राजनीति में वंशवाद का नारा बेमायने --राजेन्द्र मौर्य---- देश के राष्ट्रपति रहे हैं ज्ञानी जैलसिंह। उनके पौत्र इंद्रजीत सिंह मेरे अच्छे मित्रों में हैं। राष्ट्रपति पद से हट जाने के बाद एक बार मैं ज्ञानी जी के पास बैठा था। मैंने उनसे पूछा कि क्या बात है, कि देश में अब हर चुनाव में गांधी-नेहरू परिवार को गैर कांग्रेसी दल राजनीति से बेदखल करने की बात करते हैं !, इसपर ज्ञानीजी ने बहुत ही सदा हुआ जवाब मुझे दिया कि ऐसा करने से किसी को कौन रोक रहा है, यह तो लोकतंत्र है जनता जब चाहे जिसको राजनीति से बाहर कर सकती है। लोग उनको वोट देना बंद कर दें, तो यह परिवार अपने आप बाहर हो जाएगा। इन दिनों लोकसभा चुनाव 2014 की तैयारी शुरू हो गई है। सभी दलों ने अपने-अपने तरीके से चुनीवी अभियान की शुरूआत कर दी है। चुनावी अभियान में एक बार फिर भाजपा अपने नए प्रत्याशी नरेंद्र मोदी को लेकर मैदान में उतरी है। नरेंद्र मोदी ने भारत को वंशवाद से मुक्ति के लिए कांग्रेस को हराने का आह्वान किया है, लेकिन उनको...
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हिंदुओं का गुरु-मुसलमानों का पीर...Guru of Hindus, Pir of Muslims
हिंदुओं का गुरु-मुसलमानों का पीर न ववर्ष की पूर्व संध्या पर गुरु नानक देव जी महाराज की पुण्यभूमि करतारपुर साहब (पाकिस्तान) जाकर उनके पावन स्थान के दर्शन करने का सुअवसर प्राप्त हुआ। मैं अनेक मामलों में स्वयं को सौभाग्यशाली मानता हूं कि उनके जन्म स्थल ननकाना साहिब का भी दर्शन करने का दुर्लभ अवसर प्राप्त हुआ। करतारपुर साहब वह स्थान है, जहां गुरु नानक देव जी महाराज ने अपने जीवन यात्रा के लगभग 17-18 वर्ष एक जगह रहकर बिताए । उन्होंने यहीं संगत, पंगत और कीरत के महान प्रयोग कर उनका संदेश दिया। यहीं उन्होंने लंगर अर्थात कम्युनिटी किचन की स्थापना की। अपनी महान कृति जपु जी साहब की रचना कर एक आध्यात्मिक साधना का संदेश दिया । उनकी कृषि भूमि, बाग और स्मृति से जुड़े अन्य स्थल यहां सुरक्षित हैं। "मानस की एक जात,एक ही पहचान है" का संदेश देने वाले बाबा नानक भी अपने अनुयायियों द्वारा छेड़े इस विवाद से नहीं बच पाए कि वे कौन है ? अपना शारीरिक चोला छोड़ने के बाद चेले आपस में ही भिड़ गए । हिंदू कहते कि वे हिंदू ...
हनुमानजी की जाति ?
मुबाहिसा : राजेन्द्र मौर्य हनुमानजी की जाति बताना और उसपर सवाल उठाना कतई गलत है। आखिर कब राजनीति में जाति और धर्म का घालमेल बंद होगा। हम प्राणी हैं, इंसान ने अपनी सोच के मुताबिक जाति और धर्म में बांट दिया, जिसको राजनीति पोषित करने का काम कर रही है। इसके विपरीत मैं देखता हूं कि कई देशों के मूल धर्म समाप्ति की ओर हैं और उनके धर्मस्थल वीरान हो रहे हैं, लोग स्वेच्छा से दूसरे धर्म अपना रहे हैं। कई धर्म स्थलों के बिक जाने के भी उदाहरण सामने आ रहे हैं। पर इससे संबंधित देश की सरकार को कोई मतलब नहीं है। मैंने देखा एक देश में हमारे भारतीय गणपति भगवान की पालकी चर्च में लेकर गए तो वहां न केवल चर्च के पादरी ने स्वागत किया बल्कि मौजूद ईसाइयों ने भी पूजा-पाठ में शामिल होकर सभी को भोजन कराया। इससे कहीं भी दोनों धर्मों के लोगों की अपने धर्म के प्रति आस्था में कमी नहीं आती, बल्कि आपस में प्यार और सद्भाव बढ़ता है, जो एक-दूसरे के साथ रहने की ताकत बनता है। जब मैं अपने देश की सरका...
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