- कोरोना और स्पेनिश फ्लू के लक्षण समान,  1918 में हुई थीं करोड़ों मौतें
दुनिया में 1918 में स्पेनिश फ्लू नाम की महामारी से 50 करोड़ से ज्यादा 
लोग संक्रमित हुए थे और करीब दो करोड़ से पांच करोड़ के बीच लोगों की जान 
चली गई थी और यह आंकड़े प्रथम विश्वयुद्ध में मारे गए सैनिकों व नागरिकों 
की कुल संख्या से बहुत ज्यादा हैं।  
पूरी दुनिया में इस समय कोरोनावायरस महामारी की वजह से कोहराम मचा है और 
बड़ी-बड़ी सरकारें इसके सामने बेबस नजर आ रही हैं, लेकिन वर्ष 1918 में भी 
एक वायरस ने भयानक तबाही मचाई थी और इसकी भयावहता का अनुमान लगाना भी 
मुश्किल है। स्पेनिश फ्लू नाम की इस महामारी से दुनियाभर के 50 करोड़ से 
ज्यादा लोग संक्रमित हो गए थे और करीब दो से पांच करोड़ के बीच लोगों की 
जान चली गई थीं और यह आंकड़े प्रथम विश्वयुद्ध में मारे गए सैनिकों व 
नागरिकों की कुल संख्या से ज्यादा हैं।
स्पेनिश फ्लू ने हालांकि दो वर्षों यानि 1920 तक कोहराम मचाया था, लेकिन 
अधिकतर मौतें 1918 के तीन क्रूर महीने में हुई थी। इतिहासकारों का अब मानना
 है कि स्पेनिश फ्लू के दूसरे दौर में हुई व्यापक जनहानि की वजह युद्ध के 
समय सैनिकों की आवाजाही थी, जिस दौरान रूपांतरित हो चुके वायरस ने भयानक 
तबाही मचाई। जब स्पेनिश फ्लू पहली बार मार्च 1918 में सामने आया था, तो 
इसमें सीजनल फ्लू के सारे लक्षण मौजूद थे और साथ ही यह अत्यधिक संक्रामक और
 विषाणुजनित था। इससे सबसे पहले संक्रमित होने वालों में कैंसास के कैंप 
फ्यूस्टन में अमेरिकी सेना के एक रसोइया अल्बर्ट गिचेल शामिल थे, जिसे 104 
डिग्री बुखार के साथ अस्पताल में भर्ती कराया गया था। इसके बाद यह वायरस 
सैन्य प्रतिष्ठान से होता हुआ करीब 54000 सैनिकों में फैल गया। महीने के 
अंत तक, 1100 सैनिकों को अस्पताल में भर्ती कराया गया और 38 सैनिकों की मौत
 न्यूमोनिया के लक्षणों के बाद हो गई।
- स्पेनिश फ्लू नाम क्यों पड़ा 
युद्ध के लिए यूरोप में अमेरिकी सेना को तैनात किया गया था, वे लोग अपने 
साथ इस महामारी को ले गए। वायरस इंग्लैंड, फ्रांस, स्पेन और इटली में जंगल 
के आग की तरह फैला। अनुमान के मुताबिक, 1918 के वसंत में फ्रांसीसी सेना के
 एक चौथाई जवान इस वायरस से संक्रमित हो गए थे और आधे से ज्यादा ब्रिटेन के
 सैनिक भी इस महामारी से संक्रमित हो गए थे। वायरस का पहला दौर उतना खतरनाक
 नहीं था, जिसमें तेज बुखार और बेचैनी प्राय: तीन दिन तक रहती थी और इसकी 
मृत्यु दर सीजनल फ्लू जितनी ही थी। इस वायरस का नाम स्पेनिश फ्लू पड़ने के 
पीछे भी अत्यंत रोचक घटना है। स्पेन और इसके पड़ोसी यूरोपीय देश भी प्रथम 
विश्व युद्ध के दौरान तटस्थ थे और इसने प्रेस पर सेंशरशिप नहीं लगाई थी। 
वहीं इसके उलट फ्रांस, इंगलैंड और अमेरिका में अखबारों पर प्रतिबंध था और 
वे ऐसी कोई चीज छपने नहीं देना चाहते थे, जिससे युद्ध के दौरान सैनिकों का 
मनोबल गिरे। वहीं, स्पेनिश अखबार लगातार इसकी रिपोर्टिग करते रहे और यहीं 
से इसका नाम स्पेशिन फ्लू पड़ गया।
- गर्मी तूफान से पहले की शांति थी 
स्पेनिश फ्लू के मामलों में 1918 की गर्मियों के दौरान  कमी आने लगी थी और 
ऐसी उम्मीद थी कि अगस्त की शुरुआत में वायरस का असर समाप्त हो जाएगा। लेकिन
 यह केवल तूफान से पहले की शांति थी। इसी समय यूरोप में अन्यत्र कहीं, 
स्पेनिश फ्लू का रुपांतरित वायरस सामने आया, जिसमें किसी भी युवा पुरुष या 
महिला को मार डालने की घातक क्षमता थी। वायरस का रुपांतरित स्वरूप महामारी 
का पता चलने के 24 घंटे के अंदर लोगों की जान लेने की क्षमता से लैस था। 
- फिर शुरू हुआ महामारी का दूसरा दौर 
एक सैन्य पोत इंग्लैंड के बंदरगाह शहर पेलीमाउथ से अगस्त 1918 के अंत में 
सैनिकों को लेकर रवाना हुआ, जिसमें कुछ संक्रमित लोग भी शामिल थे। ये लोग 
स्पेनिश फ्लू के घातक प्रकार से संक्रमित थे। जैसे ही यह पोत फ्रांस के 
ब्रीस्ट, अमेरिका के बोस्टन और पश्चिम अफ्रीका के फ्रीटाउन पहुंचा, वैश्विक
 महामारी का दूसरा दौर शुरू हो गया।
संक्रामक बीमारी और प्रथम विश्व युद्ध के बारे में अध्ययन करने वाले ओहियो 
यूनिवर्सिटी के एक इतिहासकार जेम्स हैरिस के मुताबिक, "पूरे विश्व में 
जवानों की त्वरित आवाजाही ने इस महामारी को फैलाने का काम किया। सैनिक पूरे
 साजो समान के साथ एकसाथ यात्रा करते थे, जिस वजह से इस महामारी ने भयंकर 
रूप ले लिया।"
- महामारी से मरने वालों की संख्या में हुई बड़ी बढ़ोतरी 
स्पेनिश फ्लू से 1918 में सितंबर से नवंबर तक मरने वालों की तादाद में 
जबरदस्त बढ़ोतरी हुई। अमेरिका में ही अकेले केवल अक्तूबर माह में इस 
महामारी से 19,5000 अमेरिकी की मौत हो गई। एक सामान्य सीजनल फ्लू के 
मुकाबले स्पेनिश फ्लू के दूसरे दौर में युवाओं और बूढ़ों के साथ-साथ 
स्वस्थ्य आयु वर्ग (25 से 35) के लोगों की भी मौत हुई। उस समय केवल यह 
आश्चर्यजनक नहीं था कि कैसे स्वस्थ महिला और पुरुष मर रहे थे, बल्कि इस 
महामारी से लोगों के मरने की वजह भी आश्चर्यजनक थी। लोग तेज बुखार, नेसल 
हेमरेज, न्यूमोनिया और अपने ही फेफड़ों में द्रव्यों के भर जाने की वजह से 
मर रहे थे। दिसंबर 1918 आते-आते, स्पेनिश फ्लू का दूसरा दौर अंतत: समाप्त 
हो गया, लेकिन महामारी की समाप्ति अभी और जिंदगियों को लील लेने के बाद 
समाप्त होने वाली थी। इसका तीसरा दौर जनवरी 1919 में ऑस्ट्रेलिया में शुरू 
हुआ और इस दौर में भी भयानक महामारी ने तबाही मचाई।
- प्रस्तुति : राजेश्वरी मौर्य, नई दिल्ली। 
- वीडियो साभार :  बीबीसी (हिंदी) 
 
 
 
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