Democracy : लोकतंत्र जागृति की आवश्यकता क्यों ?

  • "लोकतंत्र जागृति की आवश्यकता क्यों ? 
  • राजेन्द्र पंवार

सम्मानित लोकतन्त्र सैनानियों ! 
आजादी के उपरांत, सत्ता के लालच में 1975 में तत्कालीन सरकार के आपातकाल लगाने से ये (आलोकतांत्रिक) स्थिति देश में फिर से बनने के कारण आप लोगों को  लोकतन्त्र की रक्षा के लिए 19 से 21 माह तक की जेल काटनी पड़ी। आज भी देश में ऐसी किसी भी सत्ता के लोभियों की सरकार से देश को सचेत रहने की अवश्यकता है। एक बार फिर कहते हैं, कि किसी भी अपराध या आलोकतांत्रिक बात के खिलाफ मुंह खोलना शुरू करें, तब देखना कि शामली जिले का लोकतन्त्र सैनानियों का ये सम्मेलन भले ही आज नक्कारखाने में तूति की आवाज लगे, कल एक नया रंग और परिवर्तन लाएगा।  लेकिन जब तक रहोगे मौन, साथियो तुम्हारी सुनेगा कौन ? 
   दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतन्त्र में लोकतन्त्र जागृति दिवस मनाया जा रहा है। ये इस बात का  द्यौतक है कि हमारी इस व्यवस्था में कहीं कुछ कमी है। आज देश और दुनियां एक महान परिवर्तन के काल से गुजर रही है। एक और स्वार्थ के शैतान ने इंसान को बुरी तरह अपने पंजों में जकड़ लिया है, दूसरे उसने अपने सुख साधनों और विनाश की सामग्री भी प्रचुर मात्रा में इकट्ठा करली है। अणु और परमाणु बम्ब तक उसने तैयार कर लिए हैं। अब देखना है कि उसे (इंसान) को अमरत्व मिलेगा या शैतान की मौत ? ये तो समय ही बताएगा, काल ही उसकी नियति का फैसला करेगा। 
           आज मानव मूल्यों का ह्रास होता जा रहा है। हम अपने चारों ओर व्याप्त मायारूपी चकाचौंध में खो जाना चाहते हैं। जैसे ही हम किसी व्यक्ति को भ्रष्टाचार एवं लूटपाट की इस अंधी दौड़ में लगा देखते हैं, तो हम उसके पीछे लम्पट दौड़ने लग जाते हैं। और देखते हैं कि वह किस प्रकार से इस मुकाम तक पहुंचा है। और उसी जोड़ तोड़ में हम लग जाते हैं । चाहे वह रास्ता कितना भी गलत और आलोकतांत्रिक क्यों न हो। यही कारण है कि दुनियाँ के सबसे बड़े लोकतन्त्र में भी आज हम लोकतन्त्र जागृति दिवस मना रहे हैं। 
           इंसान सभी मर्यादाओं कि सीमाओं को लांघते हुए आपसी भाईचारे, मेलमिलाप, रिश्ते नातों की अनदेखी करके स्वार्थ सिद्ध करने की फिराक में पागल हो गया है। अपहरण, हत्या, बलात्कार की घटनाएँ कभी साल दो साल में क्षेत्र में एक आध कभी हो जाती थी, और सारा गाँव और क्षेत्र देखने जाया करता था, जिसकी सभी लोग निंदा किया करते थे, लेकिन आज इन अपराधों की बाढ़ सी आ गई है, और लोग हैं, कि जानते हुए भी निन्दा और बुराई करना तो दूर मुंह तक खोलना नहीं चाहते। 
             हर आदमी केवल और केवल अपने आपको सुरक्षित देखना चाहता है, यही कारण है कि हम व्यक्तिगत सुरक्षा के चक्कर में सभी असुरक्षित होते जा रहे हैं। जब तक आप बुराई के खिलाफ खड़ा नहीं होंगे, और लड़ोगे नहीं, तो जीतोगे कैसे ? इसलिए लड़ना तो पड़ेगा, जब तक बुराई का विरोध करने से बचोगे, आपत्तियों को आने से कोई रोक नहीं सकता। अपराधियों के हौसले बुलंद होते जायेंगे, यही कारण है कि अपराध दिन प्रतिदिन बढ़ते जा रहें हैं।
            जो किसान ईमानदारी और मेहनत से सबका पेट पालते हैं, तथा जो मजदूर दिनरात मेहनत करके पूँजीपतियों के खजाने भरते हैं, वे कर्ज में डूबे पड़े हैं। उनको तथा उनके परिवार को खाने तक के लाले पड़ें हैं, उनके बच्चों की शिक्षा के सपने चकनाचूर हो गए हैं। कुपोषण और बीमारी ने उनकी कमर तोड़ दी है। शोषण और उत्पीड़न करने वाले बेखौफ अपनी उड़ंदता दिखा रहें हैं। लेकिन आज भी वही दोहे पढे जाते हैं, कि “ समरथ  को नहीं दोष गुसाई ॥“ अरे ये दोहे तो उस समय के हैं, जब देश गुलाम था, हमारा देश वर्ष 1947 की आजादी के बाद अपना संविधान, अपने कानून बनाकर ही तो लोकतन्त्र बना है। इसलिए अब ये गुलामी के समय के दोहे पढ्ने बंद करना होगा। तथा लोकतन्त्र के महत्व और व्यवस्था को समझना होगा।
          विज्ञान में जड़त्व का एक नियम है कि जो वस्तु जिस स्थिति में होती है, वह वहीं ठहरना चाहती है। हम गुलामी कि व्यवस्था से निकलकर लोकतान्त्रिक हुए हैं, क्योंकि आजादी से पहले कई सौ साल तक हमने गुलामों का जीवन जिया है, और बहुत बड़ी बड़ी कुर्बानी देकर हमने आजादी पाई है। इसलिए आज 73 वर्षों के बाद भी उसी व्यवस्था में जीना चाहते हैं। हमें लोकतन्त्र के महत्व को समझ कर अपने जीवन में उतारने की आवश्यकता है।

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