क्या वास्तव में मोदी छोड़ देंगे सोशल मीडिया ?

 मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य
अजीब बात है, जिस सोशल मीडिया के जरिए नरेंद्र मोदी ने पहले प्रदेश और फिर देश की सीमाओं को लांघ कर विश्व भर में ख्याति प्राप्त की, अब वह उसी सोशल मीडिया को छोड़ने की सोच रहे हैं। हालांकि यह भी काफी दावे के साथ कहा जा सकता है कि वह शायद कभी भी सोशल मीडिया को नहीं छोड़ पाएंगे। मोदी जी की यह सोच एक बात तो प्रमाणित करती है कि जब तक कोई भी माध्यम अपने लिए मुफीद हो तो बहुत अच्छा लगता है, लेकिन जब वह माध्यम अपने खिलाफ हथियार बनने लगे तो उससे नफरत होने लगती है। करीब छह वर्ष पहले सोशल मीडिया मोदी जी के लिए प्रचार का सबसे बड़ा साधन बना, जिसका नतीजा यह रहा कि उन्होंने सबसे सशक्त माध्यम अखबारों को तो प्रधानमंत्री बनते ही नजरअंदाज कर दिया। अपने देश और विदेश के दौरे में प्रिंट मीडिया ही नहीं इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी कभी पास नहीं फटकने दिया। ऊपर से एतराज करने पर साफ कह दिया गया कि आप जरूरत महसूस करते हैं तो अपने संसाधनों से कवर करो या फिर उनके संसाधनों की कवरेज का इस्तेमाल करो। नतीजा मोदी के लिए पूरी तरह समर्पित होकर झूठ सच परोसने वाले मीडिया वाले भी उनके नजदीकी नहीं बन पाए। उन्होंने छह वर्षों में प्रधानमंत्री के नाते कोई प्रेस कांफ्रेंस नहीं की। उल्टे सवाल या तीखी टिप्पणी करने वाले तमाम पत्रकारों को अपने जॉब गंवाने पड़े।                    मोदी का सोशल मीडिया को छोड़ने का बयान यूं ही नहीं आया, इसके पीछे प्रिंट मीडिया की जिम्मेदार सोच वर्किंग महत्वपूर्ण मानी जानी चाहिए। नागरिकता संशोधन कानून को लेकर जहां सोशल मीडिया भ्रम की स्थिति बनाकर झूठ और अफवाह फैलाने का काम कर रहा है वहीं, प्रिंट मीडिया और कुछ जिम्मेदार इलेक्ट्रॉनिक मीडिया सच और जिम्मेदार पत्रकारिता का दायित्व निभा रहे हैं। समाज में फैल रही अफवाहों को दूर कर लोगों को शांत रहने का संदेश दे रहे हैं। हमने विकसित देशों की तर्ज पर सोशल मीडिया को ग्रहण कर उसका उपयोग तो शुरू किया, लेकिन अभी लगता है कि सोशल मीडिया उपयोग के लिए परिपक्वता, समझदारी और देश के लिए जिम्मेदारी का अभाव नजर आता है। 

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