"जो तटस्थ है, समय लिखेगा उनके भी अपराध"  - रामधारी सिंह दिनकर     ढीली करो धनुष की डोरी, तरकस का कस खोलो ,  किसने कहा, युद्ध की वेला चली गयी, शांति से बोलो?  किसने कहा, और मत वेधो ह्रदय वह्रि के शर से,  भरो भुवन का अंग कुंकुम से, कुसुम से, केसर से?   कुंकुम? लेपूं किसे? सुनाऊँ किसको कोमल गान?  तड़प रहा आँखों के आगे भूखा हिन्दुस्तान.   फूलों के रंगीन लहर पर ओ उतरनेवाले !  ओ रेशमी नगर के वासी! ओ छवि के मतवाले!  सकल देश में हालाहल है, दिल्ली में हाला है,  दिल्ली में रौशनी, शेष भारत में अंधियाला है .   मखमल के पर्दों के बाहर, फूलों के उस पार,  ज्यों का त्यों है खड़ा, आज भी मरघट-सा संसार .   वह संसार जहाँ तक पहुँची अब तक नहीं किरण है  जहाँ क्षितिज है शून्य, अभी तक अंबर तिमिर वरण है  देख जहाँ का दृश्य आज भी अन्त:स्थल हिलता है  माँ को लज्ज वसन और शिशु को न क्षीर मिलता है   पूज रहा है जहाँ चकित हो जन-जन देख अकाज  सात वर्ष हो गये राह में, अटका कहाँ स्वराज?   अटका कहाँ स्वराज? बोल दिल्ली! तू क्या कहती है?  तू रानी बन गयी वेदना जनता क्यों सहती है?  सबके भाग्य दबा रखे हैं किसने अपने कर ...