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=आपसी विश्वास= संत कबीर रोज सत्संग किया करते थे। दूर-दूर से लोग उनकी बात सुनने आते थे। एक दिन सत्संग खत्म होने पर भी एक आदमी बैठा ही रहा। कबीर ने इसका कारण पूछा तो वह बोला, ‘मुझे आपसे कुछ पूछना है। मैं गृहस्थ हूं, घर में सभी लोगों से मेरा झगड़ा होता रहता है। मैं जानना चाहता हूं कि मेरे यहां गृह क्लेश क्यों होता है और वह कैसे दूर हो सकता है?’ कबीर थोड़ी देर चुप रहे, फिर उन्होंने अपनी पत्नी से कहा, ‘लालटेन जलाकर लाओ’। कबीर की पत्नी लालटेन जलाकर ले आई। वह आदमी भौंचक देखता रहा। सोचने लगा इतनी दोपहर में कबीर ने लालटेन क्यों मंगाई। थोड़ी देर बाद कबीर बोले, ‘कुछ मीठा दे जाना।’ इस बार उनकी पत्नी मीठे के बजाय नमकीन देकर चली गई। उस आदमी ने सोचा कि यह तो शायद पागलों का घर है। मीठा के बदले नमकीन, दिन में लालटेन। वह बोला, ‘कबीर जी मैं चलता हूं।’ कबीर ने पूछा, ‘आपको अपनी समस्या का समाधान मिला या अभी कुछ संशय बाकी है?’ वह व्यक्ति बोला, ‘मेरी समझ में कुछ नहीं आया।’ कबीर ने कहा, ‘जैसे मैंने लालटेन मंगवाई तो मेरी घरवाली कह सकती थी कि तुम क्या सठिया गए हो। इतनी दोपहर में लालटेन की क्या जरूरत। लेकिन न...
मायावती समझें खतरे की घंटी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अब यह बात साफ होने लगी है कि सवर्णों को लुभाने के चक्कर में बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लग गई है। दलितों में गैर जाटव वोट के बंटने से बसपा क ो भारी नुकसान हुआ। महापुरूषों के सम्मान में पार्कों और स्मारकों के जरिए दलित स्वाभिमान की आंच तेज करके उनके एकमुश्त वोट पाने की हसरत पर सपा ने जहां पानी फेर दिया, वहीं अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसपर गंभीरता से काम किया है। जिस बसपा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में दलित बाहुल्य सुरक्षित सीटों में 62 पर कब्जा किया था, उसमें से वह इस बार 47 सीटें हार गई। वह केवल 15 सीटें ही जीत पाई, जबकि मुख्यत: पिछड़े वर्ग की पार्टी मानी जाने वाली सपा ने 58 सीटें जीतकर संकेत दिया है कि अब दलितों में जाटव और चमार जाति के अलावा दूसरी जातियों को साथ लेकर अच्छी सफलता हासिल की जा सकती है। इस चुनाव में इसी रणनीति पर कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने काम किया है, चूंकि सत्ताधारी बसपा विरोधी लहर में जनता के समक्ष समाजवादी पार्टी विकल्प बनी तो उसको थोक में वोट मिल गया और अगले चुनाव में...
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