरह रहते । ऐसे ही वातावरण में हमारी परवरिश हुई ।
संकीर्णता हमारे ओरे धोरे भी नही थी । सब ,सब के घरों में अपने पन से आते जाते और सम्मान करते । किसी के घर चाहे अखण्ड पाठ हो, या रामायण या गीता पाठ ,हवन -यज्ञ या कुरान सानी सब ही तो हिस्सा लेते । ऐसे माहौल में हम पले बढ़े ।
 ऐसे ही वातावरण से निकल कर हम बचपन से निकल कर कब जवानी को पार कर इस तीसरी अवस्था मे आ गए पता ही नही चला । इसलिये किसी भी धर्म स्थल पर अपने पन से आस्थापूर्वक जाते है , दर्शन करते है और आनंद प्राप्त करते है ।
   हां अब लगने लगा है कि हम कौन है?   अब हमें भी समझाए जाने की कोशिश की जा रही है कि हमे कहाँ जाना चाहिये कहाँ नही । कौन सी हमारी जगह है कौन सी उनकी ।
 मैं उस दिन कतई नही डरा था जब 1982 से 84 तक सिख उत्पीड़न के खिलाफ अपने कुछ चुनिंदा साथियों के साथ बहुसंख्या से भिड़ गया था और उन लोगों ने हमे आतंकवाद का समर्थक व देशद्रोही कहा था । उस दिन भी नही डरा जब सन 1992 में बाबरी मस्जिद गिराने पर अपने शहर में *बापू हम शर्मिंदा है तेरे कातिल ज़िंदा है* के नारे लगाते निकला ।  हां ,उस दिन भी नही डरा जब सन 2002 में गुजरात नरसंहार के विरोध के
अपने शहर में विरोध प्रदर्शन करने निकला । उस दिन भी नही डरा था जब सन 1998 में अपनी मुँह बोली भांजी असमारा की शादी में भात लेकर लाहौर (पाकिस्तान) गया और वहाँ की एजेंसियो के घूम फिर के एक ही सवाल थे कि *तुम हिन्दू ये मुसलमान तो ये आपकी बहन -भांजी कैसे हुई* ?  तब भी नही डरा मेरे दोस्त , जब स0 भगतसिंह की जन्मशती पर होटल फ्लेटी से शादबान चौक(स0 भगत सिंह , राजगुरु व सुखदेव को फांसी देने की जगह) तक *इन्कलाब ज़िंदाबाद साम्रज्यवाद मुर्दाबाद* के नारे लगाते हुए गया ।
   पर उस दिन डर गया जब अजमेर में दरगाह हज़रत मोयउनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के बाहर एक दुकानदार ने मुझसे हल्के स्वर में कहा कि दरगाह में चढ़ाने वाली चादर उससे खरीदो क्योंकि वह हिन्दू है । अंदर जाकर जब किसी ने पूछा कि आप कौन है हिन्दू या मुसलमान?  आज तो और भी डर गया हूँ जब श्री हरमंदर साहब के दर्शन कर बाहर निकला तो एक ने कहा कि यहां दस किलोमीटर पर एक हिन्दु धर्म स्थल है वहाँ तो हर हिन्दू को जरूर दर्शन करने चाहिए । मैं अपनी गुरु दीदी निर्मला देशपांडे जी के साथ 5 बार पाकिस्तान जाते कभी भी नही डरा । वहाँ सब कुछ अपनेपन में ही श्री ननकाना साहब के भी दर्शन किये ,उस दौरान भी वहां जाते कभी नही डरा ,पर अब डरता हूं मेरे दोस्त जब कोई मुझे देशद्रोही कह कर पाकिस्तान भेजने की बात करता है ।
    आज मुझे श्री हरिमन्दिर साहब  ,अमृतसर में जाने का सुअवसर मिला, मेरे दोस्त । मेरा सौभाग्य था कि वहाँ नानक ,रविदास और कबीर की वाणी का पाठ चल रहा था । हां मेरे दोस्त ,मैं आज भी लकी रहा कि मुख्य मंदिर में प्रवेश करते ही अरदास शुरू हो गयी और जहां अन्य लोगो को भारी भीड़ होने की वजह से जल्दी निकलने को कह रहे थे वहीं मुझे लगभग एक घण्टे का मौका मिला । मैने भी इस अवसर को गवाया नही मेरे दोस्त । मैने भी अरदास की कि  "हे सच्चे बादशाह मेरे मुल्क में अमनो चैन हो, नफरत खत्म हो और ऐसे हालात बने कि कोई किसी से न डरे"
साभार: राम मोहन राय, श्री हरमंदर साहब, अमृतसर (पंजाब)।

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