Musalman Vs millat

  •  मुसलमान बनाम मिल्लत


                                                  फोटो प्रतीकात्मक


  • के. विक्रम राव 


       उइगर सुन्नी मुसलमानों पर हो रहे जुल्म के मसले पर इस्लामी पाकिस्तान तो कम्युनिस्ट चीन का हमजोली था ही, अब तो भारत भी इन अल्पसंख्यक अकीदतमंदों का साथ न देकर तटस्थ हो गया है। चीन के विरोध में कम से कम 19 प्रमुख देशों ने अगले साल होने वाले शीतकालीन ओलंपिक से पहले चीन के साथ कोई भी समझौता नहीं करने का फैसला किया है। जापान, कनाडा और यहां तक कि तुर्की जैसे कई अन्य ऐसे राष्ट्र हैं, जिन्होंने चीन के साथ ‘ओलंपिक ट्रूस’ पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया है। ओलंपिक ट्रूस एक प्राचीन परंपरा है, जो खेल में युद्धरत पक्षों के बीच शत्रुता को समाप्त करने के लिए है, ताकि खेलों का सुचारू संचालन सुनिश्चित किया जा सके।  बीजिंग विंटर ओलम्पिक (2022 में) का भारत भी पाकिस्तान से मिलकर बहिष्कार नहीं कर रहा है। हालांकि अमेरिका, जर्मनी, जापान, कनाडा, आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन आदि ने चीन के खेलों में शिरकत करने से साफ इनकार कर दिया है। इन पाश्चात्य गणराज्यों का कहना है कि लाल चीन मानवाधिकारों के घोर उल्लंघन का दोषी है। यह खेल फरवरी 4 से 20, को होना है। बुनियादी मुद्दा है चीन द्वारा उइगर मुस्लिम समाज का अमानुषिक दमन।


         यह कम्युनिस्ट तानाशाह इस्लामी उइगर मुसलमानों का खत्म कर देने पर उतारु है। झिनशियांग प्रांत के इन पूर्वी तुर्की सुन्नी मुसलमानों का दमन वीभत्स है। ताजा खबरों के अनुसार इन सुन्नी उइगर मुस्लिमों के मस्जिद बंद कर दिये गये थे। नमाज निषिद्ध है। सुअर का गोश्त अकीदतमंदों को जबरन खिलाया जा रहा है। प्रशिक्षिण शिविर में कैद कर उन्हें नास्तिक बनाया जा रहा है। अर्थात अल्लाह, खुदा आदि के अस्तित्व को ही नकारा जा रहा है। यह सब इस्लामी पाकिस्तान की मिलीभगत से हो रहा है। कराची से उइगर की राजधानी तक सीधी बस सेवा भी चालू हो गयी है। भारतीयों को आश्चर्य तो इस बात का है कि म्यांमार के रोहिंग्या के लिये लहू के आंसू बहाने वाले भारत की इस्लामी तंजीमें, जमातें, अंजुमनें साजिशभरी खामोशी बनाये हुये हैं। आजतक एक भी विरोध प्रदर्शन उनके द्वारा दिल्ली की चाणक्यपुरी—स्थित शांतिपथ पर निर्मित चीनी दूतावास पर हुआ ही नहीं।

         

        उइगर मुसलमानों के प्रति भारत सरकार का रवैया काफी ढुलमुल और अवसरवादी रहा। विपक्ष में रहे थे तो अटल बिहारी वाजपेयी तब चीन के प्रखर आलोचक थे। मगर प्रधानमंत्री बनते ही उनकी नजर बदल गई। इन उइगर लोगों को कांग्रेसी प्रधानमंत्री पी.वी. नरसिंह राव याद रहेंगे। उन्होंने अफगानी तालिबानियों के विरुद्ध उत्तरी सैनिक गठबंधन का साथ दिया था जिसमें उज्बेकी, ताजिक तथा हाजरा मुसलमान थे। इन सबका रिश्ता और समर्थन उइगर स्वाधीनता संघर्ष के साथ रहा है। उइगर मुसलमान उदार सूफी चिंतन से प्रभावित हैं। उनकी स्वाधीनता, विकास तथा समरसता वाली आकांक्षा को आतंकवाद कहना तथ्यों को विकृत करना होगा। उइगर मुसलमान उजबेकियों के निकट हैं जबकि तालिबानी लोग पश्तून हैं। दोनों शत्रु हैं। एक भी उदाहरण नहीं मिलता जब कोई उइगर मुसलमान किसी फिदायीन हमले का दोषी पाया या हो। चीन ने इन उइगर मुसलमानों पर आतंकवादी का ठप्पा लगा दिया है। पर उसकी दुहरी नजर में जमात-उद-दावा शांतिप्रिय जमात है। जबकि यह लश्कर का सियासी अंग है और भारत में कई वारदातों को अंजाम दे चुका है। इस वर्ष झिनशियांग की अस्सी लाख जनता चीन के आधिपत्य के छह दशक पूरा करेगी ठीक तिब्बत की भांति। सवा अरब की हान नस्ल के चीनी जन के सामने उइगर मुसलमान तो जीरे के बराबर भी नहीं हैं। लेकिन उनके विरोधी तेवर और स्वर के कारण चीन के हान बहुसंख्यक उन्हें रौंद देना चाहते हैं। बौद्ध तिब्बतियों की भांति।


        अचरज यही है कि पड़ोस में कट्टर तालिबानी जन भी उइगर बिरादर पर हो रहे जुल्म को नजरांदाज  कर रहे हैं। मानों उइगर उनके भाई नहीं है। आलमी इस्लाम का सपना में तालिबान तोड़ा रहे हैं।


        इस संदर्भ में मोदी सरकार को लोकतांत्रिक गणराज्यों का साथ देना चाहिये था। आक्रमणकारी चीन को अलग—थलग करने का यह सुअवसर है। एक बात और कोई भी इस्लामी राष्ट्र अबतक उइगर के पक्ष में नहीं आया। फिर कहां है इस्लामी भ्रातृत्व।


  • साभार:
  • K Vikram Rao, Sr. Journalist
  • Mobile : 9415000909
  • E-mail: k.vikramrao@gmail.com

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