कर्नाटक : सुब्बाराव जी जाना हाल, बेंगलूर का किया भ्रमण







आदरणीय भाई सुब्बाराव जी की कुशल क्षेम जानने के लिये मुझे तथा मेरी पत्नी श्रीमती कृष्णा कांता राय को  कर्नाटक प्रदेश की राजधानी बेंगलुरु (बेंगलोर) आने का अवसर मिला । इससे पहले भी वर्ष 2015 में ,जब मेरी छोटी बेटी संघमित्रा यहां रह कर जॉब करती थी तो यहां आया था । उस समय पूजा के दिन थे तथा मैसूर का प्रसिद्ध दशहरा भी देखने का मौका मिला था उंटी जो कि बहुत ही आकर्षक पर्यटन स्थल है वहाँ भी गए थे । बेटी हमे  इस्कॉन मंदिर के साथ -2 वृंदावन गार्डन भी लेकर गयी थी । हमारे आने की सूचना जैसे ही हमारे पुराने मित्र श्री बी0 जी0 विजय राव जी को मिली  तो वे हमें अपने परिवार सहित एक डिनर पर ले गए तथा अगले पूरे दिन कला की अद्भुत कीर्ति विधानसभा भवन तथा हरिजन सेवक संघ ,कर्नाटक के अनेक कार्यो को दिखाने ले गए जो न केवल अद्भुत है अपितु प्रेरणादायक भी । श्री विजय राव जी स्व0 निर्मला देशपांडे दीदी के अत्यंत निकटस्थ रहे है तथा वर्तमान में दीदी द्वारा स्थापित संगठन अखिल भारत रचनात्मक समाज के राष्ट्रीय महासचिव तथा लघु समाचार पत्रों के राष्ट्रीय महासंघ के अध्यक्ष है । वे एक बहुत ही मिलनसार तथा खुशमिजाज व्यक्ति है जो हर मेहमान मित्र की खूब आओ भगत करते है ।
      हमारे आने की सूचना मिलते ही ,वे काफी उत्साही नजर आए । तथा हमारे कदम-2 की खबर रखा कर संरक्षक का काम किया । भाई सुब्बाराव जी की मिजाजपुर्सी के बाद हम अपने भतीजे प्रतीक सैनी के घर डोडा करनैली चले आये तथा वहीं रुके ।  उनकी पत्नी श्रीमति पायल व वे अलग -2  किन्ही एम एन सी कंपनीज में काम करते है । अपनी व्यस्तता के बावजूद जिस कदर दोनों ने आत्मीयता का परिचय देते हुए आवभगत की वह बहुत ही प्रशंसनीय है ।
       अगले दिन ही सुबह विजय राव जी के फोन की घण्टी बजी तथा उन्होंने एम टी आर रेस्टोरेंट (लाल बाग़) में लंच पर बुलाया । इसी बीच अलीगढ़ से नवाब मो0 शोएब खान साहब का फोन आया कि बेंगलुरु में काज़ी मो0 अनीसुल हक़ साहिब को मिलना न भूले । नवाब साहब और उनकी बेग़म साहिब तो उमरे पर मक्का मदीना गए है पर उन्होंने हमें वहां भी याद रखा यह उनकी ज़र्रानवाज़ी है तथा हमारी ख़ुश किस्मती ।  मैने काज़ी साहब को फोन किया और हमने उनसे भी मिलने का टाइम एम टी आर में लंच पर ही तय हुआ । काज़ी साहब ,दूरदर्शन तथा आकाशवाणी में निदेशक के पद पर श्रीनगर ,गोरखपुर ,जोधपुर ,चेन्नई और बेंगलुरु में कार्यरत रहे है तथा अब अपने परिवार के साथ बेंगलोर में ही रह रहे है । उनसे तथा उनकी बेग़म के साथ हमारी पहली मुलाकात दिल्ली से वाघा बॉर्डर तक अमन -दोस्ती यात्रा पर वर्ष 2018 में निकले थे और हम इन दोनों पति-पत्नी के नेतृत्व में यात्रा पर निकले थे । उसके बाद तो हम उनसे जुड़ ही गए । गत वर्ष भी वे यात्रा में शरीक रहे ।    
       एम टी आर रेस्टोरेंट ,बेंगलुरु में लगभग 100 वर्ष से कार्यरत है । अब इसकी नगर के विभिन्न इलाकों में  आठ ब्रांचेज है जहाँ सुबह से शाम तक स्वादिष्ट दक्षिण भारतीय व्यंजनों को पसंद से खाने वालों की कतार लगी रहती है ।इन सौ वर्षों में महात्मा गांधी ,प0 नेहरू ,अंग्रेज़ वायसराय तथा  देश- विदेश की राजनीति ,समाज ,कला और  साहित्य की अनेक हस्तियां रही है । उन सभी के तरतीबवार चित्र इस रेस्टोरेंट की विश्वसनीयता को बढ़ाते है । विजय राव जी ने बताया कि पहले ग्राहक को 24 खाने की वस्तुएं परोसी जाती थी पर बाद में अब उन्हें घटा कर 14 पर लाया गया है । खाना अनार के जूस से शुरू होकर कई तरह की मिठाइयों ,अनेक प्रकार के चावल ,खिचड़ी ,डोसा ,बड़ा , चटनी , साम्भर ,रसम ,रायता , सब्ज़ी व बाद में पापड़ और छाछ पर खत्म होता है और मनुहार इतनी की पेट भर जाए पर मन न भरे । विजय राव जी ने हमे इसी रेस्टोरेंट की प्रसिद्ध मिठाई मैसूर पाक का एक डिब्बा भी भेंट किया । श्री विजय राव जी तथा अनीसुल हक़ साहब की यह पहली मुलाकात थी पर वे दोनों की विद्वता से बेहद आकर्षित नज़र आए । श्री अनीसुल हक़ साहब ने स्वलिखत दो पुस्तके भी भेंट की ।
     हमारे पास समय था और हमारे मित्र अनीसुल हक़ साहब की हमे घुमाने की इच्छा । लंच करके ,श्री विजय राव जी से विदा होकर हम एम टी आर के सामने ही लाल बाग़ ले गये । लाल बाग़ का निर्माण नवाब हैदर खान ने अपनी माता लाल बेग के नाम पर करवाया था । लगभग 250 एकड़  में फैले इस बाग़ की छटा बहुत ही अद्भुत है । दूर तक फैले इस बाग़ में फव्वारे है ,  किस्म किस्म के फूलो ,वनस्पतियों , तथा हर्बल प्लांट्स है और एक बहुत ही खूबसूरत झील भी है । मैं कह सकता हूं कि जो लाल बाग़ नही आया वह बेंगलुरु यात्रा से महरूम है ।
    बेंगलुरु की ट्रैफिक के हालात बहुत खराब है और हो भी क्यो नही । इस एक करोड़ बीस लाख आबादी के शहर में लाखों गाड़ियां है जो इस द्रुत गति से बढ़ते शहर में सिर्फ रेंगती है । एक स्थान से दूसरी जगह पर जाने के लिये 1 से 3 घण्टे तो लगना मामूली बात है ।  बेंगलुरु का एयरपोर्ट तो शहर से इतनी दूर है कि वहाँ पहुंचने में ही आधा दिन लग जाए । इसके मुकाबले में पब्लिक ट्रांसपोर्ट अच्छी व सस्ती है ,जिस पर आप एतबार करके कम पैसे में एक जगह से दूसरी जगह आ जा सकते है ।
लौट के घर आने पर सबने मिल कर रात्रि भोज किया और उसके बाद हमारी भतीजी प्रियंका अपने पति गौरव तथा डेढ़ वर्षीय बेटी के साथ आये । देर रात तक खूब पारिवारिक गपशप  हुई और फिर थक कर इत्मीनान से सोए ।
       अगला दिन रुख़्सती का था । पर आज हमे हमारी एक अन्य मित्र पुष्पा एस ने नाश्ते और खाने पर बुलाया था । हमे बहुत ही अच्छा लगा कि उन्होंने इस मौके पर अनीसुल हक़ दम्पत्ति को भी बुलाया था । पुष्पा एस अनेक सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर काम करती है तथा स्वराज इंडिया अभियान से जुड़ी है । वे भी गत वर्ष आगाज़ ए दोस्ती यात्रा से जुड़ी थी और बॉर्डर तक अमन-दोस्ती के नारे लगाती बढ़ी थी । एक अलग ही साहसी महिला है जो विश्व शांति ,राष्ट्रीय एकता व सर्वधर्म समभाव के प्रति समर्पित है । उनके घर पर ही खाने के साथ-2 इन्हीं मुद्दों तथा वर्तमान चुनौतियों पर गहन चर्चा होती रही । उनके द्वारा बनाये खाने भी लाजवाब व लज़ीज़ था । रागी के डोसे ,सांभर , चटनी ,पंजाबी छोले, पुलाव , मफ्फिल्स और आइस क्रीम । उन्होंने न केवल प्यार से खिलाया वही रास्ते के लिये बांध कर दिया । विदाई का वातावरण ऐसा भावुक था मानो कोई बिछड़ी बहन अपने भाईयों व भाभियों को रुख्सत कर रही हो ।
        हमारे बेंगलुरु रहते हुए सर्वोदयी नेत्री तथा नजदीक के ही एक कॉलेज में अत्यंत क्रिया शील प्रोफेसर आबिदा का भी फोन आया जिसमे उन्होंने हमसे गिला किया कि हमने उन्हें क्यो नही अपने आने की सूचना दी । उनकी शिकायत जायज है । हमने उनसे वायदा किया कि अगली बार हम उनके ही रुकेंगे । निर्मला दीदी ने  इतना बड़ा परिवार बना कर हमें सौंपा है जो प्यार से लबरेज़ है ।
    वापिसी के लिये एयरपोर्ट पहुंचते ही अनीसुल हक़ साहब का फोन आ गया और हमारे कुशलता से पहुंचने पर उन्होंने इत्मीनान की सांस ली । वे बार-2 कह रहे थे कि भाई जब अगली बार आए तो उनके घर ही रुंके । इन तमाम मीठी यादों को संजो कर वापिसी कर रहे है । हम है न कितने खुशकिस्मत जिनका इतना विशाल परिवार है ।
जय जगत !
साभार : राम मोहन राय, बेंगलुरु (कर्नाटक)

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