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Showing posts from January, 2020
महात्मा गांधी : तो पानीपत में 10 नवंबर को ही कत्ल हो जाते बापू
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मे रे पिताजी उस मंजर के चश्मदीद गवाह थे, वह दिन 10 नवंबर, 1947 का था जब महात्मा गांधी, किला ग्राउंड पानीपत में एक जनसभा को संबोधित करने आए थे। विभाजन के बाद पानीपत की बड़ी आबादी जो मुस्लिम समुदाय की थी पाकिस्तान न जाकर हिंदुस्तान में यानि अपने बाबा ए वतन पानीपत में ही रहना चाहती थी। मेरे पिता बताया करते कि पार्टीशन से पहले पानीपत की 70 फीसदी आबादी मुस्लिम थी। आपस में भाईचारा इतना कि भाइयों से भी ज्यादा प्यार। शादी-ब्याह, ख़ुशी-गमी व मरघट में आना जाना। मुस्लिम लोग पढ़े -लिखे व नौकरीपेशा थे व घर की सारी जिम्मेवारी घर की औरतें ही संभालती थी और यहाँ तक कि घर की पहचान भी औरत से ही थी, यानि 'फलां बीबी का घर '। मेरे पिता खुद भी उर्दू -अरबी-फ़ारसी के टीचर थे तथा उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम कॉलेज से अदीब ए आलिम, फ़ाज़िल के इम्तहान पास किए थे। शहर में सिर्फ दो ही स्कूल थे, एक मुस्लिम हाली स्कूल व दूसरा जैन हाईस्कूल। वे जैन स्कूल में ही पढ़े व वहीँ सन् 1928 -48 तक उपरोक्त विषयों के टीचर रहे पर थे। महात्मा गांधी के पक्के चेले व सेक्युलर मिज़ाज के आदमी। पिताजी ब...
दो अनमोल रतन : नारायण मूर्ति ने अवार्ड देकर लिया रतन टाटा से आशीर्वाद
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शहादत दिवस : मजबूती का नाम महात्मा गांधी
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म हात्मा गांधी पर बनी फिल्म "गांधी" कल बड़े पर्दे पर देखने का मौका मिला । बहुत ही बेहतरीन पटकथा, सुव्यवस्थित, ज्ञान एवं मनोरंजन से परिपूर्ण मूवी। हर कलाकार ने अपना किरदार बहुत ही खूबसूरत ढंग से निभाया है। आज के परिपेक्ष में यह फ़िल्म न केवल उपयोगी है, बल्कि प्रासंगिक भी है। हमारे देश ने बापू को बहुत सम्मान दिया है। राष्ट्रपिता का दर्जा दिया है। दिल्ली राजघाट उनकी समाधि पर हर कोई विदेशी राजनयिक व पर्यटक जो भारत आता है, वहाँ जाकर अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करता है। हर स्कूल-कॉलेज, न्यायालय तथा अन्य सार्वजनिक स्थानों पर उनके चित्र दृष्टिगोचर होते है। भारतीय मुद्रा पर भी उनका चित्र प्रकाशित किया है। इस देश में देवालयों में भगवान की मूर्ति स्थापना के अतिरिक्त यदि किसी एक व्यक्ति की कोई प्रतिमा है, तो वह गांधी की ही है। भारत में तो एक राज्य की राजधानी का नाम ही उनके नाम पर "गांधीनगर" है । मोहल्लों, बस्तियों और अन्य संस्थानों के नाम तो उनपर अगणित हैं। एक राजनीतिक पार्टी तो चलती ही "गांधी" के नाम पर है तो दूसरी ओर एक संगठन जो स्वयं एक अन्य राजनीतिक पा...
वीडियो : यूपी में भाजपा नेताओं ने पीटा तो महिला दरोगा ने किया पीएम मोदी से सवाल
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वीडियो: अमेरिका में आयोजित टेलेंट शो में भारत का देशभक्ति गीत
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वीडियो : दीपक चौरसिया के साथ मारपीट, घोर निंदनीय
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देश में यह कैसा माहौल हो गया, जब जनता का मीडिया पर से भी विश्वास उठता जा रहा है। आम जनमानस की बनती यह सोच गंभीर चिंता का विषय है कि मीडिया जनता के हितों की बजाय अपने व्यावसायिक हितों के प्रति अधिक चिंतित है। हर स्टोरी को जनता शक की निगाह से देख रही है। कवरेज करने पहुँच रहे पत्रकारों को भी शक की निगाह से देखा जा रहा है। दीपक चौरसिया भले ही अपने पत्रकारिता दायित्व को निभाने के लिए धरने की कवरेज करने गए थे, लेकिन वहां मौजूद जनमानस ने उनको सरकार के हितों को ध्यान में रखकर कवरेज करने वाला पत्रकार मानकर न केवल कवरेज करने से रोका, बल्कि उनपर हमला बोल दिया। इसकी सभी पत्रकार वर्ग को घोर निंदा करनी चाहिए और समाज को यह विश्वास दिलाना चाहिए कि हम वास्तव में निष्पक्ष हैं और सत्य व ईमानदारी से पत्रकारिता दायित्व को निभा रहे हैं।
वीडियो : यूपी के एक गांव में चकबंदी के लिए ग्रामीणों में टकराव के दौरान फायरिंग, एसडीएम ने भागकर बचाई जान
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नेताजी सुभाष चंद्र बोस की 123 वीं जयंती : उनके सपनों की आजादी को चुनौती
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ने ता जी सुभाष चंद्र बोस की 123वीं जन्म जयंती ऐसे समय में है, जब उनकी आज़ादी के सपनों को चुनौती है। वे इंडियन नेशनल कांग्रेस के अग्रणी नेता रहे। दो बार उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष रहे। आज़ाद हिंद फौज के संस्थापक कमांडर इन चीफ रहे और अपने अंतिम दिनों में उन्होंने अपने स्वप्नों के भारत की तस्वीर को वैचारिक रूप देते हुए एक राजनीतिक पार्टी फारवर्ड ब्लॉक की स्थापना की। वे एक समर्पित राष्ट्रभक्त युवक रहे । उनके पिता श्री जानकी दास बोस चाहते थे कि वे एक श्रेष्ठ प्रशासनिक अधिकारी बन सरकार की सेवा करें। अपने माता-पिता की आज्ञा का पालन करते हुए उन्होंने इंडियन सिविल सर्विसेज की परीक्षा भी दी और उस इम्तहान में टॉपर भी रहे। परीक्षा परिणाम को अपनी उपलब्धि मानते हुए उन्होंने अपने पिता को ही समर्पित करते हुए अपना इस्तीफा साथ ही भेज दिया, क्योंकि वे शासन की सेवा न करके देश सेवा करना चाहते थे। अपने पिता को लिखा पत्र उनकी आंकाक्षाओं का स्पष्ट द्योतक है, जिसे हर महत्वाकांक्षी नौजवान को पढ़ना चाहिए। सरदार भगत सिंह ने राष्ट्रीय आज़ादी के परिपेक्ष्य में उनकी आलोचना भी की तथ...
अलविदा : शमशेर सिंह सुरजेवाला
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एक मित्र, साथी और सहयोगी को "विनम्र श्रद्धांजलि" श्री शमशेर सिंह सुरजेवाला एक प्रतिभाशाली राजनीतिज्ञ ही नहीं अपितु एक समर्पित कार्यकर्ता एवं निरपेक्ष समाज सेवी थे । उनके निधन से हरियाणा ने जहां एक जननेता खो दिया है वहीं कांग्रेस पार्टी ने एक सुलझा हुआ विचारक तथा मार्गदर्शक भी खो दिया है । श्री सुरजेवाला से हमारा परिचय वर्ष 1973-74 में हुआ था, जब पूरे देश में प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी के विरुद्ध समूचे विपक्ष का आंदोलन श्री जय प्रकाश नारायण के नेतृत्व में चल रहा था । उस समय वे तथा चोधरी बीरेंद्र सिंह, पूर्व केंद्रीय मंत्री, कांग्रेस पार्टी में वामपंथी धड़े के नेता थे और हम प्रो0 रती राम चौधरी के साथ टीचर्स स्टूडेंट्स फ्रंट पर सीपीआई में सक्रिय थे । हमारा विचार था कि जेपी का आंदोलन दक्षिण पंथ से अनुप्रेरित है तथा इसकी किसी भी प्रकार से सफलता देश को फासिज्म की तरफ ले जाएगी । एक तरफ जेपी का संपूर्ण क्रांति आंदोलन था दूसरी तरफ कांग्रेस व सीपीआई का संयुक्त प्रतिरोध था । हम सभी मिल कर फासीवाद विरोधी कन्वेंशन करते तथा लोगों को इसके प्रति सचेत रहने के लिए जाग...
राष्ट्र नायक खान अब्दुल गफ्फार खान : खुदाई खिदमतगार
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खा न अब्दुल गफ्फार खान, महान स्वतन्त्रता सैनानी, राष्ट्र नायक (बादशाह खान-सीमांत गांधी) को उनकी पुण्य तिथि पर विनम्र श्रद्धांजलि। सम्भवतः यह बात 27-28 जुलाई, 1987 की है, दीदी निर्मला देशपांडे के कहने पर मैंने पूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी ज़ैल सिंह जी के निवास पर फोन कर उनसे दीदी की मुलाकात का समय मांगने के लिए किया था। वह मेरे लिए बहुत ही रोमांच करने वाला वाक्या था। ज्ञानी जी दो एक दिन पहले ही राष्ट्रपति पद से सेवानिवृत हुए थे तथा राष्ट्रपति भवन से अपने नए निवास पर स्थानांतरित हुए थे। दीदी ने कहा था कि वहाँ उनका कोई पीेए फोन उठाएगा, तब उनके रेफरेंस से मैं समय मांगू। मेरे फोन मिलाने पर उधर से आवाज आने पर अपना प्रयोजन बताया तो आवाज आई 'मैं ही ज़ैल सिंह बोल रीआ हां'। मेरी तो सिट्टी पिट्टी गुम। खुद ज्ञानी ज़ैल सिंह जी ही बोल रहे थे। मैंने फिर हिम्मत जुटाई और अपनी बात कही तो उन्होंनेकहा कि 'यदि टाइम हो तो अभी आ जाओ '। मैंने शुक्रिया कहकर फोन रख दिया। सारी बात मैंने दीदी को दरयाफ़्त कि तो वे बोलीं, क्या मेरी सचमुच ज्...
यूपी : भारत के सभी नागरिक हिंदू हैं : भागवत
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आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भारत भविष्य का भारत पर संघ का दृष्टिकोण समझाया राष्ट्रीय स्वयंसेवक सरसंघ संचालक मोहन भागवत ने बरेली में कहा कि भारत में हम सब हिंदू वासी हैं, जाति पंथ,संप्रदाय, प्रांत और तमाम विविधताओं के बावजूद हम एक सभी को मिलकर भारत निर्माण करना है। जब जब हिंदुत्व कमजोर हुआ तब तब भारत का भूगोल बदला है इसलिए हमें विभिन्न संस्कृति और विविधाओं के बीच एक रहना है। भागवत ने कहा कि संघ को लेकर तमाम भ्रांतियां फैलाई जाती है इन भ्रांति का समाधान तभी हो सकता है जब संघ को कोई नजदीक से समझें। संघ के पास कोई रिमोट कंट्रोल नहीं है और ना ही किसी को अपने हिसाब से चलाता है। अन्य लोग कहते हैं विविधा एकता है जबकि हम एकता में विविधता मानते हैं। संघ का दृष्टिकोण समझाते हुए कहा की हमें जाति, प्रांत और क्षेत्रवाद को छोड़कर हिंदू होने पर गर्व करना होगा। क्योंकि जो भी भारत में है पैदा हुआ, उसके वंशज हैं। वह सब हिंदू ही होते हैं। मोहन भागवत ने कहा कि सत्य पर आधारित विरोध करने पर सुधार होता है, लेकिन बिना सोचे समझे गुमराह किया जाना अनुचित है। उन्होंने संघ के दृष्टिकोण ...
पंजाब : अरदास
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बिल्कुल सच कहा मेरे दोस्त आपने हमारे बारे में कि हम अति भाग्यशाली है । परमपिता परमेश्वर की असीम कृपा है कि उसने मेरा जन्म ऐसे परिवार में किया जहां माता-पिता दोनों ही संस्कारवान, सदाचारी व धर्म पारायण थे। धर्म उनके लिये किसी कर्म कांड का विषय न होकर धारण करने का था । मॉ कट्टर आर्य समाजी व पिता उदार सनातनी । महात्मा गांधी के विचारों ने उन्हें सर्वधर्मी बनाया था । हम बहुत ही भाग्यशाली थे कि हमारा घर देवी मंदिर तथा दरगाह हज़रत बू अली शाह के बिल्कुल बीचो- बीच स्थित था । गुरुद्वारा नजदीक होने की वजह से गुरबाणी का पाठ, तड़के-तड़क सहज ही सुनाई देता था । आर्य समाज भवन भी पास ही था जहां मां के साथ कूदते -फांदते अक्सर जाते और हवन में हिस्सा लेते । पिता जी के एक दोस्त पादरी साहब(डेविड सर के पिता) अक्सर हमारे घर आते और क्रिसमस पर हम भी चर्च में जाते । हमारे कायस्थान मोहल्ले में भी विविधता का माहौल था । हर धर्म व जाति के लोग एक परिवार की तरह रहते । ऐसे ही वातावरण में हमारी परवरिश हुई । संकीर्णता हमारे ओरे धोरे भी नही थी । सब ,सब के घरों में अपने पन से आते जाते और सम्मान करते । कि...
यूपीः अमीर - गरीब की खाई पाट हिंदू होने पर गर्व करेंः मोहन भागवत
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रा ष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डाॅ. मोहन भागवत ने मुरादाबाद में हिंदुओं को एक सूत्र में पिरोने का संदेश देते हुए कहा कि स्वयंसेवक इस तरह काम करें कि अमीरी, गरीबी और काम व जाति के भेद को भूलकर सभी लोग हिंदू होने पर गर्व करें। इस भेद को मिटाने की शुरुआत स्वयंसेवकों को अपने घर से करनी होगी। घर में काम करने वाली बाई से लेकर सड़क साफ करने वाले तक सभी को जोड़ें और सम्मान दें। ताकि वह हिंदू होने पर गर्व महसूस करें। हमें हिंदू समाज की आखिरी कड़ी तक अपनी बात पहुंचानी है, उनकी चिंता करनी है। ताकि छोटे से छोटे व्यक्ति को हिंदू होने पर गर्व हो। कोई भी व्यक्ति चाहे वह जितना भी छोटा काम करता हो या फिर किसी भी जाति से हो उसे यह एहसास दिलाना है कि बाकी का पूरा हिंदू समाज उसके साथ है। संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि समाज में हर कोई अलग - अलग काम करता है, अलग जातियों से हैं लेकिन इन सब बातों से पहले वह हिंदू हैं। दफ्तर में काम करने वाला बॉस अपने छोटे से छोटे कर्मचारी को महीने में एक बार चाय पिलाए और उनकी समस्याओं को संवेदनशील तरीके से सुनकर हल सुझाए। चुनावों की ओर से इशारा करत...
दिल्ली : सवाल मेरे हिंदू होने का नहीं, राष्ट्रीय एकता का है
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एक मित्र ने मुझ से कहा कि नागरिकता संशोधन एक्ट, आपको तो किसी तरह से प्रभावित नहीं करता, तो फिर आप क्यों इसका विरोध कर रहा हैं ? उनका यह भी कथन था कि हम हिन्दुओं को तो खुश होना चाहिए कि एक ऐसा कानून बना है, जो पाकिस्तान, बांग्लादेश तथा अफ़ग़ानिस्तान में अपमान व पीड़ा की अवस्था में रह रहे हमारे सहधर्मी भाई-बहनों को भारत में शरण देने तथा नागरिकता देने का न्यायिक रास्ता साफ करता है ? उनका यह भी कहना रहा कि यह कानून तो पूरी तरह से धर्मनिरपेक्ष है, क्योंकि यह पीड़ित ईसाई, बौद्ध, पारसी, सिखों तथा जैनों को भारत आने का रास्ता खोलता है। भारत ही तो ऐसा देश है जो इनकी पितृ भूमि है, इसके अलावा वे जाएंगे कहाँ ? यह सभी ऐसे मासूम प्रश्न हैं, जो किसी को भी आंदोलित करते हैं। अभी हमारे शहर में इस कानून के पक्ष में एक रैली आयोजित हुई। उसके अनेक नारों में से कुछ चुनिंदा नारे यह भी थे "बिछड़ों को वापिस लाना है एक नया राष्ट्र बनाना है। "सीएए के समर्थन में राष्ट्रवादी मैदान में"। इस बारे में कतई दो राय नहीं कि सन् 1947 में भारत की आज़ादी के समय भारत एक तरफ एक लोकतांत्रिक व धर्मनिरपेक्ष ...
अमन चाहिए, जंग नहीं
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ब्रेख्त के जरिए दर्पण का पैगाम के. विक्रम राव आ ज बगदाद से बालाकोट तक, बरास्ते तेहरान, युद्ध का जुनून दुनिया को ग्रस रहा है| अतः जर्मन नाटककार बर्तोल्ट ब्रेख्त की याद आना सहज है, नीक भी| सैकड़ों अमरीकी बम बर्लिन को नहीं बदल सके, मगर ब्रेख्त कि एक रचना “मदर करेज एण्ड हर चिल्ड्रेन” (1941) ने यही कर दिखाया था| आज जर्मनी सबसे जबरदस्त युद्ध-विरोधी राष्ट्र है| कारण वाजिब भी है| बौराए हिटलर की खब्त से तबाही वही भुगता था| मटियामेट हो गया था| दर्पण की पेशकश में इसी का चित्रण चाक्षुष दृश्य के अनुरूप है (रूपक ‘हे ब्रेख्त’ , 11-12 जनवरी 2020, वाल्मीकि रंगमच, संगीत नाटक अकादमी, लखनऊ)| जानेमाने व्यंग्यकार और नाट्यशास्त्री डॉ. उर्मिल कुमार थपलियाल की कल्पनाशीलता की यह नायाब कृति है| प्रस्तोता अनिल रस्तोगी की कला का नैपुण्य नेपथ्य से झांकता है| इस (उर्मिल-अनिल) युग्म ने दर्शकों को अंत तक समेटे रखा| आगोश में बांधे रखा| ब्रेख्त की उक्तियों, संदेशों, घटनाओं और तात्पर्यों को समेटकर यह...
अब शुगर और बीपी रोगियों को मिलेगी जीवन भर मुफ्त दवा
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हा ई ब्लड प्रेशर, शुगर आदि कुछ ऐसी बीमारियां हैं, जो एक बार लग गई तो ताउम्र दवाई खानी पड़ती है। यह बीमारियां आनुवांशिक तो हो सकती हैं लेकिन एक दूसरे के छूने या साथ खाने पीने से नहीं फैलती हैं। बावजूद इसके इनका दायरा लगातार बढ़ता जा रहा है। इसमें कई तरह का कैंसर भी शामिल हैं। यदि आप भी इससे पीड़ित हैं तो चिंता मत कीजिये, क्योंकि यह दवाइयां अब आपको अपने घर के निकट ही मिलने वाली हैं, वह भी निशुल्क और जिंदगीभर के लिए। इसके लिए स्वास्थ्य एवं चिकित्सा विभाग ने 16 जनवरी से इन रोगों से पीड़ित मरीजों को चिह्नित करने के लिए अभियान शुरू किया है। टीम ऐसे रोगियों के नामों की सूची तैयार करेगी, इसके बाद आपको जिंदगी भर फ्री दवाई मिलती रहेगी।
दिल्ली : इन बच्चों का गलत इस्तेमाल करने वालों को क्या कहेंगे? (वीडियो)
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सीएए : जनता का उत्पीड़न बंद हो
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CAA-NRC-NPR के नाम पर देश की जनता को प्रताड़ित करने और सांप्रदायिकता फैलाने की सरकारी साजिश का विरोध करो। साथियों , एक ऐसे दौर में जब भारत की अर्थव्यवस्था चौपट हो चुकी है, GDP घटकर 4.5 से भी नीचे जा रही है, बेरोजगारी की दर बीते 45 साल में सबसे खराब स्थिति में पहुंच रही है ,शिक्षा और इलाज लगातार महंगा होता जा रहा है, सरकारी स्कूलों , अस्पतालों की स्थिति जानबूझकर खस्ता की जा रही है ,भ्रष्टाचार, महंगाई चरम पर है और हिंसा तथा बलात्कार की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं, तब इन सब बुनियादी मुद्दों से जनता का ध्यान भटकाने के लिए सरकार ने नागरिकता का मुद्दा उठाया है और पूरे देश को एक भयानक मानव संकट में डाल दिया है। जिसका विरोध पूरे देश में हो रहा है और सरकार शांतिपूर्वक हो रहे विरोध को साजिशन हिंसक बनाकर बदनाम करने तथा सांप्रदायिकता फैलाने में लगी हुई है। नागरिकता संशोधन कानून (CAA) का विरोध क्यों करना चाहिए? 1- दुनिया के किसी भी देश के नागरिक को भारत की नागरिकता देने की व्यवस्था भारत के नागरिकता कानून में पहले से ही थी। लेकिन धार्मिक आधार पर भेदभाव करने की मंशा से इस कानून में बदलाव किय...
वीडियो : मोदी के नाम पर ट्रेन में देखो क्या बेच रहा ?
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यूपी: पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने चिकित्सक को धमकाया
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दिल्ली : दुनिया को सोशल मीडिया ने बनाया ग्लोबल विलेज
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नोआखाली, बांग्लादेश से एक युवा रंगकर्मी फिरदौसी आलम व उनकी आठ वर्षीय बेटी मिचिल तक़वा उदीची आज लगभग 25 दिन हमारे परिवार के साथ बिता कर स्वदेश लौट गए। हम अभी उन्हें विदा कर घर लौटे ही हैं। इस दौरान वे दोनों हम से इतना घुल-मिलकर पारिवारिक माहौल में रहे कि अब उनका जाना अखर रहा है ।फिरदौसी की अब से पहले हमारी कोई मुलाकात व परिचय नहीं था। पर सोशल मीडिया ने इस पूरी दुनिया को इतना छोटा कर दिया है कि अब यह एक ग्लोबल विलेज सा लगता है । यह ही सूत्र बना हमारे परिचय का। पर इसे संदर्भ दिया ढाका में रह रहे मेरे मित्र प्रिंस ने, जो अपने देश की कम्युनिस्ट पार्टी का एक अग्रणी नेता है तथा वह और मैं 1980 में लगभग छह माह तक एक साथ ताशकंद-मास्को (तत्कालीन सोवियत संघ) में एक साथ रहे थे। वैसे तो प्रिंस से भी 1980 के बाद कोई संपर्क नहीं था, परन्तु गत वर्ष हमारी बांग्लादेश यात्रा के दौरान लगभग 38 वर्षों बाद मुलाकात हमारी बहन तंद्रा बरुआ व उनके पति नब कुमार राहा के प्रयासों से हुई थी। फिरदौसी, नोआखाली में एक सांस्कृतिक ग्रुप उदीची (ध्रुव तारा) के साथ जुड़ी हैं। बांग्लादेश के छोटे पर्दे पर अक्सर वह...