महाराष्ट्र : भाजपा के अहंकार ने दोस्त शिवसेना को बनाया दुश्मन
महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव से पहले कभी सीटों के बंटवारे तो कभी सत्ता में भागीदारी के सवाल पर भिड़े भाजपा और शिवसेना ने आखिर अपना रास्ता अलग-अलग कर लिया और अकेली पड़ी भाजपा फिलहाल महाराष्ट्र में सत्ता के गलियारे से बेदखल हो गई। देवेंद्र फडणवीस ने यह बात आम कर दी और अधिकृत रूप से प्रदेश के राज्यपाल भगतसिंह कोश्यारी को भी इसकी जानकारी दे दी। जिसपर शिवसेना से राज्यपाल ने सत्ता संभालने के लिए पूछ भी लिया है। इस पूरे प्रकरण में जहां शिवसेना ने सत्ता में बराबरी का हक लेने की ठानी, वहीं भाजपा नेतृत्व का अहंकारी और अड़ियल रुख दोस्त शिवसेना को दुश्मन बनने से नहीं रोक पाया। इसमें एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार ने महाराष्ट्र की सिसायत को लेकर अपने तजुर्बे का भरपूर उपयोग किया और तीस साल पुराने भाजपा और शिवसेना को अलग-अलग करने के साथ ही अपनी पार्टी की सत्ता भागीदारी तय कर ली। पर्दे के पीछे चली शरद पवार की राजनीतिक चालें फिलहाल कामयाब होती दिख रही हैं। इस खेल में कांग्रेस भी साफ तौर पर साथ दिखती नजर आ रही है। गत दिवस ही सुप्रीम कोर्ट के अयोध्या निर्णय का स्वागत बहुसंख्यक वर्ग को ध्यान में रखते हुए करना और अब शिवसेना जैसी कट्टर पार्टी के लिए सत्ता की जमीन तैयार करने के प्रयासों को भविष्य में कांग्रेस की बदली सियासती रणनीति के रूप में भी देखा जा रहा है।
महाराष्ट्र में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार मंझे हुए राजनीतिज्ञ माने जाते हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना दोस्त कहते हैं तो बाल ठाकरे भी उनको अपने नजदीक मानते थे। पवार ने खामोशी से महाराष्ट्र में राजनीति की मौजूदा पटकथा तैयार की। हालांकि इस पटकथा को कर्नाटक से लिया गया सबक ही माना जा रहा है। महाराष्ट्र में शिवसेना इस बार मुख्यमंत्री पद को लेकर काफी छटपटाहट में है, इसी को भांपकर पवार ने अपनी चालें चलीं। किंग मेकर माने जाने वाले पवार ने पर्दे के पीछे शांत भाव से चली इस सियायती रणनीति में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी भरोसे में लिया और उद्धव ठाकरे को अपना साथ देने का पूरा भरोसा दिया, जिससे बीच-बीच में बैकफुट पर दिखे उद्धव ठाकरे आखिर दमदार होकर भाजपा से भिड़ गए और भाजपा का अहंकारी नेतृत्व यह ही सोचता रह गया कि शिवसेना के पास कोई विकल्प नहीं है, उसको भाजपा के साथ खड़ा होना ही पड़ेगा और राज्यपाल उनका है, जो एक बार फडणनीस को शपथ दिला देंगे तो अन्य प्रदेशों की तरह यहां भी बहुमत का जुगाड़ हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
यह शरद पवार की रणनीति का ही नतीजा है कि शिवसेना ने एनडीए से नाता तोड़ने का निर्णय ले लिया है। और उसके मोदी सरकार में मंत्री अरविंद सावंत ने भी इस्तीफा दे दिया है।
महाराष्ट्र में एनसीपी सुप्रीमो शरद पवार मंझे हुए राजनीतिज्ञ माने जाते हैं। उन्हें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भी अपना दोस्त कहते हैं तो बाल ठाकरे भी उनको अपने नजदीक मानते थे। पवार ने खामोशी से महाराष्ट्र में राजनीति की मौजूदा पटकथा तैयार की। हालांकि इस पटकथा को कर्नाटक से लिया गया सबक ही माना जा रहा है। महाराष्ट्र में शिवसेना इस बार मुख्यमंत्री पद को लेकर काफी छटपटाहट में है, इसी को भांपकर पवार ने अपनी चालें चलीं। किंग मेकर माने जाने वाले पवार ने पर्दे के पीछे शांत भाव से चली इस सियायती रणनीति में कांग्रेस की अंतरिम अध्यक्ष सोनिया गांधी को भी भरोसे में लिया और उद्धव ठाकरे को अपना साथ देने का पूरा भरोसा दिया, जिससे बीच-बीच में बैकफुट पर दिखे उद्धव ठाकरे आखिर दमदार होकर भाजपा से भिड़ गए और भाजपा का अहंकारी नेतृत्व यह ही सोचता रह गया कि शिवसेना के पास कोई विकल्प नहीं है, उसको भाजपा के साथ खड़ा होना ही पड़ेगा और राज्यपाल उनका है, जो एक बार फडणनीस को शपथ दिला देंगे तो अन्य प्रदेशों की तरह यहां भी बहुमत का जुगाड़ हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
यह शरद पवार की रणनीति का ही नतीजा है कि शिवसेना ने एनडीए से नाता तोड़ने का निर्णय ले लिया है। और उसके मोदी सरकार में मंत्री अरविंद सावंत ने भी इस्तीफा दे दिया है।
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