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जम्मू : महात्मा गांधी का शहादत दिवस मनाया
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महात्मा गांधी के शहादत दिवस पर गांधी ग्लोबल फैमिली की जम्मू -कश्मीर इकाई द्वारा 30जनवरी को जम्मू की ऐतिहासिक मुबारक मंडी में आयोजित शहीदी दिवस पर उमड़ी भीड़ ने यह प्रमाणित किया कि महात्मा गांधी को जो इस सूबे से सन 1947 में मोहब्बत और भाईचारे के आशा की किरण दिखाई दी थी वह आज भी बरकरार है । न केवल जम्मू से बल्कि कारगिल ,श्रीनगर सहित दूरदराज के हर कोने से लोग आए थे जो गांधी विचार से प्रभावित थे तथा स्व0 दीदी निर्मला देशपांडे जी से प्रेरित रहे थे । अनेक ऐसे लोग थे जिन्होंने स्व0 दीदी के साथ इस सूबे में सद्भाव का काम किया था पर आज उनके जाने के बाद स्वयं को नेतृत्वहीन मानते थे । प्रसन्नता की बात यह थी कि बापू को श्रद्धांजलि देने वालों हजारों की संख्या में उमड़े जनसैलाब में अधिकांश युवा व विद्यार्थी थे* । सभा के आयोजक पद्मश्री डॉ एस पी वर्मा ने स्व0 दीदी से ही सबको जोड़ने के हुनर को सीखा था । संत विनोबा जी के पंच शक्ति सहयोग की तमाम शक्ति यानी विद्वद, सज्जन , शासन,महाजन एवम जन शक्ति का सम्पूर्ण दर्शन इस कार्यक्रम में था । सभी राजनैतिक दलों ,धार्मिक एवम स्वयमसेवी संगठनों ...
बापू का शहादत दिवस : नफरत की आग सुलगाई
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महात्मा गांधी के शहीदी दिवस 30 जनवरी को एक गोपाल शर्मा नाम के युवक ने एक देशी तमंचे से जामिया मिलिया ,दिल्ली में आंदोलनकारियों पर *यह लो आज़ादी* और *जय श्री राम* का नारा लगाते हुए , निशाना साध कर पुलिस की हाजिरी में गोली चलाई जिससे एक नौजवान घायल हो गया । यह एक ऐसा कृत्य है जिसकी कठोर निंदा की जानी चाहिए । गोली चलाने का भी ऐसा दिन चुना गया जिस दिन राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जघन्य हत्या एक हत्यारे नाथूराम गोडसे ने गोली मार कर दी थी । अब यदि कोई यह कुतर्क दे कि गोली तो तमंचे से चली थी। तमंचा एक नाबालिग के हाथों में था। यह नाबालिग काफी दिनों से परेशान था और इसी परेशानी में ही उसने यह कुकृत्य किया तो यह समझ से बाहर की बात है। यदि वह परेशान था तो उसने यह काम कहीं और क्यों नहीं किया? क्या वह देसी तमंचे की खोज किसी परेशानी में ही उससे हो गई? यह सब निरापद प्रश्न है? जिसे उठाया जा रहा है। पर एक बात हम ध्यान रखें कि हम भविष्य की एक ऐसी पीढ़ी को पोषित कर रहे हैं जो परेशानियों का बहाना लेकर अपने मन, दिल व शरीर में नफरत की आग सुलगा कर यह काम करेंगे। उनका निशा...
IRS Report : अमर उजाला के पाठक बढ़े, जागरण और हिंदुस्तान पिछड़े
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महात्मा गांधी : तो पानीपत में 10 नवंबर को ही कत्ल हो जाते बापू
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मे रे पिताजी उस मंजर के चश्मदीद गवाह थे, वह दिन 10 नवंबर, 1947 का था जब महात्मा गांधी, किला ग्राउंड पानीपत में एक जनसभा को संबोधित करने आए थे। विभाजन के बाद पानीपत की बड़ी आबादी जो मुस्लिम समुदाय की थी पाकिस्तान न जाकर हिंदुस्तान में यानि अपने बाबा ए वतन पानीपत में ही रहना चाहती थी। मेरे पिता बताया करते कि पार्टीशन से पहले पानीपत की 70 फीसदी आबादी मुस्लिम थी। आपस में भाईचारा इतना कि भाइयों से भी ज्यादा प्यार। शादी-ब्याह, ख़ुशी-गमी व मरघट में आना जाना। मुस्लिम लोग पढ़े -लिखे व नौकरीपेशा थे व घर की सारी जिम्मेवारी घर की औरतें ही संभालती थी और यहाँ तक कि घर की पहचान भी औरत से ही थी, यानि 'फलां बीबी का घर '। मेरे पिता खुद भी उर्दू -अरबी-फ़ारसी के टीचर थे तथा उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज से अदीब ए आलिम, फ़ाज़िल के इम्तहान पास किए थे। शहर में सिर्फ दो ही स्कूल थे, एक मुस्लिम हाली स्कूल व दूसरा जैन हाईस्कूल। वे जैन स्कूल में ही पढ़े व वहीँ सन् 1928 -48 तक उपरोक्त विषयों के टीचर रहे पर थे। महात्मा गांधी के पक्के चेले व सेक्युलर मिज़ाज के आदमी। पिताजी ब...
दो अनमोल रतन : नारायण मूर्ति ने अवार्ड देकर लिया रतन टाटा से आशीर्वाद
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शहादत दिवस : मजबूती का नाम महात्मा गांधी
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म हात्मा गांधी पर बनी फिल्म "गांधी" कल बड़े पर्दे पर देखने का मौका मिला । बहुत ही बेहतरीन पटकथा, सुव्यवस्थित, ज्ञान एवं मनोरंजन से परिपूर्ण मूवी। हर कलाकार ने अपना किरदार बहुत ही खूबसूरत ढंग से निभाया है। आज के परिपेक्ष में यह फ़िल्म न केवल उपयोगी है, बल्कि प्रासंगिक भी है। हमारे देश ने बापू को बहुत सम्मान दिया है। राष्ट्रपिता का दर्जा दिया है। दिल्ली राजघाट उनकी समाधि पर हर कोई विदेशी राजनयिक व पर्यटक जो भारत आता है, वहाँ जाकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। हर स्कूल-कॉलेज, न्यायालय तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर उनके चित्र दृष्टिगोचर होते है। भारतीय मुद्रा पर भी उनका चित्र प्रकाशित किया है। इस देश में देवालयों में भगवान की मूर्ति स्थापना के अतिरिक्त यदि किसी एक व्यक्ति की कोई प्रतिमा है, तो वह गांधी की ही है। भारत में तो एक राज्य की राजधानी का नाम ही उनके नाम पर "गांधीनगर" है । मोहल्लों, बस्तियों और अन्य संस्थानों के नाम तो उनपर अगणित हैं। एक राजनीतिक पार्टी तो चलती ही "गांधी" के नाम पर है तो दूसरी ओर एक संगठन जो स्वयं एक अन्य राजनीतिक पा...
वीडियो : यूपी में भाजपा नेताओं ने पीटा तो महिला दरोगा ने किया पीएम मोदी से सवाल
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वीडियो: अमेरिका में आयोजित टेलेंट शो में भारत का देशभक्ति गीत
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वीडियो : दीपक चौरसिया के साथ मारपीट, घोर निंदनीय
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देश में यह कैसा माहौल हो गया, जब जनता का मीडिया पर से भी विश्वास उठता जा रहा है। आम जनमानस की बनती यह सोच गंभीर चिंता का विषय है कि मीडिया जनता के हितों की बजाय अपने व्यावसायिक हितों के प्रति अधिक चिंतित है। हर स्टोरी को जनता शक की निगाह से देख रही है। कवरेज करने पहुँच रहे पत्रकारों को भी शक की निगाह से देखा जा रहा है। दीपक चौरसिया भले ही अपने पत्रकारिता दायित्व को निभाने के लिए धरने की कवरेज करने गए थे, लेकिन वहां मौजूद जनमानस ने उनको सरकार के हितों को ध्यान में रखकर कवरेज करने वाला पत्रकार मानकर न केवल कवरेज करने से रोका, बल्कि उनपर हमला बोल दिया। इसकी सभी पत्रकार वर्ग को घोर निंदा करनी चाहिए और समाज को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि हम वास्तव में निष्पक्ष हैं और सत्य व ईमानदारी से पत्रकारिता दायित्व को निभा रहे हैं।
वीडियो : यूपी के एक गांव में चकबंदी के लिए ग्रामीणों में टकराव के दौरान फायरिंग, एसडीएम ने भागकर बचाई जान
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123 वीं जयंती : उनके सपनों की आजादी को चुनौती
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ने ता जी सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जन्म जयंती ऐसे समय में है, जब उनकी आज़ादी के सपनों को चुनौती है। वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के अग्रणी नेता रहे। दो बार उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। आज़ाद हिंद फौज के संस्थापक कमांडर इन चीफ रहे और अपने अंतिम दिनों में उन्होंने अपने स्वप्नों के भारत की तस्वीर को वैचारिक रूप देते हुए एक राजनीतिक पार्टी फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। वे एक समर्पित राष्ट्रभक्त युवक रहे । उनके पिता श्री जानकी दास बोस चाहते थे कि वे एक श्रेष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बन सरकार की सेवा करें। अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा भी दी और उस इम्तहान में टॉपर भी रहे। परीक्षा परिणाम को अपनी उपलब्धि मानते हुए उन्होंने अपने पिता को ही समर्पित करते हुए अपना इस्तीफा साथ ही भेज दिया, क्योंकि वे शासन की सेवा न करके देश सेवा करना चाहते थे। अपने पिता को लिखा पत्र उनकी आंकाक्षाओं का स्पष्ट द्योतक है, जिसे हर महत्वाकांक्षी नौजवान को पढ़ना चाहिए। सरदार भगत सिंह ने राष्ट्रीय आज़ादी के परिपेक्ष्य में उनकी आलोचना भी की तथ...