MAHABHARAT : पांडव नहीं थे पांडु के पुत्र, दुर्योधन समेत शत पुत्रों के पिता नहीं थे धृतराष्ट्र
महाभारत केवल एक महायुद्ध नहीं था, बल्कि कई रहस्यों, कहानियों और प्रतिशोधों का एक हवन माना जाता है। कौरवों और पांडवों के बीच हस्तिनापुर की गद्दी के लिए कुरूक्षेत्र में महाभारत का युद्ध हुआ था। कुरूक्षेत्र हरियाणा प्रांत का एक जिला है। महाभारत युद्ध में भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को गीता का उपदेश दिया था। कृष्ण इस युद्ध में पांडवों के साथ थे। युद्ध के बाद से कलियुग का आरंभ माना जाता है। कृष्ण जन्म और मृत्यु के समय ग्रह-नक्षत्रों की जो स्थिति थी उस आधार पर तमाम ज्योतिषियों ने कृष्ण की आयु 119-33 वर्ष आंकी है। उनकी मृत्यु एक बहेलिए का तीर लगने से हुई थी। माना जाता है कि महाभारत युद्ध में एकमात्र जीवित बचा कौरव युयुत्सु था। महाभारत युग में कौरवों का पूरे भारत में प्रभाव था। कौरव, पौरव और यादव तीनों ही चन्द्रवंशी थे। महाभारत में हर पात्र के साथ बड़ी ही रहस्यमय कहानी जुड़ी है। तमाम शोध पत्रों में माना गया है कि न पांडू के पुत्र पांडव थे और न ही दुर्योधन समेत शत पुत्रों के पिता धृतराष्ट्र थे। इसीलिए ज्यादातर पात्रों को उनकी मां के नाम से जाना जाता है जैसे गंगा पुत्र, कुंती पुत्र, गंधारी पुत्र आदि-आदि। ऐसे कुछ पात्रों की रहस्यमय बात आपको बता रहे हैं......
- कुरू वंश
कथा में बताया जाता है कि महाराजा शांतनु की पत्नी का नाम था गंगा। गंगा से उन्हें आठ पुत्र मिले, जिसमें से सात को गंगा में बहा दिया गया और 8वें पुत्र को पाला-पोसा। उनके 8वें पुत्र का नाम देवव्रत था। यह देवव्रत ही आगे चलकर भीष्म कहलाया। यह कुरूवंश की एक शाखा का अंतिम राजा था। बाद में राजा शांतनु का निषाद जाति की एक महिला सत्यवती से प्रेम हो गया। सत्यवती के कारण देवव्रत को आजीवन अविवाहित रहने की प्रतिज्ञा लेना पड़ी।
शांतनु को सत्यवती से दो पुत्र मिले चित्रांगद और विचित्रवीर्य। चित्रांगद युद्ध में मारा गया जबकि विचित्रवीर्य का विवाह भीष्म ने काशीराज की पुत्री अंबिका और अंबालिका से कर दिया। लेकिन विचित्रवीर्य को कोई संतान नहीं हो रही थी तब चिंतित सत्यवती ने कुंवारी अवस्था में पराशर मुनि से उत्पन्न अपने पुत्र वेद व्यास को बुलाया और उन्हें यह जिम्मेदारी सौंपी कि अंबिका और अंबालिका को कोई पुत्र मिले। अंबिका से धृतराष्ट्र और अंबालिका से पांडु का जन्म हुआ जबकि एक दासी से विदुर का। इस तरह देखा जाए तो पराशर मुनि का वंश चला।
- वेद व्यास
- पांडव से देवताओं के कृपा पुत्र
कुंती बोली, 'हे आर्य! दुर्वासा ऋषि ने मुझे ऐसा मंत्र प्रदान किया है, जिससे मैं किसी भी देवता का आह्वान करके मनोवांछित वस्तु प्राप्त कर सकती हूं। आप आज्ञा करें मैं किस देवता को बुलाऊं?' इस पर पांडु ने धर्म को आमंत्रित करने का आदेश दिया। धर्म ने कुंती को पुत्र प्रदान किया, जिसका नाम युधिष्ठिर रखा गया। कालांतर में पांडु ने कुंती को पुनः दो बार वायुदेव तथा इन्द्रदेव को आमंत्रित करने की आज्ञा दी। वायुदेव से भीम तथा इन्द्र से अर्जुन की उत्पत्ति हुई। बाद में कुंती ने माद्री को उक्त मंत्र की दीक्षा दे दी। माद्री ने अश्वनीकुमारों को आमंत्रित किया और इस तरह नकुल तथा सहदेव का जन्म हुआ।
कथा में माना जाता है कि एक दिन राजा पांडु माद्री के साथ वन में सरिता के तट पर भ्रमण कर रहे थे। सहसा वायु के झोंके से माद्री का वस्त्र उड़ गया। इससे पांडु का मन चंचल हो उठा और वे मैथुन में प्रवृत्त हुए ही थे कि शापवश उनकी मृत्यु हो गई। बाद में माद्री उनके साथ सती हो गई। ऐसे में सभी पुत्रों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी कुंती पर आ गई और कुंती ने हस्तिनापुर लौटकर अपने पुत्रों के हक की लड़ाई लड़ी। इस तरह पांडवों की मां दो थी और छह पिता थे। कुंति के चार पुत्र कर्ण, युधिष्ठिर, अर्जुन और भीम थे, जबकि माद्री के पुत्र नकुल और सहदेव थे।
- दुर्योधन समेत गंधारी के शत पुत्रों के पिता भी धृतराष्ट्र नहीं थे
कथा में बताया जाता है कि पांडु की पत्नी कुंती के पुत्र युधिष्ठिर के जन्म का समाचार मिलने के बाद धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी के मन में भी पुत्रवती होने की इच्छा जाग्रत हुई, लेकिन धृतराष्ट्र के लाख प्रयासों के बावजूद कोई पुत्र जन्म नहीं ले पा रहा था तब एक बार फिर से वेद व्यास को बुलाया गया और वेद व्यास की कृपा से गांधारी ने गर्भ धारण किया। गर्भ धारण के पश्चात 2 वर्ष व्यतीत हो जाने पर भी जब पुत्र का जन्म नहीं हुआ तो क्रोधवश गांधारी ने अपने पेट में मुक्का मारकर अपना गर्भ गिरा दिया। योगबल से वेद व्यास को इस घटना को तत्काल जान लिया और उन्होंने गांधारी के पास आकर अपने क्रोध को प्रकट किया। फिर उन्होंने कहा कि तुरंत ही 100 कुंड तैयार कर उसमें घृत भरवा दो।
गांधारी ने उनकी आज्ञानुसार 100 कुंड बनवा दिए। तब वेद व्यास ने गांधारी के गर्भ से निकले मांसपिंड पर अभिमंत्रित जल छिड़का जिसके चलते उस पिंड के अंगूठे के पोर बराबर 100 टुकड़े हो गए। वेद व्यास ने उन टुकड़ों को गांधारी के बनवाए 100 कुंडों में रखवा दिया और उन कुंडों को 2 वर्ष पश्चात खोलने का आदेश दे अपने आश्रम चले गए। 2 वर्ष बाद सबसे पहले कुंड से दुर्योधन की उत्पत्ति हुई। दुर्योधन के जन्म के दिन ही कुंती के पुत्र भीम का भी जन्म हुआ। दुर्योधन जन्म लेते ही गधे की तरह रेंकने लगा।
धृतराष्ट्र को ज्योतिषियों ने इसका लक्षण पूछे जाने पर बताया, 'राजन्! आपका यह पुत्र कुल का नाश करने वाला होगा।' फिर उन कुंडों से क्रमश: शेष 99 पुत्र एवं दुश्शला नामक एक कन्या का जन्म हुआ। गांधारी गर्भ के समय धृतराष्ट्र की सेवा में असमर्थ हो गई थी अतएव उनकी सेवा के लिए एक दासी रखी गई। धृतराष्ट्र के सहवास से उस दासी का भी युयुत्सु नामक एक पुत्र हुआ। युवा होने पर सभी राजकुमारों का विवाह यथायोग्य कन्याओं से कर दिया गया। दुश्शला का विवाह जयद्रथ के साथ हुआ।
- दानवीर कर्ण
कर्ण का निजी जीवन अब भी रहस्यों से घिरा हुआ है। यह रहस्य है कर्ण के विवाह का। इतिहास साक्षी है कि कर्ण द्रोपदी से विवाह करना चाहता था पर सूतपुत्र होने का दाग उसका यह सपना निगल गया। लेकिन ऐसा नहीं है कि कर्ण को उसका जीवनसाथी न मिला हो। द्रौपदी से अलग होने के बाद कर्ण ने दो विवाह किए।
- दानवीर कर्ण की पत्नी
अपने बेटे को इस प्रकार दुखों से घिरा देखकर आधीरथ ने उनके विवाह के लिए कन्या की तलाश शुरू की। तब उन्हें दुर्योधन के विश्वास पात्र सारथी सत्यसेन की बहन रुषाली की याद आई। वह बेहद चरित्रवान सूतपुत्री थी। चूंकि यहां सामाजिक बाधाएं नहीं थीं इसलिए आधीरथ ने कर्ण से कहा कि वह रुषाली से विवाह कर लें। अपने पिता की आज्ञा को भला कर्ण कैसे इंकार करते, सो उन्होंने विवाह के लिए सहमति दे दी। दोनों का विवाह धूमधाम से हुआ।
- रुषाली ने किया था द्रोपदी को आगाह
- प्रस्तुति: राजेश्वरी मौर्य, नई दिल्ली।
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