कोरोना वायरस भारत में नहीं मचा पाएगा ज्यादा तबाही ?
कोरोना वायरस को लेकर जहां हर ओर
से भयभीत करने वाली खबरें आ रही हैं, वहीं भारत के लिए एक राहत देने वाली
जानकारी मिल रही है। इन दिनों कोरोना की रोकथाम को लेकर दुनिया में तमाम
शोध किए जा रहे हैं। अमेरिकी शोधकर्ताओं की एक नई स्टडी में दावा किया जा
रहा है कि जिन देशों में बीसीजी (बैसेलियस कैलमैटे-गुएरिन) वैक्सीन का बड़े
पैमाने पर इस्तेमाल हुआ है, वहां बाकी देशों के मुकाबले मृत्यु दर छह गुनी
कम है। जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ के एक्सपर्ट्स ने
ये स्टडी की है। इन नतीजों को आर्काइव साइट मेडरिक्सिव पर प्रकाशित किया
गया है। हेल्थ एक्सपर्ट्स की समीक्षा के बाद इसे मेडिकल जर्नल में प्रकाशित
किए जाने की तैयारी है।
शोध के मुताबिक बीसीजी वैक्सीन टीबी (ट्यूबरकुलोसिस) के खिलाफ इम्युनिटी
विकसित करती है। टीबी बैक्टीरिया संक्रमण से होता है। लंदन से प्रकाशित
डेली मेल की एक रिपोर्ट के मुताबिक, शुरुआती ट्रायल में पता चला है कि जिन
लोगों ने बीसीजी का टीका लगवाया है, उनका इम्यूनिटी सिस्टम ज्यादा मजबूत
होता है और वे दूसरों के मुकाबले संक्रमण के खिलाफ खुद को ज्यादा सुरक्षित
रख पाते हैं। उदाहरण के तौर पर, अमेरिकियों पर किए गए एक ट्रायल में बताया
गया था कि बचपन में दी गई बीसीजी वैक्सीन टीबी के खिलाफ 60 सालों तक
सुरक्षा प्रदान करती है।
हालांकि यह तो कहना मुश्किल है कि ये वैक्सीन दूसरे संक्रमणों से कितना
बचाती है, लेकिन ऐसा हो सकता है कि वैक्सीन से अंदरूनी प्रतिरोधक क्षमता
ज्यादा बेहतर तरीके से काम करती हो। भारत और अफ्रीकी देशों में बीसीजी का
व्यापक इस्तेमाल हो चुका है। अगर इस स्टडी के नतीजों पर वैज्ञानिकों की
मुहर लग जाती है तो भारत के लिए ये अच्छी खबर होगी। हालांकि, बीसीजी
वैक्सीन से कोरोना से मृत्यु दर कम होने की बात कही जा रही है, लेकिन इससे
कोरोना संक्रमण का खतरा खत्म नहीं हो पाएगा।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक ब्रिटेन में स्कूली बच्चों को 1953 से 2005 के
बीच वैक्सीन दी गई थी। जब टीबी के मामलों में कमी आई तो डॉक्टरों ने बड़े
पैमाने पर वैक्सीन देना बंद कर दिया गया। 2005 में सिर्फ बेहद गंभीर खतरे
वाले मामलों में ही टीका दिया जाने लगा। शोधकर्ताओं को उम्मीद है कि बीसीजी
वैक्सीन से इम्यून सिस्टम चार्ज हो जाएगा और कोरोना वायरस के शरीर पर हमला
बोलने से पहले ही इसकी पहचान कर इसे नष्ट कर देगा। इस स्टडी में देश की
संपन्नता और आबादी में बुजुर्गों की संख्या जैसे फैक्टरों को भी शामिल किया
है। इसके अलावा, स्टडी में ये भी देखा कि किसी देश में 10 लाख लोगों पर
मृत्यु दर क्या है ?
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिकी शोधकर्ताओं ने शोध पेपर में लिखा है,
किसी भी देश की आर्थिक स्थिति, बुजुर्गों की आबादी के अनुपात और तमाम स्टडी
में मृत्यु दर के अनुमान समेत तमाम फैक्टरों को शामिल करने के बावजूद
बीसीजी टीके और कम मृत्यु दर के संबंध को नकारा नहीं जा सकता है। देशों की
आर्थिक स्थिति बदलने के साथ कोरोना वायरस से मृत्यु दर में भी अंतर पाया
गया। कम आय वाले देशों में 10 लाख लोगों में मृत्यु दर 0.4 फीसदी, मध्य आय
वर्ग वाले देशों में मृत्यु दर 0.65 और उच्च आय वर्ग वाले देशों में मृत्यु
दर 5.5 फीसदी पाई गई। यानी समृद्ध देशों में कोरोना संक्रमण से मृत्यु दर
ज्यादा है। शोधकर्ताओं का कहना है कि कोविड-19 वायरस 65 या उससे ज्यादा
उम्र वालों के लिए ज्यादा खतरनाक है जबकि गरीब देशों में ज्यादातर आबादी
युवा है।
शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि कई ऐसे फैक्टर हैं, जिनका अध्धयन किया जाना
बाकी है। हालांकि, बीसीजी वैक्सीन और आर्थिक स्थिति से कोरोना वायरस के
संबंध पर गौर किया जाना चाहिए। दुनिया भर में कई ऐसे ट्रायल भी चल रहे हैं,
जिनमें कोरोना वायरस से लड़ने में बीसीजी वैक्सीन की भूमिका की जांच की जा
रही है। पिछले महीने ऑस्ट्रेलिया में 4000 हेल्थवर्करों पर ऐसा ही एक
ट्रायल शुरू किया गया है।
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