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Showing posts from March, 2012
भावी योजना की बुनियाद रखी सेनाध्यक्ष वीके सिंह ने रक्षा सौदे में ‌14 करोड़ रुपये की रिश्वत की पेशकश का एक वर्ष बाद अपनी सेवानिवृत्ति से कुछ अर्से पहले जनरल वीके सिंह द्वारा खुलासा किया जाना सस्ती लोकप्रियता के लिए उठाया गया कदम ही माना जाएगा। रक्षा मंत्री  एके एंटनी ने जिस तरह सीना ठोककर संसद में कहा है कि उनको एक पार्टी के दौरान सेनाध्यक्ष सिंह ने एक साल पहले यह जानकारी दी थी और उन्होंने इस पर कार्रवाई को उनसे कह दिया था। ऐसे में साफ है कि जिस तरह से अनौपचारिकता में सेनाध्यक्ष ने एंटनी से कहा, ठीक उसी तरह उनके द्वारा अनौपचारिक तौर पर कार्रवाई के लिए कह दिया। जितना मैं या अन्य राजनीतिक लोग एंटनी को जानते हैं, वह औपचारिक तौर पर सेनाध्यक्ष द्वारा कार्रवाई की अनु‌मति मांगने पर कतई पीछे नहीं हटते। आर्मी चीफ अपनी सेवानिवृत्ति से ठीक पहले जिस तरह से मीडिया से रुबरु होकर जो खुलासे कर रहे हैं, वह निश्चित ही सेवानिवृत्ति के बाद उनके द्वारा अपने व्यस्थ रहने के‌ लिए भविष्य की योजनाओं की बुनियाद रखी जा रही है। ...
लालू यादव के जल्द स्वस्थ्य होने की कामना मुझे आज पता चला कि राजद के राष्ट्रीय अध्यक्ष एवं पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव को अस्वस्थ होने पर एम्स में भर्ती कराया गया है। मैं उनके जल्द स्वस्थ्य होने की कामना करता हूं।  
क्या हो गया श्री श्री रविशंकर को आजकल देखा जा रहा है कि स्वयंभू आध्यात्मिक गुरुओं को लगता है कि तपस्या और लोक शांति के बजाय अशांति फैलाने के‌ लिए राजनीतिक मुद्दे उछालने का शौक  हो गया है। एक पाखंडी गुरु रामदेव जहां योग शिक्षक की भूमिका छोड़कर नेता बनने की जुगत में लगे हैं और  कांग्रेस के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं, वहीं अपने उत्पादों की ब्रा‌डिंग के लिए मॉ‌डलिंग भी कर रहे हैं। रामदेव को तो कोई अधिक गंभीरता से पहले ही नहीं लेता है, लेकिन जिस तरह से श्री श्री रविशंकर के भी विभिन्न स्थानों पर विवादित कार्यक्रम और बयान आ रहे हैं, उससे लगता है कि वह भी अब रामदेव के रास्ते पर चलने लगे हैं। उनका कहना कि सरकारी स्कूलों में नक्सली पैदा होते हैं, यह घोर निंदनीय और आपत्तिजनक है। सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले ही इस देश में सर्वाधिक चिकित्सक, नेता, वैज्ञानिक, प्रशासनिक और न्यायिक अधिकारी है, और ये न भी हों तो  रविशंकर जी की इस बात को कतई सही नहीं माना जा सकता है...
                            प्रकाश झा और अमिताभ बच्चन को बधाई मैंने आज प्रकाश झा की ‌फिल्म आरक्षण देखी, जिसको देखकर मैं पहले ही स्पष्ट करना चाहता हूं कि इस फिल्म में आपत्तिजनक जैसी कोई बात नहीं लगती, जैसा कि तमाम दलित नेताओं विशेष रूप से उत्तर प्रदेश की निवर्तमान मुख्यमंत्री मायावती ने अपना विरोध जताया था और उत्तर प्रदेश में इसके प्रदर्शन पर ही रोक लगा दी थी। इस फिल्म की पटकथा वास्तव में बहुत अच्छी लिखी गई है और उसमें अमिताभ बच्चन और सैफ अली खान के साथ ही मनोज वाजपेयी का काम बहुत ही अच्छा रहा, जिन्होंने अपने-अपने पात्रों के साथ न्याय किया। मैं प्रकाश झा, अमिताभ बच्चन, सैफ अली तथा मनोज वाजपेयी को हार्दिक बधाई देना देता हूं।
                                   मोंटेक सिंह अहलुवालिया की अपनी परिभाषा   शहरों में 28.65 रुपये और गांवों में 22.42 रुपये से अधिक कमाने वालों को गरीबी रेखा से ऊपर बताना योजना आयोग के नए मानदंड देशवासियों के साथ मोंटेक सिंह अहलुवालिया का सबसे बड़ा धोखा है। इस मानदंड को हकीकत से कोसों दूर ही माना जाएगा और इसको योजना आयोग की बजाय इसके उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया की निजी परिभाषा माना जाना चाहिए। लोकसभा में तमाम नेताओं द्वारा जिस तरह अहलुवालिया और खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की खिंचाई की गई है, उससे मोंटेक को आत्ममंथन अवश्य करना चाहिए और आगे देशवासियों को धोखा देने से बचना चाहिए।
ममता बनर्जी कब तक ब्लैकमेल करेंगी ? केंद्र में जब से यूपीए की सरकार में ममता बनर्जी शामिल हैं, तब से ही वह किसी न किसी मुद्दे पर केंद्र सरकार को ब्लैकमेल कर रही हैं और अब की बार तो उन्होंने हद ही कर दी है, जब रेल बजट पेश होते ही उन्होंने अपनी पार्टी के प्रतिनिधि के तौर पर रेल मंत्री बने दिनेश त्रिवेदी को रेल मंत्री पद से हटने का फरमान सुना दिया। शुरू में दिनेश त्रिवेदी भी काफी अकड़ फूं में थे। उन्होंने संसद भवन में ममता बनर्जी को आवंटित कक्ष के बजाय दूसरा कक्ष आवंटित करने पर हंगामा कर दिया था और अब जब वह रेल मंत्री के रूप में बजट पेश कर रहे थे, तो शायद भूल ही गए कि वह खुद कुछ नहीं है बल्कि एक तानाशाह प्रवृत्ति अपना रहीं ममता बनर्जी के प्रतिनिधि मात्र हैं। वैसे तो उनका कहना सही था कि देश हित के सामने पार्टी या व्यक्ति हित को नहीं देखा जाना ‌चाहिए, लेकिन वह यह बात समझ नहीं पाए कि सुदीप बंधोपध्याय किस तरह उनको ममता बनर...
मुश्किल  है  अपना  मेल  प्रिये, यह  प्यार  नहीं  है  खेल  प्रिये तुम   M.A फर्स्ट  divison  हो , मै ं  हुआ  मेट्रिक  फ़ैल  प्रिये मुश्किल  है  अपना  मेल  प्रिये, यह  प्यार  नहीं  है  खेल  प्रिये तुम   फौजी  अफसर  की  बेटी, मै ं  तो  किसान  का   बेटा  हूं तुम   राबड़ी  खीर  मलाई  हो , मै ं  तो  सत्तू  सपरेटा  हूँ तुम   A.C घर  में  रहती  हो , मै ं  पेड़  के   नीचे  लेटा हूँ तुम   नयी  मारुती  लगती  हो , मै ं  स्कूटर  लम्ब्रेटा  हूँ इस  कदर  अगर  हम  छुप-छुप  कर  आपस  में  प्रेम  बढ़ाएंगे तो  एक  रोज़  तेरे  daddy अमरीश  पूरी  बन  जायेंगे सब  हड्डी  पसली  तोड़  मुझे, भिजवा  देंगे  वोह  जे...
 STORY   Once, a Chinese traveller came to meet Kautilya (Chanakya). It was dusk and darkness had just started to set in. When the traveller entered Chanakya's room, he saw that Chanakya was busy writing some important papers under the lighting of an oil lamp. You know that there were no bulbs or tube lights in those days, since there was no electricity. So, in those days people used to light oil lamps. Chanakya smilingly welcomed his guest and asked him to sit. He then quickly completed the work that he was doing. But do you know what did he do on completing his writing work? He extinguished the oil lamp under which he was writing and lit another lamp. The Chinese traveller was surprised to see this. He thought that maybe this was a custom followed by Indians when a guest arrives at their home. He asked Chanakya, "Is this a custom in India, when a guest arrives at your house? I mean, extinguishing one lamp and lighting the other?" Chanakya replied, ...
महान क्रिकेट खिलाड़ी सचिन तेंदुलकर को उनके 100वें शतक पर हार्दिक बधाई
मुलायम के समाजवाद की पोल खुली वैसे तो मुलायमसिंह यादव अपने को डॉ. राममनोहर लोहिया के पथ पर चलने का दावा करते हैं, लेकिन जिस तरह अखिलेश यादव के शपथ ग्रहण में करोड़ों रुपये की बर्बादी की गई, वह उनके समाजवाद की पोल खोलने भर के लिए काफी है। अच्छा होता कि अखिलेश यादव राजभवन में ही किसी औपचारिकता में पड़े बगैर सादगी से मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर नई मिसाल पैदा करते, लेकिन शायद अब समाजवाद भी पूंजीवाद से आकर्षित हो रहा है, जिसका पहले भी मुलायमसिंह यादव जी की कार्यशैली से कई बार मिल चुका है। पहले तो इसके लिए उनके खास सिपाहसलार अमरसिंह को इसके लिए जिम्मेदार माना जाता था और समय-समय पर इसके लिए अपने को खाटी के समाजवादी कहे जाने वाले कई नेता अमरसिंह को कोसते हुए दिखाई देते थे, लेकिन अब तो अमरस‌िंह कहीं दूर तक भी नहीं हैं फिर क्यों समाजवाद पूंजीवाद को ओढ़ रहा है? क्यों नहीं समाजवादी इसपर चोट कर रहे हैं। बेटे को मुख्यमंत्री बनाने के फैसले को भी कहीं से समाजवादी विचारधारा से नहीं जोडा जा सकता है। केवल मुसलिम लड़कियों ...
अखिलेश को बधाई उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को हार्दिक बधाई। उम्मीद की जा सकती है कि वह किसी दुर्भावना से काम नहीं करेंगे और प्रदेश के साथ ही सभी वर्गों का समान रूप से ध्यान रखेंगे।  
STORY In ancient times, a king had a boulder placed on a roadway. Then he hid himself and watched to see if anyone would remove the huge rock. Some of the king’s wealthiest merchants and courtiers came by and simply walked around it. Many loudly blamed the king for not keeping the roads clear, but none did anything about getting the big stone out of the way.Then a peasant came along carrying a load of vegetables. On approaching the boulder, the peasant laid down his burden and tried to move the stone to the side of the road. After much pushing and straining, he finally succeeded. As the peasant picked up his load of vegetables, he noticed a purse lying in the road where the boulder had been. The purse contained many gold coins and a note from the king indicating that the gold was for the person who removed the boulder from the roadway. The peasant learned what many others never understand. MORAL OF THE STORY: Every obstacle presents an opportunity to improve one’s condition.
मायावती समझें खतरे की घंटी उत्तर प्रदेश के विधानसभा चुनाव में अब यह बात साफ होने लगी है कि सवर्णों को लुभाने के चक्कर में बसपा के दलित वोट बैंक में सेंध लग गई है। दलितों में गैर जाटव वोट के बंटने से बसपा क ो भारी नुकसान हुआ। महापुरूषों के सम्मान में पार्कों और स्मारकों के जरिए दलित स्वाभिमान की आंच तेज करके उनके एकमुश्त वोट पाने की हसरत पर सपा ने जहां पानी फेर दिया, वहीं अन्य राजनीतिक दलों ने भी इसपर गंभीरता से काम ‌किया है। जिस बसपा ने 2007 के विधानसभा चुनाव में दलित बाहुल्य सुरक्षित सीटों में 62 पर कब्जा किया था, उसमें से वह इस बार 47 सीटें हार गई। वह केवल 15 सीटें ही जीत पाई, जबकि मुख्यत: पिछड़े वर्ग की पार्टी मानी जाने वाली सपा ने 58 सीटें जीतकर संकेत दिया है कि अब दलितों में जाटव और चमार जाति के अलावा दूसरी जातियों को साथ लेकर अच्छी सफलता हासिल की जा सकती है। इस चुनाव में इसी रणनीति पर कमोबेश सभी राजनीतिक दलों ने काम किया है, चूंकि सत्ताधारी बसपा  विरोधी  लहर में जनता के समक्ष समाजवादी पार्टी विकल्प बनी तो उसको थोक में वोट मिल गया और अगले चुनाव में...
अफसरों की राय में मायावती की हार   एक मेरे घनिष्ट प्रशासनिक अधिकारी ने फोन पर मायावती की हार के कारणों को लेकर अलग ही बात बताई। उनका कहना था कि तीन साल पहले सत्ता विरोधी रुझान की सरसराहट को अगर मायावती ने तनिक महसूस किया होता तो शायद वह इस माहौल को आंधी में बदलने से रोक सकती थीं, लेकिन वे केवल सोशल इंजीनियरिंग के भरोसे सत्ता में वापसी का ख्वाब देख रहीं थीं। अब यह उनके लिए महज रेत का टीला ही साबित हुआ। बसपा इस सवाल को नहीं समझ पाई कि जब पांच साल के लिए पूर्ण बहुमत का जनादेश मिला है तो दागियों, माफिया को गले लगाने की क्या जरूरत है? अगर किसी का अपराध सामने आता है तो उस पर कार्रवाई करने में हिचकिचाहट क्यों रहती है? यह सवाल पहले बसपा काडर से उठता था धीरे-धीरे जनता के बीच उठने लगा। हर समस्या के लिए विरोधियों या केंद्र सरकार पर ठीकरा फोड़ने वाली बसपा सरकार से जनता ने अब सपा के पक्ष में  जनादेश देकर पूछा है कि जब आपको केवल आरोप ही लगाना है तो आपकी जरूरत ही क्या है?  पांच साल पहले बसपा को जो कामयाबी मिली थी उससे बड़ी कामयाबी सपा को इस बार हासिल हुई है। वहीं सपा ...
 जाति विरोधी भावना को महसूस नहीं कर पाईं मायावती जी! उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी की पूर्ण बहुमत की सरकार धराशाई हो गई, जिसको लेकर कोई सत्ता विरोधी आंधी बता रहा है तो कोई मायावती के भ्रष्टाचार को लेकर जनादेश बता रहा है। मेरा इस परिणाम को लेकर अलग ही मानना है और इसको लेकर मैं 2009 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान भी कहता रहा हूं कि उत्तर प्रदेश में मायावती को सबल वर्ग ने वोट देकर पूर्ण बहुमत का दलित मुख्यमंत्री बनाया जरूर है, लेकिन मायावती के मुख्यमंत्री बनते ही किए गए व्यवहार को लेकर जातीय भेदभाव से सबल वर्ग उबलने लगा है। सभा के खुले स्थलों के मंचों पर प्रधानमंत्री की सभाओं का उदाहरण देकर एसी लगवाना. मंच पर अकेले बैठकर सबल वर्ग के मंत्रियों और विधायक से पैर छूने को देखकर सबल वर्ग पचा नहीं पाया। कई सबल वर्ग के मंत्रियों और विधायकों को इस बाबत कई बार अपने क्षेत्रों में विरोध भी झेलना पड़ा।  जब मायावती और उनकी पार्टी ने 2009 के लोकसभा चुनाव में प्रधानमंत्री बनने की हुंकार भरी तो...
STORY A sage presented a prince with a set of three small dolls. The prince was not amused. "Am I a girl that you give me dolls?" he asked. "This is a gift for a future king," said the man. "If you look carefully, you'll see a hole in the ear of each doll." "So?" The sage handed him a piece of string. "Pass it through each doll," he said. Intrigued, the prince picked up the first doll and put the string into the ear. It came out from the other ear. "This is one type of person," said the man. "Whatever you tell him comes out from the other ear. He doesn't retain anything." The prince put the string into the second doll. It came out from the mouth. "This is the second type of person," said the man. "Whatever you tell him, he tells everybody else." The prince picked up the third doll and repeated the process. The string did not reappear from anywhere else. "This...
होली पर सभी देशवासियों को हार्दिक मंगलकामनाएं।
मीडिया पर हमला निंदनीय कर्नाटक की राजधानी बंगलूरू में कोर्ट परिसर में वकीलों द्वारा मीडियाकर्मियों और पुलिस पर हमला निंदनीय है। आखिर सभी को कानून का पाठ पढ़ाने वाले वर्ग को क्या हो गया है ?, जो उनके द्वारा आए दिन देश के किसी न किसी हिस्से में कानून को अपने हाथ में लेने की घटनाएं अब आम हो गई हैं। वकीलों को कोई आदर्श व्यवहार का पाठ पढ़ाए, यह काफी शर्मनाक है। उनको खुद ही इस बात का ख्याल रखना चाहिए कि कोई उनकी ओर अंगुली न उठाए और कम से कम उनको कानून तो अपने हाथ में किसी भी दशा में नहीं लेना चाहिए।    बंगलूरू में टकराव तब शुरू हुआ जब वकीलों ने अवैध खनन मामले में पेश हुए पूर्व मंत्री व खनन उद्योग के दिग्गज जी. जनार्दन रेड्डी के कवरेज के लिए मीडियाकर्मियों की मौजूदगी का विरोध किया। झड़प के बाद उन्होंने पथराव शुरू कर दिया। पानी की बोतलें, कुर्सियां, हेलमेट और जो भी चीज हाथ में आई, उसका हथियार के रूप में इस्तेमाल किया गया। कोर्ट में कई मामलों की सुनवाई बाधित हो गई। हिंसा पर उतारू वकीलों को काबू करने वाली पुल...
केंद्रीय मंत्री कुमारी शैलजा के प्रति संवेदना मुझे जानकारी मिली क‌ि केंद्रीय पर्यटन मंत्री कुमारी शैलजा की मां का लंबी बीमारी के बाद बृहस्पतिवार को निधन हो गया। वे पिछले कई दिनों से अस्पताल में भरती थीं।  कुमारी शैलजा की 85 वर्षीय मां कलावती के निधन पर दिल से दुखी हूं। मैं उनकी आत्मा की शांति के लिए ईश्वरीय शक्ति से प्रार्थना करता हूं और कुमारी शैलजा के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करता हूं।
पासवानजी का सराहनीय कदम   बिहार में प्रेस की आजादी को लेकर पिछले दिनों प्रेस कौंसिल के अध्यक्ष जस्टिस मार्कंडेय काटजू ने सवाल उठाया था, इसको लेकर बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार ने कुछ भी टिप्पणी न करके अपने खास सुशील कुमार मोदी को आगे करके काटजू के बयान पर तीखी टिप्पणी कराई थी, लेकिन एक भी प्रयास ऐसा नहीं किया गया, जिससे नी‌तिश कुमार पर प्रेस की आजादी पर अंकुश लगाने का आरोप न लगे। अच्छा होता कि नीतिश कुमार प्रेस को और अधिक आजादी से काम करने का मौका देते, चूंकि कुमार को दुबारा सत्ता में आने के लिए कहीं न कहीं प्रेस का भी सहयोग माना जाता रहा है। अभी भी बराबर सूचनाएं आ रही हैं कि नीतिश कुमार प्रेस कौंसिल के अध्यक्ष की टिप्पणी करने के बाद सुधार करने की बजाय प्रेस के प्रति सख्ती अपना रहे हैं, इसलिए आवश्यकता है कि अधिकाधिक लोग बिहार के मुख्यमंत्री के खिलाफ सड़कों पर आएं। आज लोक जनशक्ति पार्टी ने दिल्ली में जंतर मंतर पर प्रदर्शन किया। प्रदर्शन के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं ने पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष और सांसद रामविलास पासवान के नेतृत्व में गिरफ्तारी द...