Our Dearest Gandhian Bhaiji Dr S N Subbarao

  •  हमारे परम् स्नेही "भाईजी" डा. एसएन सुब्बाराव 


जन्म तिथि: 7 फरवरी 1929 
निधन       : 27 अक्तूबर 2021







स्व. निर्मला देशपांडे जी के सानिध्य में काम करते हुए डॉ. एसएन सुब्बाराव जी (भाईजी) का जिक्र हमेशा रहता था। दीदी उनके जीवन, विचारों व कार्यों की बड़ी प्रशंसक थी। मन में हमेशा उत्सुकता बनी रहती, कभी तो इन महानुभाव के दर्शन हो ।

      सम्भवतः सन 1994 में "भाईजी" राष्ट्रीय एकता के निमित एक रेल यात्रा लेकर निकले जिसमें देश-दुनिया के सैंकड़ों युवा थे। प्रसिद्ध गांधी सेवक श्री सोमभाई जी ने पानीपत में इस यात्रा के स्वागत करने व अन्य व्यवस्था का दायित्व मुझ पर सौंपा। उन दिनों  आर्य शिक्षण संस्थाओं के प्रबंधन का दायित्व मुझ पर था । विद्यार्थियों के लाव-लश्कर की तो कोई कमी थी ही नहीं।

तो उनके पहले दर्शन व मुलाकात रेलवे स्टेशन, पानीपत पर हुई। इस पड़ाव के कई अनोखे दुर्लभ अनुभव भी हुए, पर सबसे अधिक ऊर्जा मिली उनके व्यक्तित्व, व्यवहार व कृतित्व से। इसके बाद तो हम उनके ही बनकर रह गए ।

      भाईजी, निर्मला देशपांडे जी को अपनी छोटी बहन की तरह ही मानते थे। उनके लगभग हर कार्य के प्रशंसक रहते और ख़ास तौर पर उनके दक्षिण एशियाई देशों में मैत्री संबंधों के प्रयासों के। निर्मला जी के निधन के बाद जब हमनें उन कार्यों को जारी रखने का उन्हें भरोसा दिलाया तो, न केवल हमारे हरदम सहयोगी रहे अपितु एक संरक्षक के रूप में भी खड़े रहे ।

    हमारे हर छोटे-बड़े कार्यक्रमों में एक छोटे से आग्रह पर भी वे आते। उनकी उपस्थिति हरदम हमारे लिए एक ताकत का सबब होती ।

 पानीपत में निर्मला देशपांडे संस्थान में चल रहे एक बहुत ही छोटे हाली अपना स्कूल के प्रति वे सदा अनुग्रही थे । स्कूल के बच्चों से मिलने के लिए वे दो बार पानीपत पधारे और एक बार इसी संस्थान में प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी का. रामदित्ता की पुस्तक के विमोचन पर भी पधारे ।

  संभवतः यह किन्हीं पूर्वजन्मों  अथवा स्व. निर्मला दीदी के सानिध्य का शुभ परिणाम की, वे मुझसे व मेरे पूरे परिवार पर अत्यंत स्नेह रखते रहे। अक्तूबर, 2017 में एक शांति दल लेकर वे श्रीनगर(कश्मीर) गए । उनके विशेष व्यक्तिगत स्नेह पर ही मैं इस दल में शामिल हो सका। पर, यह क्या कि श्रीनगर पहुंचते ही चिकनगुनिया बीमारी का अटैक मुझ पर पड़ा। उस दौरान बुखार व पूरे शरीर मे असहनीय दर्द में यदि कोई मेरा तीमारदार था, तो वह भाईजी ही थे। रातभर जग कर उन्होंने एक पिता की तरह मेरी देखभाल की। वे ऐसे क्षण हैं, जो कभी भी भुलाए नहीं जा सकते ।

   उसी वर्ष 12 दिसंबर को मेरी बेटी संघमित्रा की शादी का कार्यक्रम पानीपत में था । "भाईजी" जैसा महान व्यक्ति यदि इस अवसर पर आशीर्वाद देने के लिए अपनी पूरी टीम के साथ आए तो इसे क्या कहेंगे ? वे अपने साथ सुधीर भाई (उज्जैन) व नजमा बहन को लेकर आए। इस अवसर पर भी अपनी प्रसन्नता का इज़हार उन्होंने राष्ट्रभक्ति व विश्व शांति के सामूहिक गीत गाकर किया । ऐसे अवसर पर यह एक अलग ही अनुभव था कि शादी में डीजे अथवा अन्य शोर शराबे का संगीत न होकर राष्ट्र प्रेम का स्वर था ।

   उनका स्नेह मेरे अन्य पारिवारिक सदस्यों पर भी रहा। सन 2019 में वे अपने अनेक कार्यक्रमों में हिस्सा लेने अमेरिका गए हुए थे । इत्तिफ़ाक़ से मैं व मेरी पत्नी कृष्णा कांता भी उन दिनों अपनी बेटी सुलभा के पास सिएटल में थे। भाईजी को जब इस बात का पता चला तो वे हमारे प्रति अपने स्नेह को रोक न सके व एक चार्टेड लघु विमान से  मिलने के लिए हमारे पास आए व तीन दिन रुके। क्या इस सौभाग्य का कोई सानी हो सकता है ।

     उनकी प्रेरणा से स्व. निर्मला दीदी की स्मृति को स्थायी बनाने के लिए ही वर्ष 2017 में निर्मला देशपांडे आग़ाज़ ए दोस्ती अवार्ड व स्मृति व्याख्यान माला का शुभारंभ किया गया। यह उनका ही वरदहस्त था कि उनके संरक्षण व परामर्श पर देशभर के अनेक युवा सामाजिक व शांति कार्यकर्ताओ को इस अवार्ड से नवाजा गया। निर्मला देशपांडे जी की स्मृति में ऐसा कोई ही कार्यक्रम होगा जिसमें वे शामिल न रहे हो । इस वर्ष 17 अक्तूबर को भी अपनी अस्वस्थता के बावजूद वे शामिल रहे ।

  विगत अर्द्धकुम्भ पर उनके साथ फिर प्रयागराज (इलाहाबाद) जाने का सुअवसर मिला। उनका पितृतुल्य स्नेह इतना भरपुर रहा कि वह भुलाने से भी नहीं भुला जा सकता ।

 दो वर्ष पहले एक कार्यक्रम के दौरान ही उन्हें हृदयाघात हुआ और फिर वे अपनी भांजी रंजिनी बहन के आग्रह पर अपने पैतृक घर बेंगलुरू में आकर रहे । इसी दौरान कोरोना लॉकडाउन की विभीषिका भी पूरे डेढ़ साल से पूरे देश में रही, परन्तु यह सब उनके विचार प्रवाह को रोक न सकी। कोई ही ऐसा दिन जाता हो जब वे किसी न किसी वेबिनार को संबोधित

नहीं कर रहे होते। किसान आंदोलन जैसे मुद्दों पर भी उन्होंने अपनी बेबाक़ राय जाहिर की  और सरकार को चेताया कि वे इनकी न्यायसंगत मांगों को स्वीकार करें।

   उनके बेंगलुरू प्रवास के दौरान भी हम लगातार संपर्क में रहे तथा एक बार वहां जाकर भी उनका स्नेहाशीष प्राप्त किया ।

 बेशक भाई जी ने अपना व्यक्तिगत परिवार नहीं बनाया परन्तु पूरे विश्व में उनके हजारों परिवार थे, जहां उनकी पिता, भाई, दादा-नाना की तरह स्नेह प्रतिष्ठा थी व हर परिवार यह मानता था कि वे उनका लगाव अन्यों से अधिक करते हैं। पर वे तो निर्लिप्त व निर्मोही थे परन्तु स्वभाविक रूप से अनन्य व परम् स्नेही ।

  • Courtsy :
  • राम मोहन राय, वरिष्ठ अधिवक्ता.
  •  सुप्रीम कोर्ट, नई दिल्ली।

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