Babu Jagjeevan Ram : जब बाबू जगजीवन राम को दलित होने के कारण पुरी के जगन्नाथ मंदिर में नहीं घुसने दिया था

बाबू जगजीवन राम  पूर्व उप प्रधानमंत्री की आज पूण्य तिथि है। स्वतंत्रता सेनानी, सामाजिक समरसता एवं वंचित-शोषित वर्ग के उत्थान हेतु सम्पूर्ण जीवन समर्पित करने वाले बाबू जगजीवन राम जी की 113वीं जयंती मना रहा है। देश में लॉकडाउन होने के कारण लोग सोशल मीडिया के जरिए बाबूजी को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि अर्पित कर रहे हैं। बाबूजी का पूरा जीवन वंचितों और दलितों को उनके अधिकार दिलाने के लिए समर्पित रहा है।  

  • 50 वर्ष्र सांसद और सभी विभागों के कैबिनेट मंत्री रहे  
बाबू जगजीवन राम 50 वर्ष सांसद और अभी तक सबसे अधिक समय लगातार कैबिनेट मंत्री रहे देश के सबसे बड़े दलित नेताओं के ज़िक्र में पहला नाम डॉ. भीमराव अंबेडकर का आता है, पर एक और नेता भी थे, जो देश की आज़ादी के साथ ही दलित राजनीति का पोस्टर बॉय बन गए थे। इस नेता के नाम पर लगातार 50 साल तक देश की संसद में बैठने का रिकॉर्ड है। इस नेता के नाम सबसे ज़्यादा करीब 34 बरस तक कैबिनेट मंत्री बने रहने का रिकॉर्ड है। इस नेता के बारे में ईस्टर्न कमांड के लेफ्टिनेंट जैकब ने अपने मेमोराइट्स में लिखा है कि भारत को इनसे अच्छा रक्षामंत्री कभी नहीं मिला, ये नेता दो बार प्रधानमंत्री पद की कुर्सी के सबसे करीब पहुंचने के बाद भी उस कुर्सी पर नहीं बैठ पाया.

  • बाबू जगजीवन राम का जन्मदिन पांच अप्रैल 1908
बाबू जगजीवन राम का  6 जुलाई , 1986 को  देहांत हुआ था।  5 अप्रैल, 1908 को बिहार के भोजपुर में जन्मे बाबू जगजीवन राम के बारे में माना जाता है कि वह सर्वमान्य दलित नेता डॉ. अंबेडकर के सामने कांग्रेस का दलित चेहरा थे। 1946 की अंतरिम सरकार में पंडित नेहरू ने इन्हें लेबर मिनिस्टर बनाया था, जो उस कैबिनेट के सबसे कम उम्र के सदस्य थे। संसद में बैठने का इनका क्रम 6 जुलाई 1986 को देहांत के साथ ही खत्म हुआ।


  • बाबू जगजीवन राम ने स्कूल में दलितों के लिए रखा घड़ा तोड़ा
जगजीवन राम जब आरा में रहते हुए हाईस्कूल की पढ़ाई कर रहे थे, तब उन्होंने एक दिन स्कूल के घड़े से पानी पी लिया। ये वो दिन थे, जब स्कूलों, रेलवे स्टेशनों या बाकी सार्वजनिक जगहों पर पानी के दो घड़े रखे जाते थे। एक हिंदुओं के लिए और दूसरा मुस्लिमों के लिए।  जगजीवन के पानी पीने पर प्रिंसिपल के पास ये शिकायत पहुंची कि एक अछूत लड़के ने हिंदू घड़े से पानी पी लिया है। इसपर प्रिंसिपल ने स्कूल में तीसरा घड़ा और रखवा दिया। ये तीसरा घड़ा दलितों के लिए था।  जगजीवन राम ने वो घड़ा तोड़ दिया। नया घड़ा रखवाया गया, तो जगजीवन ने उसे भी तोड़ दिया। तब जाकर प्रिंसिपल को अक्ल आई और उन्होंने समाज के कथित अछूतों के लिए अलग से घड़ा रखवाना बंद कर दिया।

  • बनारस में पढ़ने के दौरान गाजीपुर से नाई बाल काटने आता था

इस किस्से की शुरुआत भी आरा के स्कूल से ही हुई।  एक बार उनके स्कूल के एक कार्यक्रम में पंडित महामना मदन मोहन मालवीय आए थे।  मालवीय ने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। जगजीवन ने मालवीय के स्वागत में एक भाषण दिया। मालवीय इस भाषण से इतना प्रभावित हुए कि उन्होंने जगजीवन को बीएचयू में पढ़ने के लिए आमंत्रित किया।
जगजीवन बनारस पहुंचे, तो वहां दो चीज़ों ने उनका स्वागत किया। पहली बिड़ला स्कॉलरशिप और दूसरा वहां का भारी भेदभाव। उन्हें कक्षा में दाखिला मिल गया था, लेकिन समाज में बराबरी नहीं मिली थी. मेस में बैठने की इजाज़त थी, लेकिन कोई उन्हें खाना परोसने को राजी नहीं था।  पूरे बनारस में कोई नाई उनके बाल काटने को राजी नहीं था। ऐसे में गाजीपुर से एक नाई उनके बाल काटने बनारस आता था।
बनारस में ऐसा भेदभाव देख जगजीवन बनारस छोड़कर कलकत्ता चले गए। वहां उन्होंने अपनी पढ़ाई पूरी की और बिहार लौटकर राजनीति शुरू की। जगजीवन राम की राजनीति का असर ये था कि उस दौर में कांग्रेस और अंग्रेज दोनों ही उन्हें अपने पाले में करने की कोशिश कर रहे थे।  हालांकि, सफलता अंतत: कांग्रेस को मिली.

  • मुश्किल वक्त में इंदिरा के साथ, फिर हरवाया चुनाव

25 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने फैसला सुनाया कि रायबरेली से इंदिरा गांधी का निर्वाचन अयोग्य है।  राजनारायण की पिटीशन पर सुनाया गया था यह फैसला। जिसके बाद अगर इंदिरा गांधी दोषी पाई जातीं, तो छह साल तक उनके लोकसभा चुनाव लड़ने पर रोक लग जाती। ये मुश्किल समय था, पर वो इंदिरा गांधी के साथ बने रहे। इंदिरा को भी जगजीवन की हैसियत का इलहाम था, जिसकी वजह से उन्होंने जगजीवन को कांग्रेस (इंदिरा) का पहला राष्ट्रीय अध्यक्ष बनाया था। इससे दलितों में ये संदेश भी गया कि इंदिरा को उनकी चिंता है।

निर्वाचन अयोग्य के फैसले के बाद बाबू जगजीवन राम को लग रहा था कि इंदिरा उन्हें सत्ता की चाबी सौंपेंगी, क्योंकि वो उनके लिए कोई राजनीतिक चुनौती खड़ी नहीं करेंगे,  लेकिन सिद्धार्थ शंकर रे और संजय गांधी के सुझाव पर इंदिरा ने राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद को संविधान के एक क्लॉज़ का हवाला देते हुए इमरजेंसी का ऐलान कर दिया। बाबूजी के हाथ चाबी तो नहीं लगी, पर वो कैबिनेट में बने रहे।  इमरजेंसी खत्म होने के बाद 23 जनवरी 1977 को चुनाव का ऐलान हुआ। हालांकि, तब तक न तो इंदिरा को हारने की आशंका थी और न जनता पार्टी को जीतने की उम्मीद।

चुनाव का एेलान होने के बाद फरवरी 1977 में बाबूजी ने अचानक कांग्रेस छोड़ दी। पहले उन्होंने अपनी पार्टी बनाई ‘कांग्रेस फॉर डेमोक्रेसी’ और फिर जनता पार्टी के साथ चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। बाबूजी के इस फैसले से इंदिरा गांधी के विरोधियों में उत्साह आ गया। उनके सुर जो अब तक बेदम थे, उनमें जोश आ गया। जनता पार्टी को भी पता था कि जगजीवन राम के ज़रिए बड़ा दलित वोट उनके पास आ रहा है। इंदिरा को भी कुर्सी जाती हुई दिखाई देने लगी। चुनाव के नतीजे भी ऐसे ही आए। यहां तक सबको ये लग रहा था कि अब आखिरकार बाबू जगजीवन राम प्रधानमंत्री बनेंगे, लेकिन यहां मोरारजी देसाई ने लंगड़ी लगा दी।

  • जब जेपी के हाथ जोड़ने से पहले जगजीवन का दिल पसीजा

बाबू जगजीवन राम में भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बैठने की महत्वाकांक्षा थी. उन्हें इस बात से आपत्ति थी कि जिस पार्टी के सबसे ज़्यादा सांसद उत्तर भारत से आए हैं, उनकी अगुवाई कोई गुजराती कैसे कर सकता है। तब प्रधानमंत्री पद के तीन दावेदार थे- देसाई, बाबू जगजीवन राम और चौ. चरण सिंह। पर, जयप्रकाश के दखल के बाद तय हुआ कि मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री होंगे। इससे बाबूजी इतना नाराज़ हुए कि उन्होंने देसाई की कैबिनेट में शामिल होने से इनकार कर दिया। शपथ-ग्रहण समारोह में भी शामिल नहीं हुए। इसके बाद जेपी को एक बार फिर दखल देना पड़ा।
जेपी बाबूजी से मिले। उनसे कैबिनेट में शामिल होने का बेहद भावुक आग्रह किया। ये बातचीत ऐसे भावों के साथ हुई कि एक बार को जयप्रकाश लगभग रुआंसे हो गए।  उनका बाबूजी के सामने हाथ जोड़ना ही बचा था. पर इसके पहले ही बाबूजी का दिल पसीज गया।  जगजीवन राम से लेकर जनता पार्टी के बाकी नेताओं और यहां तक कि इंदिरा गांधी को भी ये पता था कि जेपी के फैसले सही-गलत हो सकते हैं, लेकिन उनके अंदर कोई व्यक्तिगत लोभ नहीं है।
यही वजह थी कि बाबूजी कैबिनेट में शामिल होने के लिए राजी हो गए। उन्हें रक्षा मंत्रालय दिया गया और चौ. चरण सिंह के साथ उप-प्रधानमंत्री का पद भी। बाबू जगजीवन राम ने 1977 के चुनाव की हवा पलट दी थी, जिसने इंदिरा को सत्ता से बेदखल कर दिया था।  इंदिरा गांधी ने इस बगावत को कभी माफ नहीं किया। बाबू जगजीवन राम की राजनीतिक पूंजी समेटने में सबसे बड़ा योगदान इंदिरा की छोटी बहू मेनका गांधी का भी था।

 जब बाबू ने ‘बॉबी’ को भी हरा दिया था

1970 में राजकपूर की फिल्म रिलीज़ हुई थी ‘मेरा नाम जोकर’. इसमें राज कपूर ने अपनी सारी संपत्ति लगा दी थी और कर्ज भी लिया था। फिल्म फ्लॉप हो गई और राज कपूर बर्बादी की कगार पर आ गए। फिर उन्होंने एक छोटे डिस्ट्रीब्यूटर चुन्नीभाई कपाड़िया की बेटी डिंपल कपाड़िया और अपने बेटे ऋषि कपूर के साथ एक फिल्म बनाई ‘बॉबी’। ये 1973 में रिलीज़ हो गई और अपने कॉन्टेंट की वजह से हिट हो गई।
ये वो दौर था, जब फिल्में आम जनता तक बेहद मुश्किल से पहुंच पाती थीं।  ये टीवी पर ब्लॉकबस्टर फिल्में दिखाने का ज़माना नहीं था। पर 1977 के चुनाव से पहले ये फिल्म इतवार के एक रोज़ टीवी पर दिखाई गई। असल में बात ये थी कि 1977 के चुनाव से पहले दिल्ली के रामलीला मैदान में इंदिरा की विपक्षी पार्टियों के नेताओं की एक बड़ी जनसभा होनी थी। ये रैली अटल बिहारी वाजपेयी के भाषण के लिए भी याद रखी जाती है, जिसमें बाबू जगजीवन राम की वजह से भारी भीड़ आई थी।
इस रैली में लोगों को पहुंचने से रोकने के लिए संजय गांधी के करीबी और सूचना-प्रसारण मंत्री विद्याचरण शुक्ला ने रैली वाले दिन ही टीवी पर ‘बॉबी’ दिखाने का फैसला किया। उन्हें उम्मीद थी कि लोग फिल्म देखने के लिए घर पर रुके रहेंगे। पर, शुक्ला गलत साबित हुए और  रैली में भारी तादाद में लोग पहुंचे और बारिश होने के बावजूद वो छाता लेकर देर रात तक डटे रहे।  अगले दिन अखबारों में हेडिंग लगी थी "Babu beats Bobby"

  • मेनका गांधी की मैग्ज़ीन का किस्सा
मेनका गांधी के संपादन में "सूर्यास्त" मैग्ज़ीन छपती थी। साल 1978 में इस मैग्ज़ीन में बाबू जगजीवन राम के बेटे सुरेश राम की सेक्स करते हुए फोटो छापी गई थीं, ये तस्वीरें सबसे पहले मैग्ज़ीन के कंसल्टिंग एडिटर खुशवंत सिंह के पास आई थीं। खुशवंत ने अपनी ऑटोबायोग्रफी में इन तस्वीरों के बारे में लिखा था कि ये साक्षात् पॉर्न थीं। उनके मुताबिक वो ये तस्वीरें छापने के खिलाफ थे, लेकिन ये तस्वीरें छापी गईं। पूरे देश में हंगामा मच गया और उप-प्रधानमंत्री बाबू जगजीवन राम के राजनीतिक करियर को बड़ा झटका लगा।
सुरेश राम की जो तस्वीरें सामने आईं, उनमें वो डीयू की ग्रेजुएशन की एक स्टूडेंट सुषमा के साथ सेक्स कर रहे थे। बाद में सुरेश राम  ने बयान दिया था कि उनके राजनीतिक विरोधियों ने उन्हें किडनैप करके कार में डाला, उन्हें कुछ पिलाया और फिर बेहोशी की हालत में एक लड़की बुलाकर ऐसी तस्वीरें खींच लीं। बाद में सुरेश ने सुषमा से शादी भी कर ली, जिसको बाबूजी ने कभी अपनी बहू स्वीकार नहीं किया। इस पूरे स्कैंडल में केसी त्यागी का भी नाम सामने आया था, जो उस समय डीयू के  नेता थे।
उधर, राजनीतिक गलियारों में ये हमेशा से स्वीकार किया जाता रहा  कि सूर्या मैग्ज़ीन में वो तस्वीरें बाबूजी का करियर खत्म करने के लिए ही छपवाई गई थीं।
  • बाबूजी पीते थे महंगी विदेशी सिगरेट
बाबू जगजीवन राम को महंगी विदेशी सिगरेटें और सिगार पीने का शौक था। मंत्री बनने के बाद भी उनका ये शौक जारी रहा। पर उनके सिगरेट पीने का तरीका खालिस देसी था। जैसे गांव का कोई आदमी मुट्ठी बंद करके उसमें बीड़ी दबाकर पीता है, जगजीवन भी वैसे ही सिगरेट पीते थे। दिल्ली के जो पत्रकार उस समय ब्रिटिश हैंगओवर में थे, वो जगजीवन राम की खिल्ली उड़ाते हुए लिखते-कहते थे, "He smokes like a peasant." यानी वो किसी किसान या मज़दूर की तरह बीड़ी पीते हैं। कुछ ऐसी ही बातें उनके कान से निकले बालों के बारे में भी होती थीं।

  • जगन्नाथ मंदिर में बिना घुसे पुरी से लौटे थे बाबूजी

एक किस्सा पुरी के जगन्नाथ मंदिर से जुड़ा है, जहां बाबूजी अपने परिवार के साथ दर्शन करने गए थे।  मंदिर पहुंचने पर  उनको परिवार के साथ मंदिर के अंदर जाने की इजाज़त नहीं दी गई। ऐसा उनके दलित होने की वजह से किया जा रहा था। ऐसे में बाबू जगजीवन राम परिवार सहित बिना दर्शन किए ही वापस चले आए थे।
एक दूसरा किस्सा, जब जनवरी 1978 में उन्होंने बतौर रक्षामंत्री बनारस में संपूर्णानंद की मूर्ति का अनावरण किया था। तब  वहां उनके चले जाने के बाद कुछ ब्राह्मणों ने ये कहकर मूर्ति को गंगाजल से धोया कि एक दलित के छूने से मूर्ति अपवित्र हो गई है। इस पर बाबूजी ने कहा था, ‘जो व्यक्ति ये समझता है कि किसी के छू देने से पत्थर की मूर्ति अपवित्र हो गई, उनका दिमाग पत्थर जैसा है।'     

  • लेखक
  • राजेश्वरी
  • संपादक, मौर्य टाइम्स, नई दिल्ली.
   

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